दूरी बना कर रखो
सतयुग में भी कभी एक रावण होता था
बुद्धिमान ज्ञानी पंडित था ,
लेकिन वह अपने मस्तक पर ,
कई बुराई को ढोता था
वह जब तक भी जिया ,उन्माद में जिया
अन्ततः राम ने उसका हनन किया
राम चाहते तो अपने तीखे बाणो से ,
काट सकते थे ,उसके बुराइयों वाले सर ,
और रहने देते उसके मस्तक पर
सिर्फ एक सर
मानवता का ,बुद्धिमता का और ज्ञान का
वह भी अधिकारी हो सकता था सन्मान का
मगर ये हो न सका ,
क्योंकि बुरी सांगत का फल
अच्छाइयों को भी भुगतना पड़ता है ,
आज नहीं तो कल
और उसके अहंकार और बुराइयों के
सरों पर ,बुरी संगत का ये असर पड़ा
कि उसके ज्ञान और विवेक के,
सभी सरों को भी कटना पड़ा
और इस दृष्टान्त से हम ले ये सीख
अच्छाई और बुराई के बीच ,
अंतर बनाकर ही रखना है ठीक
इसलिए हम भी बीमारियों से ,
दो गज की दूरी बनाये रखें
और दुष्ट कोरोना से बचें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,
सतयुग में भी कभी एक रावण होता था
बुद्धिमान ज्ञानी पंडित था ,
लेकिन वह अपने मस्तक पर ,
कई बुराई को ढोता था
वह जब तक भी जिया ,उन्माद में जिया
अन्ततः राम ने उसका हनन किया
राम चाहते तो अपने तीखे बाणो से ,
काट सकते थे ,उसके बुराइयों वाले सर ,
और रहने देते उसके मस्तक पर
सिर्फ एक सर
मानवता का ,बुद्धिमता का और ज्ञान का
वह भी अधिकारी हो सकता था सन्मान का
मगर ये हो न सका ,
क्योंकि बुरी सांगत का फल
अच्छाइयों को भी भुगतना पड़ता है ,
आज नहीं तो कल
और उसके अहंकार और बुराइयों के
सरों पर ,बुरी संगत का ये असर पड़ा
कि उसके ज्ञान और विवेक के,
सभी सरों को भी कटना पड़ा
और इस दृष्टान्त से हम ले ये सीख
अच्छाई और बुराई के बीच ,
अंतर बनाकर ही रखना है ठीक
इसलिए हम भी बीमारियों से ,
दो गज की दूरी बनाये रखें
और दुष्ट कोरोना से बचें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,