ये प्यार बुढ़ापे वाला है
ना आग धधकती सीने में ,ना मन में जलती ज्वाला है
धुंधली आँखों के मिलने का ,होता अंदाज निराला है
यह हंसी तुम्हारे होठों की ,अब भी करती मतवाला है
मैं अब भी तेरा कान्हा हूँ ,और तू मेरी बृजबाला है
हम मालामाल प्यार से है ,सुर ताल बुढ़ापे वाला है
संसार बुढ़ापे वाला है ,ये प्यार बुढ़ापे वाला है
ये प्रीत नहीं है अब तन की ,अब मन की प्रीत उमड़ती है
ज्यों ज्यों ये उमर बढ़ा करती ,परवान मोहब्बत चढ़ती है
ना हिचक,झिझक एक दूजे से ,मिट जाते है संकोच सभी
जब एक नजरिया हो जाता ,मिलते आपस के सोच सभी
इतने वर्षों तक एक साथ ,काफी कुछ देखा भाला है
दिलदार बुढ़ापे वाला है ,ये प्यार बुढ़ापे वाला है
बच्चे अपने अपने घर पर ,खुशहाल और आनंदित है
हम जिम्मेदारी मुक्त हुए ,और जीवन हुआ व्यवस्थित है
मन का संचित सब प्यार ,उंढेला करते एक दूसरे पर
अब हम खुद के खातिर जीते ,अवलम्बित एक दूसरे पर
मुश्किल में एक दूसरे को ,हमने खुद ही सम्भाला है
ये भार बुढ़ापे वाला है ,ये प्यार बुढ़ापे वाला है
जो छाये रहे जवानी में ,उन उन्मादों की उमर गयी
मैं चाँद तोड़ कर ला दूंगा ,उन वादों की अब उमर गयी
अब मुझे पता है तुम क्या हो ,और तुम्हे पता है मैं क्या हूँ
तुम बहती गंगा प्यार भरी ,मैं भरा प्रीत से दरिया हूँ
उठता था ज्वार कभी जिसमे ,अब शांत पड़ा मतवाला है
अभिसार बुढ़ापे वाला है ,ये प्यार बुढ़ापे वाला है
देता है तन अब साथ नहीं ,बिमारी ने है घेर लिया
परवाह नहीं करता कोई ,सब अपनों ने मुंह फेर लिया
समझौता कर हालातों से ,हम खुश रहते ,मुस्काते है
बीती यादों के साये में ,हम अपना समय बिताते है
यह दौर कठिन जीवन का पर ,इसका आनंद निराला है
यह अब भी मधु का प्याला है ये प्यार बुढ़ापे वाला है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '