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गुरुवार, 29 जून 2023

ग़ज़ल

मेरा स्वप्न पूरा हुआ चाहिए बस 
मुझे दोस्तों की दुआ चाहिए बस 
मेरी जिंदगी में जो ला दे बहारें, 
हसीं ऐसी एक दिलरुबा चाहिए बस 
उसकी मुलायम नरम उंगलियों से,
हाथों को मेरे ,छुआ चाहिए बस 
आंखों में बिजली, गालों पर लाली,
 हंसी चेहरे पर सदा चाहिए बस 
 मस्ती से खेऊंगा जीवन की किश्ती,
 मौसम जरा खुशनुमा चाहिए बस 
 हर एक मुसीबत में हिम्मत बंधा दे,
 "घोटू" मेहरबां खुदा चाहिए बस

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 25 जून 2023

नए-नए चलन 

आजकल बड़े अजीब अजीब चलन चल गए हैं रोज नए नए फैशन बदल रहे हैं 
लोग परिवार के साथ समय  में मजा नहीं पाते हैं कहीं किसी के साथ जाकर *क्वालिटी टाइम* बिताते हैं 
घर की रोटी दाल का बवाल इन्हे नहीं सुहाता है बाहर होटल में *फाइन डाइनिग* में जाने में मजा आता है 
छुट्टियां गुजारना अच्छा नहीं लगता अपनों के बीच में 
जाकर *चिल* करते हैं गोवा के *बीच* में 
फैशन का भूत ऐसा सर पर चढ़ रहा है 
फटे हुए *जींस* पहनने का रिवाज़ बढ़ रहा है 
ढीले ढाले *ओवरसाइज टॉप* पहनने का चलन में है 
चोली की पट्टी दिखाते रहना फैशन में है 
पश्चिम सभ्यता अपनाने का यह अंजाम हो गया है *लिविंग इन रिलेशनशिप* में रहना आम हो गया है आजकल *वर्किंग कपल* घर पर खाना नहीं पकाते हैं 
*स्वीगी* को फोन कर खाना मंगाते हैं 
या दो मिनट की  *मैगी नूडल* से काम चलाते हैं आजकल चिट्ठी पत्री का चलन बंद है 
मोबाइल पर मैसेज देना सबको पसंद है 
आदमी मोबाइल सिरहाने रख कर सोता है 
बच्चे के हाथ में झुनझुना नहीं *मोबाइल* होता है
कानों पर चिपका रहता है मोबाईल रात दिन
 सारे काम होने लगे हैं* ऑनलाइन*
 अब आदमी लाइन में नहीं लगता,पर *ऑन लाइन *जीता है
 जानें हमे कहां तक ले जाएगी,ये आधुनिकता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
फेरे में 

मैं होशियार हूं पढ़ी लिखी,
 सब काम काज कर सकती हूं ,
 तुम करके काम कमा लाना ,
 मैं भी कुछ कमा कर लाऊंगी 
 
हम घर चलाएंगे मिलजुल कर,
 तुम झाड़ू पोंछा कर लेना, 
 रोटी और दाल पका लेना,
 पर छोंका में ही लगाऊंगी 
  
तुमने थी मेरी मांग भरी ,
लेकर के रुपैया चांदी का ,
उसके बदले अपनी मांगे,
 हरदम तुमसे मनवाऊंगी
 
तुमने बंधन में बांधा था ,
पहना के अंगूठी उंगली में,
 उंगली के इशारे पर तुमको ,
 मैं जीवन भर नचवाऊंगी 
 
अग्नि को साक्षी माना था 
और तुमने दिये थे सात वचन,
उन वचनों को जैसे तैसे ,
जीवन भर तुमसे निभवाऊंगी 

तुमने थे फेरे सात लिए 
और मुझको लिया था फेरे में,
 घेरे में मेरे फेरे के 
 चक्कर तुमसे कटवाऊंगी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दृष्ट सहस्त्र चंद्रो 

मैंने इतने पापड़ बेले, तब आई समझदारी मुझ में 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ में 

जब साठ बरस की उम्र हुई ,सब कहते थे मैं सठियाया 
और अब जब अस्सी पार हुआ ,कोई ना कहता असियाया 
मैंने जीवन में कर डाले, एक सहस्त्र चंद्र के दर्शन है 
अमेरिका का राष्ट्रपति ,मेरा हम उम्र वाइडन है 
है दुनिया भर की चिंतायें ,फिर भी रहता हरदम खुश मैं 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ कुछ मैं 

चलता हूं थोड़ा डगमग पर, है सही राह का मुझे ज्ञान 
तुम्हारी कई समस्याओं, का कर सकता हूं समाधान 
नजरें कमजोर भले ही हो ,पर दूर दृष्टि में रखता हूं 
अब भी है मुझ में जोश भरा, फुर्ती है ,मैं ना थकता हूं
मेरे अनुभव की गठरी में ,मोती और रत्न भरे कितने 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

लेकिन यह पीढ़ी नई-नई ,गुण ज्ञान पारखी ना बिल्कुल 
लेती ना लाभ अनुभव का , मुझसे ना रहती है मिलजुल 
मेरी ना अपेक्षा कुछ उनसे ,उल्टा में ही देता रहता 
वो मुझे उपेक्षित करते हैं, मैं मौन मगर सब कुछ सहता 
सच यह है अब भी बंधा हुआ, मैं मोह माया के बंधन में 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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