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सोमवार, 11 मई 2020

भजन -कोरोना काल में

अब सौंप दिया इस जीवन का ,सब भार  तुम्हारे हाथों में
तुम लाओ स्वच्छता ,धोकर कर ,सौ बार ,तुम्हारे हाथों में

घातक ये  कीट करोना है ,यदि तुमको इससे बचना है ,
आवश्यक ,सेनेटाइजर की ,तलवार तुम्हारे  हाथों में

तुम दो गज सबसे दूर रहो ,कोई को पास न आने दो ,
कर जोड़ नमस्ते ,दिखलाओ ,सब प्यार तुम्हारे हाथों में

तुम केवल दूर से 'हाई'करो और'बाय करो बस हाथ हिला ,
वर्जित है हाथ मिलाने का ,व्यवहार  तुम्हारे हाथों में

ये व्याधि  फ़ैल रही इतना ,है परेशान  सारी दुनिया
घर से मत निकलो ,कुशल रहो ,सरकार तुम्हारे हाथों में

कुछ भी लाओ,पाओ,खाओ ,धोकर के काम उसे लाओ  ,
है संक्रमरण   से बचने का ,उपचार तुम्हारे  हाथों  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के कांटे

चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे
हर ओर मौन पसरा है,सन्नाटे ही सन्नाटे

मानव सामाजिक प्राणी,पर उसकी यह मजबूरी
रखना पड़ती अपनों से ,अब उसे बना कर दूरी
अपने सुख ,दुःख और पीड़ा,किसके संग,कैसे बांटे
चुभते है शूलों जैसे , ये कोरोना के कांटे

सब लोग है बंद घरों में ,सड़कें सुनसान पड़ी है
रुकगयी गति जीवन की,यह मुश्किल बहुत बड़ी है
कितने दिन चार दीवारी ,हो कैद जिंदगी काटें
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

मजदूर पलायन करते ,उत्पादन ठप्प है जबसे
सब व्यापारिक गतिविधियां ,मृतप्रायः पड़ी है तबसे
कैसे संभलेंगे ये सब ,हर रोज होरहे घाटे
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना के कांटे

यह कैसी भीषण विपदा ,सारी दुनिया में फैली
कर रही बहुत है पीड़ित ,अब और न जाए झेली
एक छोटे से वाइरस ने  ,सबको रख दिया हिलाके
चुभते है शूलों जैसे ,ये कोरोना  के कांटे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 10 मई 2020

का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

की ना मन की कोई शुद्धि
दूर बहुत हमसे सदबुद्धि
हम थे बस दौलत के प्यासे ,
रहे चाहते ,धन की वृद्धि

क्या है बुरा और क्या अच्छा
देते रहे  सभी को  गच्चा
हवस बसी मन में पैसे की ,
चाहे पक्का हो या कच्चा

भुला आत्मीयता ,अपनापन
तोड़ दिये ,पारिवारिक बंधन
भुला दिए सब रिश्ते नाते ,
जुट कर रहे ,कमाने में धन

माया माया ,केवल माया
बहुत कमाया ,सुख ना पाया
भगते रहे ,स्वर्ण मृग पीछे ,
लेकिन उसने ,बहुत छलाया

मन का चैन ,अमन सब खोया
काया का कंचन सब खोया
अपना स्वार्थ साधने खातिर ,
बहुमूल्य ,जीवन सब खोया

बीत गयी जब यूं ही जवानी
वृद्ध हुए तब बात ये जानी
खाली हाथ जाएंगे बस हम ,
दौलत साथ नहीं ये जानी

नाम प्रभु का अगर सुमरते
झोली रामनाम से भरते
सुख,संतोष,शांति से जीते ,
माया के पीछे ना भगते

अपने सब अब लगे भुलाने
पास अंत आया तब जाने
रहते समय ,न आई सुबुद्धि ,
का वर्षा ,जब कृषि सुखाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
कागा ,तू माने ना माने

कागा तू माने ना माने
जबसे तूने प्यास बुझाने
ऊंचा करने जल का स्तर
चुग चुग करके कंकर पत्थर
अधजल भरी हुई मटकी में
डाले थे शीतल जल पीने
डाली चोंच ,कर दिया जूंठी
तबसे उसकी किस्मत रूठी
वो माटी की मटकी प्यारी
पड़ी तिरस्कृत ,है बेचारी
पिया करते लोग आजकल
बोतल भर फ्रिज का ठंडाजल
कोई न पूछे ,बहुत दुखी मन
कागा ये सब तेरे कारण
यही नहीं वो दिन भी थे तब
घर के आगे कांव कांव जब
तू करता ,होता अंदेशा
आये कोई ना कोई सन्देशा
खबर पिया की जो मिल जाती
विरहन ,सोने चोंच मढ़ाती  
देखो अब दिन आये कैसे
मोबाईल पर आये संदेशे
पहले श्राद्धपक्ष में भोजन
करने को जब आते ब्राह्मण
पहला अंश तुझे अर्पित कर
लोग बुलाते ,तुझको छत पर
तेरे द्वारा  ,पाकर भोजन
हो जाते थे ,तृप्त पितृजन
तू है काक भुशंडी ,ज्ञानी
शनि देव का वाहन प्राणी
लोग लगे पर ,तुझे भुलाने
कागा तू ,माने न माने

मदन मोहन बहती 'घोटू ;
लगता नहीं है दिल  मेरा---

 लगता नहीं है दिल मेरा ,दिन भर मकान में
किसने है आके डाल दी ,आफत सी जान में
कह दो इस 'करोना' से ,कहीं दूर जा बसे ,
या लौट जाये फिर से वो ,वापस बुहान में
उमरे तमाम हुस्न की सोहबत में कट गयी ,
ना झांकता है कोई ,बंद दिल की दूकान में
'घोटू 'बजन है बढ़ रहा ,हफ्ते में दो किलो ,
इतना इज़ाफ़ा  हो गया, अब  खानपान  में

घोटू  

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