आज मैं असिया गया हूँ
बीस वर्षों पूर्व मेरी ,उमर थी जब साठ ऊपर
कर दिया मुझको गया था ,नौकरी से भी रिटायर
ये कहा हालत तुम्हारी ,ना रही अब काम लायक
बुढ़ापा आने लगा है और अब तुम गए हो थक
आदमी थे कभी बढ़िया ,हो मगर घटिया गए हो
ना रही बुद्धि नियंत्रित और तुम सठिया गए हो
किन्तु उसके बाद भी तेंतीस प्रतिशत वर्ष काटे
बीस वर्षों रहा मिलजुल,और सुख दुःख,सभी बांटे
बुढ़ापे की बेबसी से ,किन्तु बेबसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
जिंदगी के इस सफर में ,सैंकड़ों तूफ़ान देखे
कईअपनों ने भुलाया ,मीत कुछ अनजान देखे
गिरा ,सम्भला ,चोंट खाई ,करी मेहनत ,कुछ बना मैं
किसी को सीढ़ी बनाया ,किसी की सीढ़ी बना मैं
सोचता हूँ कभी मैंने ,क्या गमाया ,क्या कमाया
प्यार जी भर कर लुटाया ,तभी सबका प्यार पाया
किसी से कुछ नहीं माँगा ,बन सका उतना दिया हूँ
अब तलक जैसे जिया हूँ ,शान से लेकिन जिया हूँ
देख अपने हाल खस्ता ,मगर अब खिसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
खेल जो भी नियति ने ,लिखे थे ,सब खेल खेले
कभी पहनी पुष्पमाला ,और पत्थर कभी झेले
मुश्किलों के पहाड़ आये ,बीच ,पर ना डगमगाया
स्वाभिमानी शान से ,मस्तक हमेशा ही उठाया
भाग्य ने छीना अगर कुछ ,तो बहुत कुछ दिया भी है
दोस्तों ,शुभचिंतकों ने ,प्यार इतना किया भी है
जिंदगी कट गयी इतनी ,बिना चिंता ,ये क्या कम है
जी रहा अब भी ख़ुशी से ,नहीं मन में कोई ग़म है
चाहने वालों का अब भी ,हो मैं मन बसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
भूलने की बिमारी पर ,प्यार अपनों का न भूला
सीख ली आलोचकों से ,प्रशंसा पा नहीं फूला
लाख कोशिश करी ,मन से पर न छूटी मोह माया
भेद अपने पराये का ,भूल कर ना भूल पाया
नहीं कोई को दिखाया ,घाव जो दिल पर लगा है
कितनो ने ही ,मीठी मीठी ,बातें कर मुझको ठगा है
कोई ने यदि आस मुझसे ,कभी की ,मैंने न तोड़ी
हँसते गाते गुजर जाए ,बची अब जो उम्र थोड़ी
चाहूँ तोडूं ,सभी बंधन ,जिनमे मैं फँसिया गया हो
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बीस वर्षों पूर्व मेरी ,उमर थी जब साठ ऊपर
कर दिया मुझको गया था ,नौकरी से भी रिटायर
ये कहा हालत तुम्हारी ,ना रही अब काम लायक
बुढ़ापा आने लगा है और अब तुम गए हो थक
आदमी थे कभी बढ़िया ,हो मगर घटिया गए हो
ना रही बुद्धि नियंत्रित और तुम सठिया गए हो
किन्तु उसके बाद भी तेंतीस प्रतिशत वर्ष काटे
बीस वर्षों रहा मिलजुल,और सुख दुःख,सभी बांटे
बुढ़ापे की बेबसी से ,किन्तु बेबसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
जिंदगी के इस सफर में ,सैंकड़ों तूफ़ान देखे
कईअपनों ने भुलाया ,मीत कुछ अनजान देखे
गिरा ,सम्भला ,चोंट खाई ,करी मेहनत ,कुछ बना मैं
किसी को सीढ़ी बनाया ,किसी की सीढ़ी बना मैं
सोचता हूँ कभी मैंने ,क्या गमाया ,क्या कमाया
प्यार जी भर कर लुटाया ,तभी सबका प्यार पाया
किसी से कुछ नहीं माँगा ,बन सका उतना दिया हूँ
अब तलक जैसे जिया हूँ ,शान से लेकिन जिया हूँ
देख अपने हाल खस्ता ,मगर अब खिसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
खेल जो भी नियति ने ,लिखे थे ,सब खेल खेले
कभी पहनी पुष्पमाला ,और पत्थर कभी झेले
मुश्किलों के पहाड़ आये ,बीच ,पर ना डगमगाया
स्वाभिमानी शान से ,मस्तक हमेशा ही उठाया
भाग्य ने छीना अगर कुछ ,तो बहुत कुछ दिया भी है
दोस्तों ,शुभचिंतकों ने ,प्यार इतना किया भी है
जिंदगी कट गयी इतनी ,बिना चिंता ,ये क्या कम है
जी रहा अब भी ख़ुशी से ,नहीं मन में कोई ग़म है
चाहने वालों का अब भी ,हो मैं मन बसिया गया हूँ
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
भूलने की बिमारी पर ,प्यार अपनों का न भूला
सीख ली आलोचकों से ,प्रशंसा पा नहीं फूला
लाख कोशिश करी ,मन से पर न छूटी मोह माया
भेद अपने पराये का ,भूल कर ना भूल पाया
नहीं कोई को दिखाया ,घाव जो दिल पर लगा है
कितनो ने ही ,मीठी मीठी ,बातें कर मुझको ठगा है
कोई ने यदि आस मुझसे ,कभी की ,मैंने न तोड़ी
हँसते गाते गुजर जाए ,बची अब जो उम्र थोड़ी
चाहूँ तोडूं ,सभी बंधन ,जिनमे मैं फँसिया गया हो
साठ में सठिया गया था ,अस्सी में असिया गया हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '