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गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

रावण दहन 

एक कागज का पुतला बनकर,
 खड़ा हुआ था वह बेचारा 
 तुमने उसमें आग लगा दी 
 और कहते हो रावण मारा 
 घूमे बच्चों के संग मेला ,
 खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी 
 थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
 यूं ही तफरी कर ली थोड़ी 
 घर में कुछ पकवान बनाकर 
 या होटल जा करते भोजन 
 ऐसे ही कितने वर्षों से 
 मना रहे हैं दशहरा हम 
 पर वास्तव में इसीलिए क्या 
 यह त्योहार मनाया जाता 
  पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
  विजयादशमी पर्व कहाता
  हो विद्वान कोई कितना भी,
  वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
  पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
  अहंकार,वो मारा जाता 
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का 
काम क्रोध और लोभ मोह का 
मद और मत्सर, सब विकार का 
 इनका दहन करोगे तब ही
 होगा सही दहन रावण का 
 सच्चा तभी दशहरा होगा ,
 राम जगाओ ,अपने मन का 
 जब सच्चाई और अच्छाई 
 अंत बुराई का कर देगी 
 तभी विजेता कहलाओगे 
 विजयादशमी तभी बनेगी 
 तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
 रावण को जाएगा मारा 
  कागज पुतला दहन कर रहे
  और कहते हो रावण मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

नेता उचाव

अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
 पर जल्दी बिकने वाला हूं
 टीवी की हर चैनल पर अब,
 मैं जल्दी दिखने वाला हूं
  
अधकचरी विधानसभा का, 
चुना गया मैं एक विधायक 
लड़ा चुनाव स्वतंत्र ,जीतकर 
आज बन गया हूं मैं लायक 
 मिली जुली सरकार बने तो,
 होगी अहम भूमिका मेरी 
 पक्ष-विपक्ष कर रहे दोनों 
 इसी लिए हैं हेरा फेरी 
 मुझे पता ,अपने पाले में 
 चाह रहे हैं दोनो लाना
 मूल्यवान में हुआ अकिंचन,
 दोनों डाल रहे हैं दाना
 तोल मोल चल रहा अभी है 
  मूल्यांकन करना है बाकी 
  नहीं  बिकूंगा जब तक मेरी 
  कीमत सही न जाए आंकी
  मेरा एक वोट कर सकता, 
  है सत्ता में परिवर्तन भी 
  मुझको कई करोड़ चाहिए,
  और मंत्री की पोजीशन भी 
  मैं रिसोर्ट में एश कर रहा ,
   मुझको दिखता सब नाटक है 
   सत्ता के गलियारों में हैं ,
   रोज हो रही उठापटक है 
   मेरा भाव लगाने वाले ,
   कब देते मनचाहा ऑफर
   मेरे इधर उधर होने से ,
   बदल जाएगा सारा मंजर
   धोखा अगर दिया कोई ने,
    तो मैं ना टिकने वाला हूं
    अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
    पर जल्दी बिकने वाला हूं
     टीवी की हर चैनल पर अब
      मैं जल्दी दिखने वाला हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नेता और रिश्वत 

मैंने पूछा एक नेता से 
लोग तुम्हें है भ्रष्ट बताते 
बिन रिश्वत कुछ काम न करते 
सदा तिजोरी अपनी भरते
 नेता बोले बात गलत है
 यह मुझ पर झूठी तोहमत है 
 प्रगति पथ हो देश अग्रसर 
 यही ख्याल बस मन में रख कर 
 करता बड़े-बड़े जब सौदे
  करना पड़ते कुछ समझौते 
  काम देश प्रगति का करता 
  सेवा शुल्क ले लिया करता 
  इतना तो मेरा हक बनता 
  पर रिश्वत कहती है जनता 
  फिर थोड़ा हंस ,बोले नेता
   मैं रिश्वत ना ,प्रतिशत लेता 
   सच कहता हूं ईश्वर साक्षी 
   लिया अगर जो एक रुपया भी 
   जो कुछ लिया, लिया डॉलर में 
   एक रुपया ना आया घर में 
   जो भी मिलता है ठेकों में 
   सभी जमा है स्विस बैंकों में 
   हर सौदे में जो भी पाता 
   उसे चुनाव के लिए बचाता 
   पैसा जनता का, जनता में 
   बंट जाता है वोट जुटाने 
   और तुम कहते यह रिश्वत है 
   सोच तुम्हारी बहुत गलत है

मदन मोहन बाहेती घोटू

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

 उचटी उचटी नींद आती है,
 बिखरे बिखरे सपने आते 
 पहले से आधी खुराक भी ,
 खाना मुश्किल से खा पाते 
 डगमग डगमग चाल हो गई,
 झुर्री झुर्री बदन हो गया 
 ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
  इतना कम है वजन हो गया 
  थोड़ी देर घूम लेने से ,
  सांस फूलने लग जाती है 
  मन करता है सुस्ताने को 
  तन में सुस्ती सी जाती है 
  सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
  ये ही अब आहार हमारा 
  जिनके कभी सहारा थे हम
  वह देते हैं हमें सहारा 
  चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
 आलस ने है डेरा डाला 
 मन में कुछ उत्साह न बाकी,
  हाल हुआ है बुरा हमारा 
  फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
  और समय हम रहे काट हैं 
  बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
  बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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