कोरोना काल में गणपति अभिनन्दन
ना ढोल न ताशा ना उत्सव ,ना भजन कीर्तन ना गाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
हर साल लगा करती लाइन ,लम्बी दरशन को तुम्हारे
बस पल दो पल दर्शन होते ,भक्तों की भीड़भाड़ मारे
मैं अबकी बार तुम्हारे संग ,खुद बैठ सकूंगा देरी तक
जी खोल बता मैं पाऊंगा , सुख दुःख चिंताएं मेरी सब
मूषक के कान में ना कह कर ,सब हाल है सीधे बतलाना
चुपचाप शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
दस दिन तक विरह पीड़ सहते ,हर बार अकेले तुम आते
इस बार रिद्धि और सिद्धि संग ,आना ,खुश रहना ,मुस्काते
हर साल बना अपने हाथों ,मे तुम्हे चढ़ाता था मोदक
बंट जाते थे परशाद रूप ,वो पहुँच न पाते थे तुम तक
इस बार चढ़ाऊँ जब मोदक ,नित बड़े प्रेम से तुम खाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
ना ढोल न ताशा ना उत्सव ,ना भजन कीर्तन ना गाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
हर साल लगा करती लाइन ,लम्बी दरशन को तुम्हारे
बस पल दो पल दर्शन होते ,भक्तों की भीड़भाड़ मारे
मैं अबकी बार तुम्हारे संग ,खुद बैठ सकूंगा देरी तक
जी खोल बता मैं पाऊंगा , सुख दुःख चिंताएं मेरी सब
मूषक के कान में ना कह कर ,सब हाल है सीधे बतलाना
चुपचाप शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
दस दिन तक विरह पीड़ सहते ,हर बार अकेले तुम आते
इस बार रिद्धि और सिद्धि संग ,आना ,खुश रहना ,मुस्काते
हर साल बना अपने हाथों ,मे तुम्हे चढ़ाता था मोदक
बंट जाते थे परशाद रूप ,वो पहुँच न पाते थे तुम तक
इस बार चढ़ाऊँ जब मोदक ,नित बड़े प्रेम से तुम खाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '