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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

हुस्न और इश्क

मूड का इन हुस्न वालों का भरोसा कुछ नहीं ,
मेहरबां हो जाए कब और कब खफा हो जाए ये
आप करते ही रहो ,इनसे गुजारिश प्यार की ,
और तुमको भाव ना दें ,बेवफ़ा हो जाएँ ये
आप उनको पटाने की लाख कोशिश कीजिये ,
फेर लेंगे मुंह कभी और कभी झट पट जायेंगे
तीखे तेवर दिखाएंगे ,कभी होकर के ख़फ़ा ,
और कभी मासूम बन के ,भोलापन दिखलायेंगे
पेशकश तुम ये करो ,आ जाओ उनके काम में ,
वो कहें घर पड़ा गंदा ,झाड़ू पोंछा मार दो
सिंक में कुछ जूठे बर्तन ,पड़े उनको मांज कर ,
कमरा गंदा पड़ा उसकी हुलिया  सुधार दो
सोचा था दिल लगाएंगे ,लग गए पर काम में ,
नालायक और  लालची ये मन नहीं पर मानता
बाँध कर के कितनी ही उम्मीद तुम उनसे रखो ,
ऊँट किस करवट पे बैठेगा न कोई  जानता
घास डालो गाय को तुम दूहने की चाह में ,
क्या पता जाए बिगड़ और सींग तुमको मार दे
दूल्हा बन कर चाव से ,घोड़ी पे तुम चढ़ने लगो ,,
बिदके घोड़ी ,गिरा तुमको ,हुलिया बिगाड़ दे
इसलिए बेहतर है सर से भूत उतरे इश्क़ का ,
आरजू पूरी न होती ,दुखता है ये जी बहुत
ना भरोसा मिले मंजिल ,डूबे या मंझधार में ,
हसीनो की सोहबत ,पड़ सकती है मंहंगी बहुत
प्यार जो करते है उनको झेलना पड़ता है सब ,
शादी के पहले भी या फिर शादी के पश्चात भी
ये है ऐसा चक्र जिसमे फंस कर खुशियां भी मिले ,
और दुखी हो ,पड़े करना ,तुमको पश्चाताप भी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चाय हो तुम

काला तन ,रस रंग गुलाबी ,
घूँट घूँट तुम स्वाद  भरी
प्रातः मिलो ,लगता अम्बर से ,
आयी नाचती कोई परी
जब भी मिलती अच्छी लगती ,
थकन दूर और मिले तरी
चाय नहीं तुम ,चाह हृदय की ,
मेरे मन मंदिर उतरी
तुम्हारा चुंबन रसभीना ,
आग लगा देता मन में
स्वाद निराला ,रूप तुम्हारा ,
फुर्ती भर देता तन में

घोटू 

मंगलवार, 30 मार्च 2021

घटती आत्मियता

जैसे ही मतलब निकलता ,बता देते है धता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक मूल्यों को ,लोग अब खोने लगे
सेंटीमेंटल ना रहे है ,प्रेक्टिकल  होने लगे
रिश्ते अब रिसने लगे है ,मोहब्बत है घट गयी
मैं और मुनिया में ,दुनिया सिमट कर रह गयी
हुआ विगठन ,संगठन में ,डर रहा हमको सता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

पारिवारिक बंधनो को ,तोड़ सब हमने दिया
होड़ पश्चिम से लगी और छोड़ सब हमने दिया
संस्कृति को भुलाया ,संस्कार सारे खो गये
कौन हम थे हुआ करते ,और अब क्या हो गये
आगे आगे और क्या होगा नहीं सकते बता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

दिवाली की जगमगाहट ,फीकी पड़ने लग गयी
होली के रंगों की अब ,रंगत उजड़ने लग गयी
बुजुर्गों प्रति  घट रही है श्रद्धा और  सदभावना
लॉकडाउन लग गया ,अब गुम हुआ अपनपना
लोग पढ़ लिख तो गए पर  बढ़ी ना बुद्धिमता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

हो रहे परिवर्तनों का ,यदि करें हम आकलन
बढ़ रहा है फोन पर ही ,'हाय 'हैल्लो ' का चलन
तार थे जो प्यार के अब हो रहे बेतार है
मिलना जुलना कम ,बदलता जा रहा व्यवहार है
रिश्ते नाते ,डगमगाते ,होगा क्या ,किसको पता
धीरे धीरे लोगों में ,कम हो रही आत्मियता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हैप्पी होली

होली आई और गयी ,अपने रंग बिखराय
हमने ,तुमने सभी ने ,किया खूब एन्जॉय
किया खूब एन्जॉय ,रंग जितने बिखराये
उनकी रंगत सबके मन में खुशियां लाये
होली के पकवान ख़ास गुझिये का कहना
जितने मीठे बाहर हो ,अंदर  भी रहना

घोटू

सोमवार, 29 मार्च 2021

Re:

बढ़िया

On Sat, Mar 27, 2021, 10:32 AM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:

कोरोना ने करा दिया

इस कोरोना की दहशत ने ,सबको इतना डरा दिया
जो कोई करवा ना पाया , इसने वो सब करा दिया

बात कड़क से कड़क सास की ,बहू नहीं जो सुनती थी
दिन भर बक बक करती रहती ,और न घूंघट रखती थी
अब ये हालत ,कोरोना डर ,दिन भर पट्टी है मुंह पर
वाक युद्ध अब बंद हो गया ,बंद हो गयी चपर चपर
कैंची सी चलती जुबान पर, इसने ताला लगा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

माँ बेटी को समझाती थी , भाव वेग में नहीं बहो
अपने यार दोस्तों के तुम पास न जाओ ,दूर रहो
कोशिश लाख करी थी माँ ने ,पर बेटी ने सुना नहीं
अब कोरोना से बचने वो ,सबसे दूरी बना रही
अच्छे अच्छे जिद्दी को भी ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

शादी हो कि सगाई ,मुंडन बड़ी बड़ी दावत होती
लाखों का खर्चा ,खाना बरबाद ,फ़जीयत थी होती
लेकिन ऐसी बंदिश बाँधी ,कोरोना के चक्कर में
कितने बड़े बड़े आयोजन ,निपट गये ,सिमटे घर में
व्यर्थ दिखावा ,शो बाजी बंद,अनुशासन है कड़ा किया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

कॉन्फ्रेन्स ,मीटिंग ऑफिस की ,सभी वर्चुअल ,हुई बचत
घर से काम ,न ऑफिस जाना ,टली रोज की ये किल्लत
नामी और गिरामी सारे ,स्वामी बाबा,पूजास्थल
सारे अंतर ध्यान हो गए ,बंद हुए कोरोना डर
इनके सारे चमत्कार को ,कोरोना ने हरा दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मेडम ने चूल्हे चौके का ,सीखा काम ,पकाना भी
बंद हो गये पिक्चर शॉपिंग ,और होटल का खाना भी
साहब झाड़ू ,पोंछा बर्तन और सफाई सीख गए
बच्चे घर में डिसिप्लीन में ,बैठ पढाई सीख गए
परिवार की महिमा समझा ,आत्मनिर्भर है बना दिया
जो कोई करवा ना पाया ,कोरोना ने करा दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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