बार बार भूकंप
घर और परिवार में हमेशा खटपट सा ,
कुछ न कुछ लगा ही रहता है
किसी की कोई बात ,किसी को चुभती है ,
कोई चुपचाप सहता है
कोई फटाफट दे देता है जबाब ,
अपनी प्रतिक्रिया दिखला ,
साफ़ कर देता है हिसाब
और मन का मलाल हो जाता है सफा
और मामला हो जाता है रफा दफा
थोड़ा सा गुस्सा ,थोड़ी सी माफ़ी
सुचारु जिंदगी जीने के लिए है काफी
पर कुछ लोग इन छोटी छोटी बातों को ,
मन में दबा कर रख लेते है
प्रत्यक्ष में कोई प्रतिक्रिया नहीं देते है
बस सहन किये जाते है
पर अंदर से छटपटाते है
और एक दिन उनके मन में ,
इन बातों का गुबार इतना भर जाता है
कि जब फूटता है तो,
परिवार का विभाजन कर जाता है
वैसे ही जब प्राकृतिक व्यवस्थाएं
उथल पुथल होती है
तो पृथ्वी के मन में हलचल होती है
तो पृथ्वी थोड़ी बहुत हिल कर
अपने को एडजस्ट लेती है कर
उस समय भूकंप के हल्के झटके आते है
तो सब घबराते है
मित्रों ,हमारी ये पृथ्वी माता ,
हमेशा से सहनशील रही है
जो हर बार एडजस्ट करके ठीक हो रही है
वरना कुपित होकर ,अगर
अपनी भावनाओं को रखेगी दबा कर
और मन का गुबार एक दिन जब फूट पड़ेगा
तो एक बड़ा भूकंप बन कर कहर टूट पड़ेगा
इसलिए अच्छा है भूकंप के ,
हल्के हल्के झटके आये और चले जायें
और हम एक बड़े भूकंप की,
विभीषिका से बच जायें
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '