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शनिवार, 22 अगस्त 2020

कोरोना काल में गणपति अभिनन्दन

ना ढोल न ताशा ना उत्सव ,ना भजन कीर्तन ना गाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

हर साल लगा करती लाइन ,लम्बी दरशन को तुम्हारे
बस पल दो पल दर्शन होते ,भक्तों की भीड़भाड़ मारे
मैं अबकी बार तुम्हारे संग ,खुद  बैठ सकूंगा देरी तक
जी खोल बता मैं पाऊंगा , सुख दुःख चिंताएं मेरी सब
मूषक के कान में ना कह कर ,सब हाल है सीधे बतलाना
चुपचाप शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

दस दिन तक विरह पीड़ सहते ,हर बार अकेले तुम आते
इस बार रिद्धि और सिद्धि संग ,आना ,खुश रहना ,मुस्काते
हर साल बना अपने हाथों ,मे  तुम्हे चढ़ाता था मोदक
बंट जाते थे परशाद रूप ,वो पहुँच न पाते थे तुम तक
इस बार चढ़ाऊँ जब मोदक ,नित बड़े प्रेम से तुम खाना
चुपचाप ,शोरगुल से बच कर ,इस बार गजानन तुम आना

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

क्षणिकाएं

प्यार

तुम्हारे प्रति मेरा प्यार
वैसा ही है जैसे दाढ़ी के बाल
कितना ही करलो ;शेव '
रोज प्रकट होकर रहते है 'सेव '

जाल
 
पत्नियाँ ,अपने पति के आसपास ,
बुन लेती है एक  ख़ास
रूप का ,प्यार का ,मोहमाया का जाल
उसे तोड़ कर निकल जाय ,
नहीं है किसी पति की मजाल

भाग्य

किसी के पीछे मत भागो ,
चाहे लड़की हो ,चाहे पैसा आपको लुभाएगा
क्योंकि वो अगर आपके भाग्य  में है ,
तो भाग कर अपनेआप आपके पास आएगा

मित्र
 
जो आपके अच्छे दिनों में ,
आपके लिए सर के बल आने का करते है गरूर
वो आपके बुरे दिनों में ,
उलटे पैरों भाग जाते है आपसे दूर
सच्चे मित्र ,हर हाल में ,आपके साथ चलते है ,
आपका हाथ थामे नजर आते है जरूर

संतुलन

अनावृष्टी
सूख फैलाती है
 दुर्भिक्ष और कंगाली लाती है
अतिवृष्टी ,
बाढ़ का कहर ढाती है ,
परेशानी और बदहाली लाती है
संतुलित बरसात ही ,
प्यास  बुझाती  है
जीवन में खुशहाली  लाती है

संस्कार

संस्कार ,
आटे की गोल चपाती की तरह होते है
जो संस्कृति के अनुसार
कहीं परांठा
कहीं डोसा
कहीं पैनकेक
और कहीं पिज़्ज़ा कहलाते है
और प्रचलन के अनुसार सब्जी को ,
कहीं अलग से
कहीं भीतर भर कर ,
कहीं ऊपर छिड़क कर खाये जाते है

घोटू  
ख्वाइश

ऐ खुदा ,ये खाखसार खादिम कब तक ख़ामोशी से
ख्यालों की दुनिया में खरामा खरामा जीता रहेगा
और ख्वामख़्वाह ख़ाली बैठा खून के घूँट पीता रहेगा
इसलिये ऐ  ख़ल्क़ के बादशाह ,मेरी ख्वाइश पूरी करवा दे
किसी ख़ास ,खूबसूरत ,खुशअदा ,खुशमिजाज ख़ातून को ,
मेरी शरीकेहयात और ख्वाबों की मलिका बनाकर भिजवा दे
जिस खुलेदिल ,खानदानी खातून की खुशामदीद मेरे जीवन को ,
खुशनुमा बना कर खुशहाली की खुशबू से महका दे
जिसकी शख्शियत की खसूसियत में मासूमियत हो
जो खुशहाल ,हमख़याल और खुशनियत हो
जो खुशपेशानी खूबसूरती का खजाना हो
जिसके मोहब्बत के खुमार में दिल दीवाना हो
जिसकी आँखों में चमक और चेहरे पर खिलखिलाहट हो
बोली में खनखनाहट और लबों पर मुस्कराहट हो
मैं  खुशनसीब ख़ुशी ख़ुशी उसकी खिदमत ,खातिरदारी ,
और ख़ुशामद में मशरूफ  रहूंगा
उसकी पूरी देख रेख कर खुदा से,
 उसकी ख़ैरख़्वाही की  दुआ मांगता रहूंगा
 
खाखसार  खादिम 'घोटू '

सोमवार, 17 अगस्त 2020

समोसा

प्रकृति ने तीन मौसम बनाये है
एक ग्रीष्म ,एक सर्दी और एक बरसात
पर इंसान ने बनाई है एक ऐसी चीज ,
जो तीनो मौसम का अहसास ,
कराती हो एक साथ
गरम हो तो लगे सुहानी
सर्दी में बहुत मन को लुभानी
जिसे जब भी देखो ,मुंह में आ जाए पानी
जिसको गरम गरम पाने के लिए ,
लोग लाइन लगाए रहते है
ऐसे हर ऋतू में सर्वप्रिय और
सर्वश्रेष्ट व्यंजन को लोग समोसा कहते है
श्वेताम्बर में लिपटा हुआ
सारी दुनिया का स्वाद अपने में समेटा हुआ
जब सांसारिक अनुभूतियों के उबलते तेल में
भातृभाव के साथ ,सपरिवार
तला जाता हुआ जब नज़र आता है यार
तो उसकी सोंधी सोंधी सुगंध  
हमारे नथुनों में भरती है  जो आनंद
उसके आगे नंदन वन की महक
 भी फीकी पड़ जाती है
क्योंकि यह खुशबू ,न सिर्फ मन को सुहाती है ,
बल्कि मुंह में पानी भी भर लाती है
समोसे से सुन्दर रूप में एक बात ख़ास है
इसके तीनो कोनो में त्रिदेव का वास है
ऐसा लगता है ब्रह्मा ,विष्णु और महेश
का एक साथ हो रहा हो अभिषेक
इसका तीन कोने लिया हुआ आकार
करवा देता है तीनो लोको  का साक्षत्कार
जब  गरम गरम समोसा ,
खट्टी मीठी चटनी के साथ मुंह में जाता है
भूलोक आकाश और पाताल ,
तीनो लोको के सुख का आभास हो जाता है
बाहरी सतह का करारापन
और उसके अंदर आत्मा का चटपटापन
स्वर्गिक  सुख का अनुभव साकार कर देता है
आँखों में तृप्ति की चमक भर देता है
संगीत के सातों स्वर का संगम समोसे में होता है
सरगम स से शुरू होती है ,
बीच में म ,और अंत में सा होता है
वैसे ही समोसे के शुरू में स ,बीच में म
और अंत में होता है सा
याने कि स्वाद के संगीत की सरगम है समोसा
दुनिया के कोने कोने में,
 ये तिकोने सलोने समोसे पाए जाते है
और किसी न किसी रूप में ,
बड़े ही चाव से खाये जाते है
जैसे इंसान ,भगवान की सर्वोत्तम कृति है
वैसे ही समोसा ,इंसान की सर्वोत्तम कृति है
वो चीज जिसे देख कर मुंह में पानी भर जाए
जिसे पाने की लालसा जग जाए
जो बाहर से करारी और अंदर से स्वाद हो
जिसे खाकर मन को मिलता आल्हाद हो
वो या तो हो सकता है किसी सुंदरी का बोसा
या फिर ताज़ा गरम गरम समोसा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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