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बुधवार, 21 जुलाई 2021

माता रानी के भक्त हो गए

बंधे हुए रहते थे मोह माया बंधन में 
दुनियादारी से वह आज विरक्त हो गए 
कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
 वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

 तन पर नहीं लुनाई रही, आई जर्जरता,
 निर्बलता में अंकपाश में घेर लिया है 
 चिकने तन पर लगी झुर्रियां झलक मारने ,
 धीरे-धीरे यौवन ने मुंह फेर लिया है 
 अपनो  का अपनापन भी है लुप्त हो रहा,
 घर में हम अनचाहे से अब फक्त हो गए 
 कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में 
 अब देखो मातारानी के भक्त हो गए
 
 मन तो बहुत चाहता पर तन साथ ना देता,
 सांप छछूंदर गति हुई कुछ कर ना सकते 
  फूल महकते हैं गुलशन में सुंदर सुंदर,
  मन मसोसकर अपना केवल उनको तकते
  कल तक हरे भरे थे छाया ,फल देते थे 
  पातहीन अब  सूखे हुए दरख़्त हो गए
  कल तक रहते लिप्त भोग मेंऔर लिप्सा में,
  अब देखो माता रानी के भक्त हो गए
    
    ऐसा ना है कि उनमें कुछ कमी नहीं है ,
    रस्सी भले जल गई, लेकिन बट न गया है 
    अब भी सब पर रौब पुराना दिखलाते हैं ,
    बात बनाने का अपनी पर हठ गया है 
    जिद्दी, अड़ियल, नहीं किसी की कोई सुनते,
     अपने थोथे सिद्धांतों में सख्त हो गए 
     कल तक रहते लिप्त भोग में और लिप्सा में,
     वह देखो माता रानी के भक्त हो गए

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मिलन यात्रा

तुम भी थोडी पहल करोगे 
मैं भी थोड़ी पहल करूंगा 
बात तभी तो बन पाएगी 
धीरे हो या जल्दी-जल्दी 
पास हथेली जब आएगी 
तब ही ताली बज पाएगी 

तुम भी चुप चुप, मैं भी चुप चुप 
कोई कुछ भी नहीं बोलता 
तो फिर बात बनेगी कैसे 
तुम उस करवट मैं इस करवट
 दोनों में बनी दूरियां
 तो फिर रात कटेगी कैसे 
 यूं ही शर्म हया चक्कर में 
 मिलन रात में मिलन न होगा 
 यूं ही रात निकल जाएगी 
  तुम भी थोड़ी पहल करोगे
   मैं भी थोड़ी पहल कर लूंगा 
   बात तभी तो बन पाएगी
   
   दीवारे जब तलक हिचक की ,
   खड़ी रहेगी बीच हमारे 
   कैसे मिल पाएंगे तुम हम 
   गंगा और जमुना की धारा 
   अगर बहेगी दूर-दूर ही 
   तो फिर कैसे होगा संगम
    कैसे मैं  मधुपान करूंगा
    यदि चेहरे पर चंदा से 
    यूं ही बदली अगर छाएगी 
    तुम भी थोड़ी पहल करोगे 
    मैं भी थोड़ी पहन कर लूंगा 
    बात तभी तो बन पाएगी

   मदन मोहन बाहेती घोटू
जीवन चर्या 

होती भोर,निकलता सूरज ,धीरे-धीरे दिन चढ़ता है  
हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है

बिना प्रयास सांस ही केवल ,जब तक जीवन, आती जाती
 किंतु उदर में जब कुछ पड़ता , तब ही जीवन ऊर्जा आती
 चाहे चींटी हो या हाथी, सबको भूख लगा करती है इतने संसाधन प्रकृति में, सबका पेट भरा करती है लेकिन अपना हिस्सा पाने ,सबको कुछ करना पड़ता है 
  हर पंछी को दाना चुगने ,सुबह निकलना ही पड़ता है
  
 कितने ही भोजन के साधन, विद्यमान है ,आसपास है अपने आप नहीं मिलते पर ,करना पड़ता कुछ प्रयास है ज्यादा उर्जा पाने ,थोड़ी उर्जा करना खर्च जरूरी बैठे-बैठे नहीं किसी की ,कोई इच्छा होती पूरी 
 भूख लगे ,मां दूध पिलाएं, बच्चे को रोना पड़ता है 
 हर पंछी को दाना चुगने, सुबह निकलना ही पड़ता है 

     मदन मोहन बाहेती घोटू
चतुर्भुज 

चार भुजाएं जब ऐसे मिलती है
कि उनके बीच में बनने वाला क्षेत्र 
आयताकार या वर्गाकार हो जाता है 
तो वह चतुर्भुज कहलाता है 
पर चार भुजाएं हैं जब शंख चक्र गदा, पद्म 
धारण कर लेती है 
तो भगवान का चतुर्भुज रूप दिखलाता है
एक चतुर्भुज का दायरा सीमित होता है 
एक चतुर्भुज अपरिमित होता है 
सीमित दायरे वाला इंसान है 
अपरिमित दायरे वाला भगवान है 
इसीलिए हम अपनी भुजाएं इस तरह काम में लाएं
कि सिर्फ आयताकार होकर सीमित न रह जाएं 
बल्कि ईश्वर की तरह विश्वरूपी, 
व्यापक और वृहद आकार में,
 अपनी सीमाओं को फैलाएं
 चर्तुभुज हो जाएं

घोटू
रिमझिम और रोमांस 

जैसे ही नभ में छाते हैं बादल थोड़े 
चाह तुम्हारी होती है कि बने पकोड़े 
कैसे तुमको समझाऊं मैं साजन मोरे ,
चाय पकौड़े से आगे भी कुछ होता है 

हम बोले कि हमें पता, पर सकुचाते हैं 
अपने दिल की हसरत नहीं बता पाते हैं
 साथ पकोड़े के मिल जाए गरम जलेबी,
 या हो हलवा गरम गरम तो मन मोहता है 
 
पत्नी बोली जब देखो तब खाना पीना 
दिल तुम्हारा इससे ज्यादा कहे कभी ना 
रिमझिम वाले इस प्यारे प्यारे मौसम में ,
चलो जरा सा रोमांटिक भी हम हो जाए  

हमने बोला जी तो मेरा भी है करता 
ना होता रोमांस ,पेट जब तक ना भरता
आओ करें रोमांस, बदन में गर्मी लायें
इसीलिए हम पहले गरम-गरम कुछ खायें

मदन मोहन बाहेती घोटू

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