एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

रहो बच कर कोरोना से

दिनबदिन हो रहा  मुश्किल,कोरोना का खेल प्रियतम
रहो बच कर कोरोना से ,कष्ट कुछ दिन झेल  प्रियतम

पूर्णिमा के चाँद जैसा ,तुम्हारा आनन चमकता
और उस पर ,अधर सुन्दर से मधुर अमृत टपकता
गुलाबी ,अनमोल है ये ,रतन  चेहरे पर तुम्हारे
इन्हे ढक लो 'मास्क 'से तुम ,कोई ना नीयत बिगाड़े
नाक छिद्रों में सुहाने ,नित्य डालो तेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

हाथ ये कोमल कमल से ,हाथ कोई ना लगाये
इन्हे धो,रखना छिपाए ,कोई इनको छू न पाये
सभी से कुछ दूरियां तुम ,हमेशा रखना बनाकर
इसलिए बाहर न निकलो ,रखो तुम खुद को छुपाकर
भले ही बंधन तुम्हे ये ,लगे कुछ दिन जेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

टोकता रहता तुम्हे मैं ,मुझे लगता बहुत डर  है
तुम भी उन्नीस ,वो भी उन्नीस ,भटकने वाली उमर है
इसलिए 'वेक्सीन 'लगवा ,बनाकर हथियार इनको
कोप से इस महामारी के बचा रखना स्वयं को
कोरोना से ना कभी भी ,हो तुम्हारा मेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

चोर का चक्कर

कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला
जिस ओर न जाना चाहा था,मुझको जीवन उस ओर  मिला

वो मेरी ओर देख कर के ,बस थोड़ा सा मुस्काई थी
पर ये अंदाज ,अदा प्यारी ,कुछ ऐसी मन को भायी थी
उसकी उस पहली एक झलक ने चुरा लिया मेरे दिल को
संग चुरा ले गयी ,चैन ,नींद ,कुछ कह न सका उस कातिल को
उसके संग मिल ,चोरी चोरी ,मैंने सीखा चोरी का फ़न
उसके रस भीने ,होठों से ,कितने ही चुरा लिए चुंबन
पूरा जीवन ,उस संग काटा ,ऐसा मुझको ,चितचोर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मैं रहा भटकता ,ठौर ठौर ,लेकिन जब कोई ठौर मिला
तो मुझे वहां भी ,वो नटखट ,कान्हा था माखन चोर मिला
भोली भाली ,गोपी सखियाँ और राधा का दिल लिया चुरा
एक रोज अचानक भाग गया ,कर गया पलायन वो मथुरा
कोई कामचोर ,कोई दामचोर ,चोरों से पाला पड़ा सदा
वो मुझसे नज़र चुराता है ,अहसानो से ,जो मेरे लदा
मुझसे जो भी आ टकराया ,वो चोरी में सिरमौर मिला
कुछ और की ख्वाइश की मैंने ,लेकिन मुझको कुछ और मिला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक इलाज -ऐसा भी

अक्सर पतले लोगों की ,कम होती है ,प्रतिरोधक क्षमता
इस कारण ही ,बिमारी का ,रोगाणु है उन्हें  जकड़ता
पर मोटों के तन में होती ,परत एक चर्बी की मोटी
इसीलिए रोगाणु को तन में घुसने में ,दिक्कत होती
अगर रोग प्रतिरोधक बनना ,तो तन पर चर्बी रहने दो
बिमारी से ,बचके रहोगे ,मोटा लोग कहे ,कहने दो
इसीलिए तुम छोडो 'स्लिम बॉडी 'जीरो फिगर 'का चक्कर
अच्छा खाओ ,मौज उड़ाओ ,छोड़ डाइटिंग ,खाओ जी भर
 इसी तरह जब हम खाते है तेज मसाले ,भरी कचौड़ी
या तीखा पानी भर पुचके ,या फिर चाट चटपटी थोड़ी
आँख नाक से पानी बहता ,सी सी सी सी करते जाते
किन्तु स्वाद के मारे हम तुम ,बड़े चाव से ये सब खाते
हमें विटामिन सी मिलता है ,जब हम खाते ,सी सी करते
कोरोना के कीटाणु भी ,तेज  मसालों  से  है डरते
चाट चटपटी ,खाने से जब ,आँख नाक से ,बहता पानी
भगे वाइरस ,छिपे नाक में ,आती याद, उन्हें है नानी
इसीलिये यदि ,हम सबको है ,रोग कोरोना से जो  बचना
हो सकता है ,असर दिखा दे ,ये भी तरीका देखो अपना
छोड़ डाइटिंग ,जम कर खाओ ,तन पर चढ़े ,परत चर्बी की
खाओ चटपटा ,सी सी करते ,रहे कमी न विटामिन सी की
खाओ सेव ,झन्नाट कचौड़ी ,आँख नाक से पानी टपके
और कोरोना के कीटाणु ,भागे निकल ,रहे ना छिपके

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

मैं अस्सी का
 
अब मैं बूढ़ा बाईल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ  मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

धीरे धीरे  बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री  छायी ,बदन मेरा बेहाल  हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

 अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी  लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का

बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
खिचड़ी और हलवा

दाल लेते ,चावल लेते , पकाते  दोनों  अलग ,
मिला कर दोनों को खाने का निराला ढंग है  
मिलते पर जब दाल चावल ,तो है बनती खिचड़ी ,
स्वाद देती है अनोखा ,जब भी पकती संग है
चावल जैसी तुम अकेली ,दाल सा तनहा था मैं ,
जब मिले संयोग से  तो  बात फिर आगे  बढ़ी  
जिंदगी के ताप में जब  पके संग संग ,एक हो ,
स्वाद अच्छा ,पचती जल्दी,बने ऐसी खिचड़ी
वो ही गेंहूं ,वो ही आटा ,सान कर रोटी बनी ,
कभी सब्जी साथ खायी ,कभी खायी दाल संग
मगर उस आटे को भूना घी जो देशी डाल कर,
चीनी डाली ,बना हलवा ,छा गए स्वादों के रंग
अब ये हम पे है कि कैसे , जियें अपनी जिंदगी ,
दाल चावल सी अलग या खिचड़ी बन स्वाद ले    
आटे की बस  सिर्फ रोटी बना  खायें  उमर भर ,
या कि फिर हलवा बना कर ,नित नया आल्हाद लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-