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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वृद्ध चालीसा

दोहा
हे ज्ञानी और महामना ,तुम अनुभव की खान
देव तुल्य तुम हो पुरुष ,कोटिशः तुम्हे प्रणाम
वृद्ध नहीं समृद्ध तुम , उमर  साठ से पार
कृपादृष्टी बरसाइये ,कर हम पर उपकार

चौपाई
जय जय देव बुजुर्ग हमारे
तुम्ही विरासत दुर्ग हमारे
बरसे सब पर प्यार तुम्हारा
सर पर आशीर्वाद  तुम्हारा  
पग पग हो ,सच्चे  शिक्षक
सच्चे हो सबके शुभ चिंतक
करते फ़िकर सभी घरभर की
रखो खबर ,अन्दर  बाहर की
 हमें पढ़ाते  ,पाठ ज्ञान का
शुभ स्वास्थ्य और खान पान का
परम्पराओं के रखवाले
सब रीति रिवाज संभाले
सुना पुराने किस्से ,गाथा
गर्वित ऊंचा होता माथा
आती चमक बुझी आँखों में
तुमसे कोई नहीं लाखों में
अनुभव की जब होती वृद्धि
आत्मा की तब होती शुद्धि
साथ साल इसमें लग जाते
तब जाकर तुम वृद्ध कहाते
कर देती सरकार रिटायर
तुम्हे बैठना पड़ता है घर
दिन भर पेपर करते चाटा
गलती पर ,बच्चों को डांटा
टी वी  बस  ही चिपके रहते
बुरा न कभी ,किसी से कहते
ढला हुआ तन ,मन में  गर्मी
छूट न पाती ,पर  बेशरमी
आँखे फाड़ करो तुम देखा
रूप षोडसी ,सुंदरियों का
ये आदत ,अब भी है बाकी
करते रहते ,ताका झांकी
किसी बहाने ,करते बातें
इसी तरह बस मन बहलाते
यूं तो बिगड़ा ,साज तुम्हारा
है आशिक़ मिज़ाज  तुम्हारा
हो कितना ही बूढा बन्दर
नहीं गुलाटी वो भूले पर
ढीले है पुरजे सब तन के
फिर भी रहते हो बनठन के
बालों पर ख़िज़ाब लगाते
याद जवानी की फिर लाते
दिन दिन सेहत बिगड़ रही है
तुमका इसका ख्याल नहीं है
है मधुमेह ,बढ़ रही शक्कर
पर मिठाइयां ,खाते  जी भर
और स्वाद के मारे थोड़े
खाओ समोसे ,चाट पकोड़े
बड़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
फ़िक्र नहीं करते रत्ती भर  
बस करते ,जो आये मन में
चाह पूर्ण हो सब जीवन में
पास डॉक्टरों  के भी जाते
दवा,गोलियां रहते  खाते
यही सोच कर ,लेते टॉनिक
जीवन हो लम्बा ,जाऊं टिक
इतनी जीर्ण शीर्ण है काया
नहीं छूटती ,तुमसे माया
कितनी बार हृदय है टूटा
परिवार का मोह न छूटा
देता ध्यान न कोई तुम पर
तुमको सबकी चिंता है पर
त्योंहारों में घर के सारे
छूते है आ चरण तुम्हारे
बस तुम इससे खुश हो जाते
लगते प्यारे ,रिश्ते नाते
लेकिन तुम्हे  जान कर बूढा
लोग समझते ,घर का कूड़ा
तन कमजोर  न मन कमजोरी
विनती इसीलिये कर जोरी
उलझो मत परिवार मोह में
सिमटे मत तुम रहो खोह में
सबकी चिटा करना छोडो
मोह माया का ,पिंजरा तोड़ो
अब भी समय ,जाग तुम जाओ
प्रभु चरणों में ध्यान लगाओ
भजन करो तुम सच्चे मन से
राम भजन में लगो लगन से
इस जीवन से तर जाओगे
वरना यूं ही मर जाओगे

दोहा
चालीसा यह वृद्ध का ,कह घोटू समझाय
तज मोह माया प्रभु भजो ,जन्म सफल हो जाय

अथः श्री वृद्ध चालीसा सम्पूर्ण

 
कोरोना -घोटू के चार छक्के

कोरोना के कोप से ,बहुत दुखी इंसान
ढूंढ रहा सारा जगत ,इसका कोई निदान
इसका कोई  निदान ,बड़ी घातक बिमारी
त्राहि त्राहि कर रही ,आज दुनिया है सारी
आता है तूफ़ान ,लोग घर घुस कर रहते
घर रह बचो कोरोना से ,'घोटू 'कवि कहते

रामायण  में जिस तरह ,छिप कर बैठे राम
एक बाण में कर दिया ,बाली  काम तमाम
बाली काम तमाम ,शत्रु का बल पहचानो
नहीं सामने आओ ,अगर 'घोटू 'की मानो
मत बाहर घर से निकलो है तुम्हे मनाही
नहीं  चाहते जन जीवन की अगर तबाही

परेशान सब लोग है ,बंद है कारोबार
सूनी सब सड़कें पड़ी ,है वीरान बज़ार
है वीरान बज़ार,दिहाड़ी करने वाले
सब मजदूर बेकार ,पड़े खाने के लाले
'घोटू 'कितने सेवाभावी सामने  आये
जिनने खाना और राशन ,सबमे बंटवाये

बड़े बड़े सब डॉक्टर ,नर्स और स्टाफ
बीमारों की कर रहे ,है सेवा दिन रात
है सेवा दिन रात ,पोलिस के बंदे सारे
रहे व्यवस्था क़ानून की ये सभी संभाले
सब सफाई कर्मी ने भी कर्तव्य निभाया
डटे रहे जी जान ,कोरोना फैल न पाया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 26 अप्रैल 2020

सवैये कोरोना के

जीवन को सब रस ,चूस लियो डस डस ,वाइरस एक बुहान से आयो
सारे जगत को रख्यो गफलत में ,चीन ने काहू को ना बतलायो
फैली महामारी जब दुनिया में सारी तो लाखों के प्राणो पे संकट छायो
ऐसे कोरोना से लड़ने को मोदी ने ,सबको ही घर में बिठाय छुपायो

आवत नहीं बाज,जालसाज,दगाबाज, परेशान आज सब ,चीनियों की चाल से    
फैला दियो वाइरस ,भारी सी बिमारी वालो ,दुनिया के लोग सब ,हुए बदहाल से
थोड़े से जमाती ,खुरापाती ,उत्पाती बने ,फैलादी बिमारी खुद ,रहे न संभाल से
मोदी को कमाल देखो हार गयो  महाकाल ,महामारी फैल नहीं पायी देखभाल से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
कोरोना के कर्मवीरों  के प्रति

ओ कोरोना केकर्मवीर,तुमको मेरा ,शतशत प्रणाम
तुम्हारी मेहनत ,सेवा ने ,कोरोना पर कसदी  लगाम  

थी बड़ी विकट ही परिस्तिथि एकदम अन्जान बिमारी थी
सब साधन थे उपलब्ध नहीं ,और परेशानियां  भारी थी
उस पर डर संकम्रण का था ,पर तुम सेवा में लगे रहे
घर बार छोड़ कितनी रातें ,तुम ड्यूटी पर रह ,जगे रहे
यह सोच कोरोना घातक पर ,पीछे ना कदम हटाया है
कितनो को बचा मृत्यु मुख से ,तुमने कर्तव्य निभाया है
डॉक्टर हो या नर्सिंग स्टाफ ,या फिर सेवा कर्मी सारे
 पोलिस के अफसर ,दारोगा ,क़ानून के बन कर रखवाले
ये  वर्दी वाले  देवदूत ,मन में सेवा संकल्प लिये
सब है हक़दार प्रशंसा के ,दिन रात जिन्होंने एक किये
तुम हो विशिष्ट ,कर्तव्यनिष्ट ,हम तुम्हारे आभारी है
तुम्हारी त्याग तपस्या के ,बल पर कोरोना हारी है
है ऋणी तुम्हारे हम सब ही  ,ना भूलेगें  ये अहसान
ओ कोरोना के कर्मवीर ,मेरा तुमको शत शत प्रणाम
 
मदन मोहन बाहेती ;घोटू '

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना की  देन

कहते हर एक बुराई के पीछे कुछ छुपी भलाई है
इस कोरोना के संकट ने ,हमको ये बात बताई है
ये सच है कि इसके कारण ,हमने दुःख बहुत उठाया है
पर आई क्षमता लड़ने की ,हमने कितना कुछ पाया है
सब रखते ख्याल सफाई का ,धोते है हाथ सलीके से
सब्जी फल जो भी लाते है ,धो खाते ,सही तरीके से
ना  भीड़  सिनेमा हालों में ,ना यूं ही विचरणा ,मालों में
आपस में आई निकटता है ,और प्यार बढ़ा घरवालों में
बचने को बोरियत से दिन भर ,कुछ महिलाओं ने ठीक किया
गूगल में रेसिपी पढ़ कर ,पकवान बनाना सीख लिया
अब  बहुत न होते  भंडारे ,मातारानी के जगराते
शादी सगाई की भीड़ घटी ,ना लम्बी चौड़ी बारातें  
ना नेताओं की वो रैली ,ना स्नेह मिलन के सम्मेलन
लग गयी लगाम ,नहीं होते ,अब भीड़ भाड़ वाले फंक्शन
कितना ज्यादा सुख मिलता था वो अपनी शान दिखाने में
शोशेबाजी ,गाना ,डीजे ,पकवान पचीसों खिलाने  में
अपनानी पड़ी सादगी है ,इस कीट कोरोना के कारण
सब कोशिश करते ,ना खाएं ,बाजारों से आया भोजन
इतना परिवर्तन आ ही गया है लोगो के व्यवहारों में
रखते सामजिक दूरी बना ,हर उत्सव और त्योहारों में
जरुरतमंदो को दान दिया ,लोगों ने खाना,राशन का
मानवता मन में जगा गया ,यह कठिन पर्व अनुशसन का
जब भी आता बदलाव कभी होती है सबको कठिनाई
चालीस दिन करी प्रेक्टिस फिर नव जीवन पद्धिति अपनाइ
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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