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मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

धोबी का गधा

हमेशा ही लदा रहता है डाले पीठ पर बोझा ,
कोई भी ढंग से उसको खिलाता है नहीं चारा

बहुत गुस्सा हो जाता, लोटने धूल में लगता,
 रेंक कर दर्द दिल का वो, बयां करता है तब सारा
 
कोई कहता इधर जाओ ,कोई कहता उधर जाओ,
 बहुत चक्कर लगा करके, हमेशा वो थका हारा

अगर कंफ्यूजड हो मालिक,बड़ी ही मुश्किल होती है
 न घर ना घाट का रहता, गधा धोबी का बेचारा

घोटू
राधा का नाच

न आता नाच राधा को मगर नखरे दिखाएगी कभी तुम्हारे आंगन को बहुत टेढ़ा बताएगी 
कभी बोलेगी नाचेगी,मिलेगा तेल,जब नौ मन,
न नौ मन तेल ही होगा, न राधा नाच पाएगी

घोटू 

सोमवार, 11 अप्रैल 2022

प्यार और मिठाई 
तुम्हारी ना को ना और हां को हां ही मानता हूं मैं 
तुम्हें खुश रखने के हथकंडे सब पहचानता हूं मैं 
गर्म गाजर का हलवा तुम हो प्यारा और मनभाता 
मिलेगा स्वाद चमचा बनके ही, यह जानता हूं मैं
भले ही टेढ़ी हो लेकिन रसीली और निराली हो 
जलेबी की तरह स्वादिष्ट हो तुम और प्यारी हो 
तुम्हारा सच्चा आशिक तुम्हें दिल से प्यार करता हूं 
मैं दीवाना तुम्हारा, प्रेमिका तुम ही हमारी हो
 तुम्हारा प्यार लच्छेदार है ,प्यारा सुहाना है 
 रसीला रस मलाई सा, हमें करता दीवाना है 
 मैं लच्छेदार रबड़ी से भरा जब देखता कुल्हड़,
 मेरा मन होताअल्हड़,करता जिद इसको ही खाना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 10 अप्रैल 2022

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

 रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली

ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए

नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए

स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी

गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती

तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती

घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती

नाचते मोर कलियां थी पर खोलती

फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग

माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर

लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 

मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 

दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था

क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था

मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी

क्या कभी भूल सकता है संसार भी

गीत तू साज तू मेरा संगीत भी

शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी

नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी

जिसने जीवन दिया पालती पोषती

नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी

 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी


सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।


सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
इच्छाओं का नहीं होता है कोई छोर
हमेशा ये दिल मांगता है मोर
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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