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शुक्रवार, 14 मई 2021

मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

तुमको भला बुरा कह अपनी ,क्यों जुबान मैं कर काली दूँ
मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

तुम हो चिकने घड़े तुम्हे छू ,सभी गालियां फिसल जाएंगी
तुम्हारा कुछ ना बिगड़ेगा ,जिव्हा मेरी बिगड़ जायेगी
बहुत कमीने हो तुम ,ना हो ,मेरी गाली के भी लायक
तुम लालच से भरे हुए हो ,सदा साधते अपना मतलब
अपना काम निकल जाने पर ,बिलकुल नज़र नहीं आते हो
निज अहसान फरामोशी का ,पूरा जलवा दिखलाते हो
व्यंग बाण बरसा तुम पर मैं ,निज तूणीर क्यों कर खाली दूँ
मै  तुमको क्यों कर गाली दूँ

अपनों के ही नहीं हुए तुम ,और किसी के फिर क्या होंगे
वक़्त तुम्हे जब ठोकर देगा ,अपनी करनी खुद भुगतोगे
बचा रहा जो तुम्हे डूबने से  ,उसको ही डंक मारते
देगा कौन सहारा तुमको ,मुश्किल में ,ये ना विचारते
अरे अभी भी समय शेष है,सुधर सको तो सुधर जाओ तुम
अपने मन के अंदर झांकों ,प्रेम भावना को जगाओ तुम
समझा रहा ,यही कोशिश है ,तुमको सुख और खुशहाली दूँ
मैं तुमको क्यों कर गाली दूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये शून्य काल है

पक्ष विपक्ष चीखते दोनों ,
पस्त व्यवस्था ,बुरा हाल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
हमको ये दो ,हमको वो दो ,
बढ़ चढ़ मांग हर कोई करता
फिर जिसको जितना भी दे दो ,
उसका पेट कभी ना भरता
मांग अधिक ,आपूर्ति कम है ,
क्योंकि संसाधन है सीमित
कोप महामारी का इतना ,
कि इलाज से जनता वंचित
पीट रहे सब अपनी ढपली ,
ना सुर कोई ,नहीं ताल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
हर कोई लेकर बैठा है ,
कई शिकायत भरा पुलंदा
रायचंद सब राय दे रहे ,
बस ये ही है उनका धंधा
ये बाहर कुछ,अंदर कुछ है ,
बहुत दोगली इनकी बातें
बेच दिया इनने जमीर है ,
बस गाली देते ,चिल्लाते
चोर चोर मौसेरे भाई ,
पनपाते काला बाजार है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है
इस विपदा के कठिन काल में ,
भी ये अवसर देख रहे है
अपनी अपनी राजनीती की ,
ये सब रोटी सेक रहे है
'ब्लेम गेम 'में लगे ,उठाया ,
इनने सर पर आसमान है
पर इस आफत के निदान में ,
रत्तीभर ना  योगदान है
कौवा पोत सफेदी ,चलने
लगा हंस की आज चाल है
ये शून्य काल है
ये शून्य काल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 11 मई 2021

सुनो ,मेरी बात पर गौर करो

 बिके  हुए चैनल के समाचार मत देखो ,
आधी बिमारी ,दहशत कम हो जायेगी ,
पता नहीं कुछ लोग,न जाने किस मतलब से ,
छवि  बिगाड़ने में भारत की तुले हुए है  

अपनी अपनी राजनीति को चमकाने के ,
ढूंढ रहे है अवसर जो इस आफत में भी ,
इनकी कोई बातों पर तुम ध्यान न देना ,
क्योंकि इरादे इनके विष में घुले हुए है

जुते हुए है स्वार्थ साधने में कितने ही
कालाबाज़ारी कर कमाई के चक्कर में है ,
हाथ जोड़ते ये चेहरे शैतान बहुत है ,
नहीं दूध से कोई इनमे धुले हुए है

अपने मन में दबे हुए संवेदन को तुम ,
आज झिझोडो,और जगाओ,सोने मत दो
,देशद्रोहियों के बहकावे में मत आओ ,
ये तो देश को गिरवी रखने तुले हुवे है

शुक्र मनाओ ईश्वर का ,तुम भाग्यवान हो ,
गर्व करो तुमको ऐसा  नेतृत्व मिला है ,
जो निस्स्वार्थ कर रहा भारत महिमामंडन ,
और हौसलें भी बुलंद और खुले हुए है

जरूरत है ये आज ,सावधानी हम बरतें ,
बना दूरियां रखें ,और मुख पट्टी बांधें ,
और बढ़ाएं तन मन की अवरोधकशक्ति ,
प्राणायम के भी विकल्प सब खुले हुए है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 10 मई 2021

आओ कुछ खुशियां बिखरायें
गुमसुम मुरझाये चेहरों पर ,जरा मुस्कराहट फैलाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

बहुत दिन हुए गप्पें मारे अपनों के संग वक़्त गुजारे
घर में ही घुस कर बैठे है ,सबके सब , कोरोना मारे
टी वी देखो,समाचार सुन,उल्टा मन भरता है डर से
रामा जाने ,दूर हटेगी कब ये आफत ,सबके सर से  
कर देती लाचार सभी को ,आती जाती ये विपदाएं
आओ कुछ खुशियां बरसायें

सहमे सहमे दुबके है सब ,उडी हुई चेहरे की रंगत
हर कोई पीड़ित चिंतित है सबके मन में छायी दहशत
गौरैया की तरह हो गयी ,हंसी आज चेहरे से गायब
मार ठहाके ,यार दोस्त संग ,हंसना भूल गए है अब सब
बुझे हुए अंधियारे मन में ,आशा की हम किरण जगाये
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

किन्तु करेंगे हम ये कैसे ,ना सुनते अब लोग लतीफे
लड्डू,पेड़ा ,गरम जलेबी ,सब पकवान लग रहे फीके
न तो पार्टी ना ही महफ़िल ,ना उत्सव ,त्योंहार मनाना
दो गज दूरी ,मुंह पर पट्टी ,बंद हुआ सब आना जाना
कोई के प्रति ,तो फिर कैसे ,अपने भावों को दर्शाएं
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

इस विपदा में साथ दे रहा है सबका ,अपना मोबाईल
बस उसको सहला ऊँगली से ,लोग लगाते है अपना दिल
तो क्यों न हम मोबाईल पर ,हालचाल अपनों का  जाने
कभी ज़ूम पर मीटिंग करके मिले जुलें ,मन को बहलाने  
देख एक दूजे  की सूरत ,मन में कुछ सुकून  तो आये  
आओ कुछ खुशियां बिखरायें

मदन मोहन बहती 'घोटू '

   

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