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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

एक सवैया -हिरण हो गया

 नैन बसी सुन्दर छवि रमणी की ,हिरणी से नैन ,रूप मतवारो
 हिरन हुई सब चाह ,लोग जब ,समझायो भेद हिरण को सारो
स्वरण हिरण पीछे गए राम जी ,इहाँ रावण  सीता हर  डारो
काले हिरण की चाह  के कारण ,जेल गयो ,सलमान  बिचारो

घोटू 
कोरोना पर घोटू का एक पद

माई री मोहे बहुत सतायो कोरोना
मोसे कहत ,रहो घर में ही ,बाहर घूमो फिरो ना
 मुख से छीनी ,गरम जलेबी अरु रबड़ी का दोना
कामधाम तज ,पड़े निठल्ले ,दिन भर घर में सोना
आलस के वश ,फूल गया है ,तन का कोना कोना
परेशान  सब  ,कंवारे बेचारे ,ना शादी ना गौना
मुख पर पट्टी ,गज भर दूरी ,बस रोना  ही रोना
कह 'घोटू' कवि ,तंग हुए सब ,अब तो मुक्ति दो ना

घोटू 

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग पर हो ,सच्चे  शिक्षक
मन से हो  सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 सिखलाते हो  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा में आ जाती  शुद्धि
साठ  साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टीवी से  बस   चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
बना  बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमको  इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही ,शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी  चिंता  करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
हरि सुमरन  में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
मोह तजो प्रभु को भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण
वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग हो ,सच्चे  शिक्षक
सच्चे हो सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 हमें पढ़ाते  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा की तब होती शुद्धि
साथ साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टी वी  बस  ही चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
किसी बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमका इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी चिटा करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय ,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
राम भजन में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
तज मोह माया प्रभु भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण

 
कोरोना -घोटू के चार छक्के

कोरोना के कोप से ,बहुत दुखी इंसान
ढूंढ रहा सारा जगत ,इसका कोई निदान
इसका कोई  निदान ,बड़ी घातक बिमारी
त्राहि त्राहि कर रही ,आज दुनिया है सारी
आता है तूफ़ान ,लोग घर घुस कर रहते
घर रह बचो कोरोना से ,'घोटू 'कवि कहते

रामायण  में जिस तरह ,छिप कर बैठे राम
एक बाण में कर दिया ,बाली  काम तमाम
बाली काम तमाम ,शत्रु का बल पहचानो
नहीं सामने आओ ,अगर 'घोटू 'की मानो
मत बाहर घर से निकलो है तुम्हे मनाही
नहीं  चाहते जन जीवन की अगर तबाही

परेशान सब लोग है ,बंद है कारोबार
सूनी सब सड़कें पड़ी ,है वीरान बज़ार
है वीरान बज़ार,दिहाड़ी करने वाले
सब मजदूर बेकार ,पड़े खाने के लाले
'घोटू 'कितने सेवाभावी सामने  आये
जिनने खाना और राशन ,सबमे बंटवाये

बड़े बड़े सब डॉक्टर ,नर्स और स्टाफ
बीमारों की कर रहे ,है सेवा दिन रात
है सेवा दिन रात ,पोलिस के बंदे सारे
रहे व्यवस्था क़ानून की ये सभी संभाले
सब सफाई कर्मी ने भी कर्तव्य निभाया
डटे रहे जी जान ,कोरोना फैल न पाया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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