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मंगलवार, 22 जून 2021

आओ मेरे संग टहलो

आओ तुम मेरे संग  टहलो 
तुम्हारे मन में दिन भर का ,जो भी गुस्से का गुबार है, 
उसकी,इसकी जाने किसकी,शिकायतों का जो अंबार है 
मन हल्का होगा तुम्हारा,सब तुम मुझसे कह लो 
आओ तुम मेरे संग टहलो
यूं ही रहती परेशान तुम ,मन की सारी घुटन हटा दो 
लगा उदासी का चंदा से, मुख पर है जो ग्रहण हटादो 
थोड़ा हंस गा लो मुस्कुरा लो और प्रसन्न खुश रह लो आओ तुम मेरे संग टहलो
 इतनी उम्र हुई तुम्हारी ,परिपक्वता लाना सीखो 
 नई उमर की नई फसल से ,सामंजस्य बनाना सीखो 
 बात किसी की बुरी लगे तो, तुम थोड़ा सा सह लो 
 आओ तुम मेरे संग  टहलो
अपने सभी गिले-शिकवे तुम जो भी है मुझसे कह डालो 
थोड़ा शरमा कर मतवाली,अपनी चितवन मुझ पर डालो 
पेशानी से परेशानियां ,परे करो ,खुश रह लो
आओ तुम मेरे संग टहलो

मदन मोहन बाहेती घोटू
छोड़ो चिंता प्यार लुटाओ

 यूं ही दिन भर तुम , गृहस्थी के चक्कर में 
 उलझी रह करती हो ,घर का सब काम धंधा 
 और रात जब मुझसे, तन्हाई के क्षणों में ,
 मिलती तो पेश करती, शिकायतों का पुलिंदा 
 अरे परेशानियां तो ,हमेशा ही जिंदगी के ,
 संग लगी रहती है और आनी जानी है 
 गृहस्थी की ओखली में ,अगर सर जो डाला है,
  मार फिर मूसल की ,खानी ही खानी है 
  एक दूसरे के लिए ,मिलते कुछ पल सुख के, 
  गिले और शिकवों पर ध्यान ना दिया करें 
  छोड़े चिंतायें और प्यार बस लुटाएँ हम,
  मिलजुल कर भरपूर जिंदगी जिया करें

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 21 जून 2021

क्योंकि मैंने प्यार किया है 

कई बार 
जैसे रिमझिम की बरसती हुई सावन की फुहार 
जब बरसती है बनकर मूसलाधार 
या मंद मंद महती हुई बयार
 बन जाती है तूफान 
 या कलकलाती हुई नदियों में आ जाता है उफान 
 जो बन जाती है भयंकर बाढ़ 
 और सब कुछ देती है उजाड़ 
 या जब कभी कभी उष्णता देने वाली अगन 
 जो भोजन को पकाकर स्वाद भर देती है 
 जब कुपित होती है तो सब कुछ स्वाह कर देती है 
 या जब आसमान में अठखेलियां करते हुए  नन्हें बादल अपना रूप बदल 
 बन जाते हैं घटा घनघोर 
 गरज गरज कर मचाते हैं शोर 
 वैसे ही मेरी प्रेमिका प्यारी 
 मंद मंद मुस्कान वाली 
 जब से बनी है मेरी घरवाली 
 कभी-कभी बादल सी गरजती है 
 बिजली सी कड़कती है 
 मचा देती है तूफान 
 कर देती है बहुत परेशान 
 धर लेती है चंडी का रूप विकराल 
 बुरा हो जाता है मेरा हाल 
 पर मैं शांति से सब कुछ सहता हूं 
 कुछ नहीं कहता हूं 
 क्योंकि मैं जानता हूं की अन्य प्राकृतिक आपदाओं की यह संकट 
 यूं तो होता है बड़ा विकट 
 पर कुछ ना बोलो ,तो जल्दी जाता है टल
 फिर वही नदियों सी मस्त कल कल 
 फिर वही बरसती हुई प्यार की फुहार 
 क्योंकि ऐसा होता आया है कई बार 
 ऐसी आपदाओं के लिए मैं हमेशा रहता हूं तैयार क्योंकि मैंने किया है प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू
क्योंकि मैंने प्यार किया है 

कई बार 
जैसे रिमझिम की बरसती हुई सावन की फुहार 
जब बरसती है बनकर मूसलाधार 
या मंद मंद महती हुई बयार
 बन जाती है तूफान 
 या कलकलाती हुई नदियों में आ जाता है उफान 
 जो बन जाती है भयंकर बाढ़ 
 और सब कुछ देती है उजाड़ 
 या जब कभी कभी उष्णता देने वाली अगन 
 जो भोजन को पकाकर स्वाद भर देती है 
 जब कुपित होती है तो सब कुछ स्वाह कर देती है 
 या जब आसमान में अठखेलियां करते हुए  नन्हें बादल अपना रूप बदल 
 बन जाते हैं घटा घनघोर 
 गरज गरज कर मचाते हैं शोर 
 वैसे ही मेरी प्रेमिका प्यारी 
 मंद मंद मुस्कान वाली 
 जब से बनी है मेरी घरवाली 
 कभी-कभी बादल सी गरजती है 
 बिजली सी कड़कती है 
 मचा देती है तूफान 
 कर देती है बहुत परेशान 
 धर लेती है चंडी का रूप विकराल 
 बुरा हो जाता है मेरा हाल 
 पर मैं शांति से सब कुछ सहता हूं 
 कुछ नहीं कहता हूं 
 क्योंकि मैं जानता हूं की अन्य प्राकृतिक आपदाओं की यह संकट 
 यूं तो होता है बड़ा विकट 
 पर कुछ तो बोलो तो जल्दी जाता है टल
 फिर वही नदियों की मस्त कल कल 
 फिर वही बरसती हुई प्यार की फुहार 
 क्योंकि ऐसा होता आया है कई बार 
 ऐसी आपदाओं के लिए मैं हमेशा रहता हूं तैयार क्योंकि मैंने किया है प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 19 जून 2021

अभी बहुत कुछ करना आगे 

अभी बहुत कुछ करना आगे 
क्यों मुश्किल से डर, हम भागे 

सुख-दुख चिंता परेशानियां, 
जीवन संग बनी रहती है 
फिर भी अच्छे दिन आएंगे ,
मन में आस जगी रहती है 
अगर निराशा के जालों में ,
फसे रहेंगे ,पछताएंगे 
आशावादी दृष्टिकोण से ,
अगर जिएंगे, सुख पाएंगे 
परमेश्वर से अपना, सबका, 
सुख स्वास्थ्य और वैभव मांगे 
क्यों मुश्किल से डर  हम भागे 
अभी बहुत कुछ करना आगे

 यह सच है जो लिखा नियति ने,
 उसको कोई बदल ना पाया 
 लाख कमा ले कोई माया 
 साथ न कोई ले जा पाया 
 कितनी भी को विकट परिस्थिति 
 नहीं जरा भी घबराना है 
 हर मुश्किल से उबर जाएंगे 
 हिम्मत से ,बढ़ते जाना है 
 हंसते-हंसते जिएंगे हम ,
 सुबह तभी है, जब हम जागे 
 क्यों मुश्किल से डर,हम भागें
 अभी बहुत कुछ करना आगे
 
 चार दिनों का यह जीवन है,
 उसका मजा उठाएं पूरा 
 खाए पिए नाचे गाए 
 रहे न कोई शौकअधूरा  
 जब तक जियें, मस्त रहें हम,
 मन में खुशियां और चाव हो 
 जब भी जायें प्यास ना रहे ,
 मन में केवल तृप्ति भाव हो 
 रहे संतुलित जीवनचर्या ,
 अपनी मर्यादा ना लांघे
 क्यों मुश्किल से डर हम भागें
 अभी बहुत कुछ करना आगे

मदन मोहन बाहेती घोटू

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