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सोमवार, 8 जून 2020

सन 2020

परेशानियां मुंह फाड़े है ,मन में उठती टीस रे
कब तक हमें सतायेगा सन दो हजार और बीस रे

जब से आया नया बरस ये ,मचा रहा उत्पात रे
कितनी मुश्किल,परेशानियां,लाया अपने साथ रे
मानवता का दुश्मन बन कर ,फैल रहा कोरोना है
त्रसित दुखी इस बिमारी से घर का कोना कोना है
बंद देश का सब उत्पादन ,रेलें ,सड़क ,बाज़ार है
तार तार है अर्थव्यवस्था ,लाखों लोग  बेकार  है
श्रमिक पलायन करें गाँव को ,डर वाला  माहौल है
सब चिन्तित ,घर घुस बैठे ,खुशियों का बिस्तर गोल है
है तबाही का तांडव करते ,भारत में तूफ़ान है  
पूरब से ले पश्चिम तट पर , सागर लिये  उफान है
मौसम बदले ,कालचक्र से तू हमको मत पीस रे
कब तक हमें सतायेगा सन दो हज़ार और बीस रे
 
दिल्ली में दंगे करवा कर ,खूब   मचाई बरबादी
हिन्दू मुस्लिम बीच घृणा की खाई तूने खुदवा दी
इधर पडोसी पाक , बड़ी नापाक़ हरकतेँ करता है
और उत्तर में चीनी ड्रेगन ,गीदड़ भभकी  भरता है
दुर्घटना पर दुर्घटना है ,ओले कहीं ,कहीं शोले
और ऊपर से टिड्डी दल ने ,खेतों पर हमले बोले
दो महीने में सात बार ,आया भूकंप ,हिली धरती
बतला तेरा इरादा क्या है ,पूछ रही दुनिया डरती
बहुत नचाया  तूने हमको ,कितना और नचायेगा  
अभी सात महीने बाकी है ,तू क्या क्या दिखलायेगा
विश्व युद्ध तो नहीं तीसरा ,लिखा तेरे  नसीब  रे
कब तक हमें सताएगा सन  दो हज़ार और बीस रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '



रविवार, 7 जून 2020

शब्बाख़ैर

कह कर के शब्बाख़ैर वो  आराम कर रहे  
हमको न आती  नींद हम करवट बदल रहे
वो ख्वाब में खोये है ,हम खोये ख़याल में
हम ठंडी आहें भरते ,वो  खर्राटे  भर  रहे

घोटू 
बड़ी दूर की सूझी

तन्हा थे  वो बीमार थे  कोई न पूछता ,
दिन भर परेशां रहते थे ,बैठे हुए खाली
उनको भी बुढ़ापे में बड़ी दूर की सूझी ,
तिमारदारी के लिए एक नर्स बुलाली  
सुन्दर सी जवां नर्स की फैली जो खबर तो ,
हलचल सी मची ,लग गए बातें बनाने लोग
उनकी तबियत पूछने का लेके बहाना ,
उस नर्स के दीदार को घर आने लगे लोग
सुनसान उनके घर में एक रौनक सी छागयी ,
जब मिलने जुलने वालों की तादाद बढ़ गयी
एक नर्स के आ जाने का ऐसा हुआ असर
चेहरे पे ख़ुशी छागई ,तबियत सुधर  गयी

घोटू 

शनिवार, 6 जून 2020

गजल -इश्क़ की आग

उनको भी बुढ़ापे में लगी ,आग इश्क़ की
गाने लगे है आजकल वो ,राग इश्क़ की
उनका मिज़ाज़ सख्त ,मुलायम है हो गया
  बेसबरे  लगाने को है ,छलांग इश्क़ की
ज्यों ज्यों करीब कब्र के दिन आरहे है पास
बढ़ती ही जा रही है उनकी ,मांग इश्क़ की
जिन्दा जिगर में हसरतें ,अब भी हजार है ,
रहते है धुत नशे में ,पी के भांग इश्क़ की
देखा जो उनका बावलापन ,'घोटू 'ने कहा ,
इस उम्र में क्यों खींचते हो टांग इश्क़ की

मदन मोहन बहती 'घोटू '
फर्क क्यों है ?

सीधा सादा आदमी ,सदा गधा कहलाय
सीधी हो औरत अगर ,तो कहलाती गाय
तो कहलाती गाय ,फर्क क्यों ऐसा रहता
हो उच्श्रंखल मर्द ,सांड उसको जग कहता
कह घोटू कविराय ,अगर औरत उच्श्रंखल
उसको कहते लोग ,हिरणिया जैसी चंचल

घोटू 

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