एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

गुंजाइश


गए लेने सौदा जब हम तो ,हमने लाला से कहा ,
और कुछ हो अगर गुंजाईश बतादो रेट में
मुफ्त की दावत में उनने इतना जम कर खा लिया ,
पानी पीने की भी गुंजाइश बची  ना पेट   में

इतनी पतली मोहरी की जीन्स टाइट का चलन ,
बैठे ,उठते जोर लगता ,घुटनो से जाती है फट
इसलिए ही फटी जीने आ गयी फैशन में है ,
पहनने और चलने उठने में है मिलती सहूलियत

सिलवाती जब कुशल गृहणी ब्लाउज या कुर्तियां ,
नाप में वो रखवाती है ,थोड़ी गुंजाइश सदा
जिससे यदि जो बदन फूले ,थोड़े टाँके हटा कर ,
काम में आ सके कपडा ,हो के फिट ,बाकायदा

जहाँ नाडा या इलास्टिक लाया जाता काम में ,
रहती उन कपड़ों में गुंजाईश की गुंजाईश सदा
कभी भी जिद ठान  करके ,अकड़ना अच्छा नहीं ,
समझौते की मन में रखना चाहिए ख्वाइश सदा  
५  
रेल का डिब्बा खचाखच ,है मुसाफिर से भरा ,
भीड़ इतनी कि नहीं है ,तिल भी रखने की जगह
स्टेशन पर चार चढ़ते ,हो जाते  एडजस्ट  है ,
थोड़ी गुंजाईश हमेशा रखो दिल में इस तरह

किसी से भी दुश्मनी यदि हो गयी कोई वजह ,
नहीं सख्ती ,लचीलापन हो सदा व्यवहार में
दोस्ती की फिर से गुंजाईश भी रखना चाहिए ,
क्या पता कब दुश्मनी जाए बदल फिर प्यार में

मारती थी डींग कॉलेज की वो लड़की गर्व से ,
सात उसके फ्रेंड है और सारा कॉलेज है फ़िदा
हमने बोला  द्रोपदी से आगे हो तुम दो कदम ,,
और भी क्या एक की ,गुंजाईश है हमको बता

मदन मोहन बहती 'घोटू '
 
हुस्न और इश्क

मूड का इन हुस्न वालों का भरोसा कुछ नहीं ,
मेहरबां हो जाए कब और कब खफा हो जाए ये
आप करते ही रहो ,इनसे गुजारिश प्यार की ,
और तुमको भाव ना दें ,बेवफ़ा हो जाएँ ये
आप उनको पटाने की लाख कोशिश कीजिये ,
फेर लेंगे मुंह कभी और कभी झट पट जायेंगे
तीखे तेवर दिखाएंगे ,कभी होकर के ख़फ़ा ,
और कभी मासूम बन के ,भोलापन दिखलायेंगे
पेशकश तुम ये करो ,आ जाओ उनके काम में ,
वो कहें घर पड़ा गंदा ,झाड़ू पोंछा मार दो
सिंक में कुछ जूठे बर्तन ,पड़े उनको मांज कर ,
कमरा गंदा पड़ा उसकी हुलिया  सुधार दो
सोचा था दिल लगाएंगे ,लग गए पर काम में ,
नालायक और  लालची ये मन नहीं पर मानता
बाँध कर के कितनी ही उम्मीद तुम उनसे रखो ,
ऊँट किस करवट पे बैठेगा न कोई  जानता
घास डालो गाय को तुम दूहने की चाह में ,
क्या पता जाए बिगड़ और सींग तुमको मार दे
दूल्हा बन कर चाव से ,घोड़ी पे तुम चढ़ने लगो ,,
बिदके घोड़ी ,गिरा तुमको ,हुलिया बिगाड़ दे
इसलिए बेहतर है सर से भूत उतरे इश्क़ का ,
आरजू पूरी न होती ,दुखता है ये जी बहुत
ना भरोसा मिले मंजिल ,डूबे या मंझधार में ,
हसीनो की सोहबत ,पड़ सकती है मंहंगी बहुत
प्यार जो करते है उनको झेलना पड़ता है सब ,
शादी के पहले भी या फिर शादी के पश्चात भी
ये है ऐसा चक्र जिसमे फंस कर खुशियां भी मिले ,
और दुखी हो ,पड़े करना ,तुमको पश्चाताप भी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चाय हो तुम

काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद  भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में

घोटू 

मंगलवार, 30 मार्च 2021

घटती आत्मियता

जैसे ही मतलब निकलता ,बता देते है धता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक मूल्यों को ,लोग अब खोने लगे
सेंटीमेंटल ना रहे है ,प्रेक्टिकल  होने लगे
रिश्ते अब रिसने लगे है ,मोहब्बत है घट गयी
मैं और मुनिया में ,दुनिया सिमट कर रह गयी
हुआ विगठन ,संगठन में ,डर रहा हमको सता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक बंधनो को ,तोड़ सब हमने दिया
होड़ पश्चिम से लगी और छोड़ सब हमने दिया
संस्कृति को भुलाया ,संस्कार सारे खो गये
कौन हम थे हुआ करते ,और अब क्या हो गये
आगे आगे और क्या होगा नहीं सकते बता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

दिवाली की जगमगाहट ,फीकी पड़ने लग गयी
होली के रंगों की अब ,रंगत उजड़ने लग गयी
बुजुर्गों प्रति  घट रही है श्रद्धा और  सदभावना
लॉकडाउन लग गया ,अब गुम हुआ अपनपना
लोग पढ़ लिख तो गए पर  बढ़ी ना बुद्धिमता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

हो रहे परिवर्तनों का ,यदि करें हम आकलन
बढ़ रहा है फोन पर ही ,'हाय 'हैल्लो ' का चलन
तार थे जो प्यार के अब हो रहे बेतार है
मिलना जुलना कम ,बदलता जा रहा व्यवहार है
रिश्ते नाते ,डगमगाते ,होगा क्या ,किसको पता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हैप्पी होली

होली आई और गयी ,अपने रंग बिखराय
हमने ,तुमने सभी ने ,किया खूब एन्जॉय
किया खूब एन्जॉय ,रंग जितने बिखराये
उनकी रंगत सबके मन में खुशियां लाये
होली के पकवान ख़ास गुझिये का कहना
जितने मीठे बाहर हो ,अंदर  भी रहना

घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-