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मंगलवार, 9 मार्च 2021

मैं  बहुत पिटा हूँ

बहुत खायी है मार वक़्त की , फिर भी हंसकर जीता हूँ  
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ

पाठ नहीं पढता स्कूल में ,करता था  अति  शैतानी
मास्टर साहब,पीटते छड़ीसे ,पड़ती मार मुझे खानी
घर में छोटे भाई बहन संग ,छेड़छाड़ करता झगड़ा
हुई शिकायत बाबूजी का ,पड़ता था झापट  तगड़ा
यार दोस्तों संग झगड़ों में ,बहुत गया मारा पीटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ ,मैं बहुत पिटा हूँ

उमर बड़ी  ,कॉलेज गया मैं ,रंग जवानी का छाया
लड़की के संग ,छेड़छाड़ की ,बहुत उन्होंने पिटवाया  
सुन्दर ,कोमल कामनियाँ ,मैं जिन्हे चाहता था दिल से
मेरा मजनू पना उतारा ,उनने चप्पल  सेंडिल से
फिर भी उन  हसीन  चेहरों पर ,मरा मिटा हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत  पिटा हूँ
,
फंसा गृहस्थी चक्कर में फिर ,मैं कोल्हू का बैल बना
पिटना और पटाते रहना ,मेरा हर दिन खेल बना
रोज रोज बच्चों की मांगे पत्नीजी की फरमाइश
तो फिर मेरे ना  पिटने की ,कैसे रहती गुंजाइश
मैं शतरंजी ,पिटा पियादा ,खाली  जेबें , रीता हूँ
मैं घिसा पिटा हूँ मैं बहुत पिटा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


हम तुम्हारा क्या लेते है

हम थोड़ा हंस गा लेते है
तो तुम्हारा क्या  लेते  है
बूढ़े होते ,टूटे दिल को,
बस थोड़ा समझा लेते है

शिकवे गिले भुला कर सारे
मिलते है जब बांह पसारे
हमसे विमुख हो गए थे जो ,
फिर से दोस्त बना लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

घुट घुट कर कैसा जीना रे
ग़म के आंसूं क्यों पीना रे
 चार दिनों के इस जीवन में ,
कुछ खुशियां बरसा लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

नींद आती है टुकड़े टुकड़े
सपने आते बिखरे ,बिखरे
अश्रु सींच ,बीती यादों को ,
कुछ हरियाली पा लेते है
हम तुम्हारा क्या लेते है

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
कोविड १९ का वेक्सीन लेने पर
   सुई के प्रति तीन चतुष्पदी

सुई छोटी है ,तीखी है ,अगर चुभती,दरद देती
मगर ये जिंदगी में आपको हरदम  मदद  देती
बटन टूटे को फिर से सी ,बनाती पहनने लायक ,
फटा कपड़ा रफू करती ,जो उदड़ा तो तुरुप देती  

जखम में जो फटी चमड़ी ,सुई से ही सिली जाती
कोई भी ऑपरेशन हो , काम में   सुई ही आती
ये चुभती है जो फूलों में ,बना देती है वरमाला ,
जब लगती बनके इंजेक्शन ,बिमारी दूर भग जाती

अगर काँटा चुभे पावों में ,सुई से निकलता है
जो बनके वेक्सीन लगती ,कोरोना इससे डरता है
पेन्ट हो शर्ट हो या कोट ,ब्लाउज हो या हो चोली ,
सुई से सिल के हर कपड़ा ,बना फैशन संवरता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 4 मार्च 2021

पक ही जाती है इश्किया खिचड़ी...


चूल्हा यहाँ पर
पतीला वहाँ पर,
फिर भी पक ही
जाती है
'इश्किया खिचड़ी',
जिससे आ जाता है
जायका ज़िन्दगी में,
और लगती है चलने
जैसे कि फिसली...

एक का चावल
दूसरे की दाल,
मुलाक़ात हो तो
तड़का कमाल...

कभी आ ही जाती है
बातों में मिर्ची,
कभी हो ही जाती हैं
नज़रें भी तिरछी...

कुछ खोजते हैं तब
तोहफ़े की लस्सी,
तो कुछ ढूंढते
आत्महत्या की रस्सी...

- विशाल चर्चित

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