कल तक के अंगूर था मैं
कल तलक अंगूर था मैं ,
आज किशमिश बन गया हूं
कटा बचपन लताओं संग,
एक गुच्छे में लटकता
संग में परिवार के मैं ,
समय के संग रहा बढ़ता
और एक दिन पक गया जब ,
साथियों का साथ छूटा
त्वचा चिकनी और कसी थी
स्वाद भी पाया अनूठा
अगर थोड़ा और पकता
और मेरा रस निकलता
समय के संग वारूणी बन,
मैं नशीला जाम बनता
उम्र ने लेकिन सुखाया
वारुणी तो बन न पाया
बना किशमिश और मीठा ,
सुहाना सा रूप पाया
तब था जीवन चार दिन का,
हुई लंबी अब उमर है
आदमी में और मुझ में,
उम्र का उल्टा असर है
आदमी की उम्र बढ़ती
अंत उसका निकट आता
मुझ में जब आता बुढ़ापा
उमर है मेरी बढ़ाता
उम्र का यह फल मिला है
अब नहीं मैं फल रहा हूं
लोग मेवा मुझे कहते,
सभी के मन भा रहा हूं
डर न सड़ने, बिगड़ने का,
स्वाद से मैं सन गया हूं
कल तलक अंगूर था मैं,
आज किशमिश बन गया हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू