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गुरुवार, 1 सितंबर 2022

ओ गिरधारी, छवि तुम्हारी 
मुझको एक बार दिखला दो 
गोप गोपियों पर बरसाया,
 वही प्यार मुझ पर बरसा दो 
 यमुना तट पर ,बंसी वट की,
  बस थोड़ी सी छैया दे दो 
  राधा के संग रास रचाते 
  दर्शन ,कृष्ण कन्हैया दे दो 
  
माटी खाते , मुंह खुलवाते,
तीन लोक की छवि दिखला दो 
चोरी-चोरी ,हंडिया फोड़ी,
बस उसका मक्खन चखवा दो 
कान उमेठ, पेड़ से बांधे ,
मुझे जसोदा मैया दे दो 
राधा के संग रास रचाते ,
दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 

बृज कानन में, मुरली की धुन,
 मुझको भी पड़ जाए सुनाई 
 धेनु चलाते, बस मिल जाए ,
 कान्हा, दाऊ ,दोनों भाई 
 नन्हे बछड़े संग रंभाती
 मुझको कपिला गैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते ,
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 
 
बरसाने की राधा रानी ,
और गोकुल का कान्हा प्यारा 
ठुमुक ठुमुक, चलता घर भर में
हृदय मोहता, नंददुलारा,
नजर बचाने , यशुमत मैया,
 लेती हुई बलैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते 
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 31 अगस्त 2022

Re: Syncing Error - (6) Incoming failed mail.

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Email Quarantine


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मंगलवार, 30 अगस्त 2022

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रविवार, 28 अगस्त 2022

जय गणेश गणपति गजानन 
करूं आपका, मैं आराधन 

तुम सुत महादेव के प्यारे 
प्रथम पूज्य तुम देव हमारे 
एक दंत और कर्ण विशाला 
अरुण कुसुम की धारे माला
कर में कमल ,माथ पर चंदन 
भव्य रूप ,गौरी के नंदन 
तुम हो रिद्धि सिद्धि के दाता
हम सबके तुम बुद्धि प्रदाता
लाभ और शुभ, पुत्र तुम्हारे
हरते सबके संकट सारे
सुख सरसाते, कष्ट निकंदन 
 जय गणेश गणपति गजानन 
 
लक्ष्मी साथ तुम्हारा पूजन 
दिवाली पर करें सभी जन 
सरस्वती संग साथ तुम्हारा 
सबको ही लगता है प्यारा 
दो देवी को बुद्धि बल से 
तुमने साध रखा कौशल से 
रखो संतुलन बना विनायक 
महाकाय ,पर वाहन मूषक 
जब हो घर में कुछ आयोजन 
देते तुमको प्रथम निमंत्रण 
मिलता आशीर्वाद तुम्हारा 
काम विध्न बिन होता सारा 
सूज बूझ है बड़ी विलक्षण 
जय गणेश ,गणपति गजानन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गई शान,अभिमान पस्त है ,
फूटी किस्मत अब रोती है 
कभी मूसलाधार बरसता ,
अब तो बस रिमझिम होती है 

बादल आते हैं मंडराते ,
फिर भी सूखा पड़ा हुआ है 
ना बरसेगा ये बादल भी,
अपनी जिद पर अड़ा हुआ है 
बहती कभी हवाएं ठंडी 
लेकिन सौंधी गंध न आती 
अब बगिया में फूल खिलते
 जिन पर थी तितली मंडराती
 इस मौसम में सूखी बगिया ,
 अपनी सब रौनक होती है 
 कभी मूसलाधार बरसता,
 अब तो बस रिमझिम होती है 
 
कभी उमंगों के रंगों में ,
रंगा हुआ था सारा जीवन 
पंख लगा कर हम उड़ते थे ,
मौज मस्तियों का था आलम 
पहले थे पकवान उड़ाते ,
अब खाते हैं सूखी रोटी 
काम न आती, जो जीवन भर 
करी कमाई हमने मोटी
बोझिल मन और बेबस आंखें, 
बरसाती रहती मोती है
कभी मूसलधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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