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सोमवार, 4 मई 2020

घोटू के पद

घोटू ,कोई हमें समझाये
दिन भर घर में बैठ अकेले ,कैसे समय बिताये
काम नहीं करने की आदत ,मेहरी भी ना आये
पति पत्नी  बूढ़े अशक्त है   ,झाड़ू  लगा न पायें  
मना निकलना ,तो सब्जी फल ,दूध कहाँ से लाये
खाना भी अब बना न पाते ,रोज रोज क्या  खायें
मुख पर पट्टी बंधी हुई है ,ज्यादा बोल न पायें
सेनेटाइजर में दारू की ,बदबू  नहीं सुहाये
'घोटू'अब तो इन्तजार है ,कब कोरोना  जाये

घोटू 

शनिवार, 2 मई 2020

कोरोना डर  क्या क्या भूले  



बहुत त्रसित और दुखी हो गए ,जीवन पद्धति बदल गयी ,

देखो क्या क्या  हम तुम और सब ,कोरोना डर भूल गए

लॉक डाउन ने ऐसा हमको ,घर के अंदर बंद किया ,

टी वी से चिपके रहते हम ,जाना बाहर  भूल गए

पहले गर्मी की छुट्टी  में , बच्चे नानी घर जाते थे  

कोरोना के कारण बंध कर  ,नानी का घर भूल गए


न तो चाट के ठेले लगते ,ना वो आलू की टिक्की ,

स्वाद गोलगप्पों का प्यारा ,पानी भर भर ,भूल गए

हलवाई की दुकानों से ,आये न खुशबू जलेबी की ,

वो गुलाब जामुन ,रसगुल्ले ,रबड़ी घेवर भूल गए

ना तो बाज़ारों में रौनक ,मॉल सभी सुनसान पड़े ,

पॉपकॉर्न पिक्चर हालों में ,खाना जी भर ,भूल गए

अब ना भीड़ भरे वो उत्सव ,शादी ब्याह बारातों में ,

छत्तीसों व्यंजन का खाना ,प्लेटें भर भर भूल गए

बच्चे मम्मी पापा सब मिल ,घर भर का सब काम करें ,

बात बात पर रौब दिखाना, तीखे तेवर भूल गए

लौट आये संस्कार ,नमस्ते, हाथ जोड़ अब करते है ,

दूरी रखते ,प्यार जताना ,अब झप्पी भर ,भूल गए

 खुद को  बहुत सूरमा समझे बैठे मार  मार मच्छर ,

आया कोरोना ,हम घर छुप कर ,लेना टक्कर भूल गए

ये सच है ,पॉल्यूशन कम है ,जल नदियों का शुद्ध हुआ ,

मुश्किल था जब लेना साँसें ,अब वो मंजर भूल गए



मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
घोटू के पद

सखी री ,कोरोना के कारण
बार बार धो ,हाथ हो गए ,,गोरे और मुलायम
अगर मुंह भी धोना पड़ता ,रूप निखरता कुंदन
दक्ष हो गए ,गृह कार्यों में ,घर घर सभी पतिगण
सीख गयी गृहणियां बनाना ,तरह तरह के व्यंजन
ना शॉपिंग ,ना होटल पिक्चर ,खर्च हुए कितने कम
गले न मिलते ,हाथ जोड़ कर ,लोग करे अभिनन्दन
रोमांटिक हो गए पिया जी ,प्यार लुटाते  हरदम
कह 'घोटू 'गृहयुद्ध कम हुए ,और घट गयी अनबन
सखी री ,कोरोना के कारण

घोटू   
कोरोना दर  क्या क्या भूले  

बहुत त्रसित और दुखी हो गए ,जीवन पद्धति बदल गयी ,
देखो क्या क्या  हम तुम और सबकोरोना डर भूल गए
लॉक डाउन ने ऐसा हमको ,घर के अंदर बंद किया ,
टी वी से चिपके रहते हम ,जाना बाहर  भूल गए
पहले गर्मी की छुट्टी  में , बच्चे नानी घर जाते थे  
कोरोना के कारण बंध कर  ,नानी का घर भूल गए
साईकिल दौड़ाते बच्चे ,खेल कूद मैदानों में ,
ना क्रिकेट की बेटिंग ,बॉलिंग ,रन स्कोर भूल गए
न तो चाट के ठेले लगते ,ना वो आलू की टिक्की ,
स्वाद गोलगप्पों का प्यारा ,पानी भर भर ,भूल गए
हलवाई की दुकानों से ,आये न खुशबू जलेबी की ,
वो गुलाब जामुन ,रसगुल्ले ,रबड़ी घेवर भूल गए
ना तो बाज़ारों में रौनक ,मॉल सभी सुनसान पड़े ,
पॉपकॉर्न पिक्चर हालों में ,खाना जी भर ,भूल गए
अब ना भीड़ भरे वो उत्सव ,शादी ब्याह बारातों में ,
छत्तीसों व्यंजन का खाना ,प्लेटें भर भर भूल गए
बच्चे मम्मी पापा सब मिल ,घर भर का सब काम करें ,
बात बात पर रौब दिखाना तीखे तेवर भूल गए
लौट आये संस्कार ,नमस्ते, हाथ जोड़ अब करते है ,
दूरी रखते ,प्यार जताना ,अब झप्पी भर ,भूल गए
 खुद को  बहुत सूरमा समझे बैठे मार  मार मच्छर ,
आया कोरोना ,हम डर कर ,लेना टक्कर भूल गए
ये सच है ,पॉल्यूशन कम है ,जल नदियों का शुद्ध हुआ ,
मुश्किल था जब लेना साँसें ,अब वो मंजर भूल गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शुक्रवार, 1 मई 2020

लॉक डाउन -एक चिंतन

चिड़ियों ने उड़ना ना छोड़ा ,पंछी भी चहकते ,गाते है
फूलों की महक अब भी कायम ,भँवरे अब भी मंडराते है
बहती है हवा अब भी शीतल ,नदियां बहती है कल कल कल
लहरें समुद्र में उठती है और झरते भी झरते है  झर झर
उगते है रोज सूर्य  चंदा ,तारे भी चमकते है  चमचम
सब काम कर रहे अपना तो  ,क्यों घर में घुस कर बैठे हम
प्रकति की लायी आफत से ,प्रकृति है खुद भयभीत नहीं
इस तरह चुरा आँखें छुपना ,हिम्मतवालों की रीत नहीं
रस्ता यदि कंटक कीच भरा ,तो चलो बचाकर ,संभल संभळ
लेकिन यह बिलकुल उचित नहीं ,तुम बैठ जाओ ,बंद करो सफर
जीवन में  कठिन कठिन  विपदा, तो रहती  आती जाती है  
करना सघर्ष हमें पड़ता ,तब ही मंजिल मिल पाती है
जो  मिली चुनौती है हमको ,क्यों भाग रहे ,पीछे हट कर
इतिहास करेगा माफ़ नहीं ,कह कर कमजोर हमें कायर
सब बिगड़ जाएगा तारतम्य ,हालात कठिन हो जाएंगे
फिर से पटरी पर लाने में ,हमको बरसों लग जाएंगे
हो गयी बहुत तालाबंदी ,अब उचित यही ,संघर्ष करो
और चला बंद उद्योगों को ,फिर से अपना उत्कर्ष करो
कर गए पलायन श्रमिक कई ,उद्योग चलाना उनके बिन
है काम परेशानी वाला  मेहनत से ही होगा मुमकिन
चालीस दिन में है सीख लिया ,कोरोना से कैसे लड़ना
भय छोड़ सामना करना है और प्रगति के पथ पर बढ़ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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