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सोमवार, 10 अगस्त 2020

आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ये लोग किसलिए जलते हैं

ये लोग किसलिए जलते है
इर्षा के मारे तिल तिल जल ,
मन ही मन बहुत उबलते है
ये लोग किसलिए जलते है

कोई जल कर होता उज्जवल ,
बन कर भभूत ,चढ़ता सर पर
कोई जल कर बनता काजल ,
नयनो में अंज, करता सुन्दर  
कोई जल कर दीपक जैसा ,
फैलता जग भर  में प्रकाश
तो कोई शमा जैसा जलता ,
परवानो का करता  विनाश
हो पास नहीं जिसका प्रियतम ,
वह विरह आग में जलता है
भोजन को पका ,पेट भरने ,
घर घर में चूल्हा जलता है
कोई औरों की प्रगति देख ,
जलभुन कर खाक हुआ करता
कोई  गुस्से में गाली दे ,
जल कर गुश्ताख हुआ करता
कोई की प्रेम प्रतीक्षा में ,
जलते आँखों के दीपक है
होते सपूत है जो बच्चे ,
वो कहलाते कुलदीपक है
मनता दशहरा,जला रावण ,
दीपावली  , दीप जलाते  है
होली पर जला होलिका को,
हम सब त्यौहार मनाते है
पूजा में दीप आरती में ,
करते जब हवन ,जले समिधा
माँ  के मंदिर में ज्योत जले ,
मातारानी, हरती दुविधा
जलना संस्कृति का अभिन्न अंग ,
काया जलती ,जब मरते है
ये लोग इसलिए जलते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '         

रविवार, 9 अगस्त 2020

देवी वंदन

मैंने जब जब भी कहा तुम्हे ,लक्ष्मी ,तुम दौड़ी आयी और ,
श्रद्धा से सेवाभाव लिए ,तुम लगी दबाने पैर  मेरे
जब तुम्हे पुकारा सरस्वती ,तुम आ जिव्हा पर बैठ गयी ,
अपनी तारीफ़ में लिखवाये ,कविता और गीत बहुतेरे
जब अन्नपूर्णा मैं बोला ,मुझको स्वादिष्ट मिला भोजन ,
हो गयी  तृप्त  मेरी काया ,ढेरों मिठाई ,पकवान मिले
गलती से दुर्गा कभी कहा ,तुमने दिखलाये निज तेवर ,
हो गयी खफा और कह डाले ,मन के सब शिकवे और गिले
तुम सती साध्वी सीता सी ,मेरे संग संग ,भटको  वन वन ,
तुमको न अकेली मैं छोड़ूँ ,मुझको लगता डर रावण का
लेकिन मेरे मन को भाता ,वह रूप राधिका का ज्यादा ,
वह प्यार ,समर्पण ,छेड़छाड़ ,वह मधुर रास वृन्दावन का
मैं गया भूल गोकुल गलियां ,माखन की मटकी गोपी की ,
जब से रुक्मणि के संग बंधा ,रहना पड़ता अनुशासन में
तुम ही लक्ष्मी ,तुम सरस्वती ,मेरी अन्नपूर्णा  देवी तुम ,
तुम प्यार लुटाती सच्चे मन ,और सुख सरसाती जीवन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मेरी प्रियतम

तुम पूनम के चंदा जैसी ,अमृत बरसाती चंद्र किरण
प्राची की लाली से प्रकटी ,सूरज की रश्मि, प्रथम प्रथम
तुम्हारा प्रेम प्रकाश पुंज ,आलोकित करता है जीवन
मनभावन और मनोहर तुम ,सुन्दर ,सुंदरतर ,सुन्दरतम

है गाल गुलाब पंखुड़ियों से ,रस भरे अधर, रक्तिम रक्तिम
है कमलकली अधखुले नयन ,मदमाता सा चम्पई बदन
है पूरा तन रेशम रेशम ,और महक रहा चन्दन चन्दन
हो रही पल्ल्वित पुष्पों सी ,कोमल ,कोमलतर ,कोमलतम

 उर में है युगल कलश अमृत ,संचित पूँजी यौवन धन की
पतली डाली,कमनीय कमर,निखरी निखरी छवि है तन की
हिरणी सी चपल चाल ,मनहर ,और चंचल चंचल सी चितवन
मन के कण कण में बसी हुई ,तुम मेरी प्रिय ,प्रियतर,प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 8 अगस्त 2020

मंहगा सोना

कमजोरी हर नारी मन की
यह चाहत स्वर्णाभूषण की
पहनो मुख पर आती रौनक
बढ़ती उसकी जा रही चमक
है भाव रोज ऊपर  चढ़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

स्कूल के दिन है याद हमें
शैतानी वाला स्वाद हमें
कक्षा  में बोअर होते थे
पिछली  बेंचों पर सोते थे
पकडे ,मुर्गा बनना पड़ता
सोना कितना  मंहगा पड़ता

हम दफ्तर में थे थक जाते  
लोकल ट्रेनों से घर जाते
थक कर झपकी ले लेते हम
छूटा करता था स्टेशन
फिर लौट हमें आना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

निज देश प्रेम करने जागृत
एक सेमीनार था आयोजित
 मंच  पर बैठे थे मंत्री जी
लग गयी आँख ,आयी झपकी
पेपर में फोटू जब छपता
सोना कितना मंहगा पड़ता

कर बचत  गरीब कामवाली
ले आयी सोने की बाली  
पहनी जिस दिन था त्योंहार
ले गए छीन कर झपटमार
कट गए कान ,सिलना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

है चार माह भगवन सोते
शुभ कार्य नहीं कोई होते
मुहूरत अटका देता  रोडे
तड़फा करते ,प्रेमी जोड़े
जब इन्तजार करना पड़ता
सोना कितना मंहगा पड़ता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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