वो इक्कीस दिन
एक दिन पत्नी बहुत खफा थी ,गुस्सा उनके सर पर था
बोली ,मेरे लिए ,तुम्हारे पास, वक़्त ना ,पल भर का
इतने बिज़ी हो गए हो तुम ,ख्याल न खुद का रख पाते
न तो ढंग से खाते पीते ,न ही प्यार ही दिखलाते
हमने भी महसूस किया ,सच बात कही है पत्नी ने
वादा किया कि दो हफ्ते हम लेंगे छुट्टी ,गर्मी में
जहाँ कहोगी तुम ,बस हम तुम ,अपना वक़्त गुजारेंगे
हनीमून को दोहराएंगे ,मिल कर मस्ती मारेंगे
प्लान कर रहे थे हम ये सब ,पर एलान हुआ एक दिन
कोरोना के कारण सब कुछ बंद रहेगा ,इक्कीस दिन
सारे दफ्तर बंद ,सिनेमा,मॉल ,दुकानों पर ताला
हम खुश थे ,मन चाहा अवसर ,मोदीजी ने दे डाला
काम धाम कुछ नहीं ,अकेले ,हम और पत्नी ,बैठे घर
लाभ उठाएंगे अवसर का ,मस्ती मारेंगे जी भर
हम दोनों खुश ,चहक रहे थे ,पहले दिन तो लगा मजा
काम वालियां जब ना आयी दूजे दिन ,तो लगी सजा
करो खुद ही सब झाड़ू पोंछा ,पका खाओ,मांजो बरतन
घर की डस्टिंग ,कपडे धोना ,काम करो सब नौकर बन
थोड़े काम किये पत्नी ने , थोड़े हमने ,बाँट लिए
आपस सहयोग किया कुछ दिन मुश्किल से काट लिए
हो जाते थे पस्त इस तरह ,सभी मस्तियाँ भूल गए
हनीमून दोहराने वाले ,सपने सभी फिजूल गए
ना कर सकते ,सैर सपाटा ,नहीं सिनेमा ,ना होटल
घर बैठे बस काम करो और टीवी तुम देखो दिन भर
फुर्र आशिक़ी हुई ,होगयी शुरू,रोज तू तू ,मै मै
कभी कल्पना ,ऐसे हॉलीडे की ,ना थी सपने में
चेन तोड़ने कोरोना की ,चैन हमारा टूट गया
प्यार मोहब्बत के वादों का ,सारा भांडा फूट गया
होता झगड़ा रोज मगर हम ,रह जाते मन में घुट कर
ना पत्नी मइके जा सकती ,ना हम जा सकते बाहर
इतने दिन ,पत्नी के संग रह यही समझ में आता है
रिश्तों में ज्यादा नजदीकी से खटास ,आ जाता है
दोष सभी था हालातों का ,अब हम किससे करे गिला
इक्कीस दिन के हनीमून में ,इक किस मुश्किल से न मिला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक दिन पत्नी बहुत खफा थी ,गुस्सा उनके सर पर था
बोली ,मेरे लिए ,तुम्हारे पास, वक़्त ना ,पल भर का
इतने बिज़ी हो गए हो तुम ,ख्याल न खुद का रख पाते
न तो ढंग से खाते पीते ,न ही प्यार ही दिखलाते
हमने भी महसूस किया ,सच बात कही है पत्नी ने
वादा किया कि दो हफ्ते हम लेंगे छुट्टी ,गर्मी में
जहाँ कहोगी तुम ,बस हम तुम ,अपना वक़्त गुजारेंगे
हनीमून को दोहराएंगे ,मिल कर मस्ती मारेंगे
प्लान कर रहे थे हम ये सब ,पर एलान हुआ एक दिन
कोरोना के कारण सब कुछ बंद रहेगा ,इक्कीस दिन
सारे दफ्तर बंद ,सिनेमा,मॉल ,दुकानों पर ताला
हम खुश थे ,मन चाहा अवसर ,मोदीजी ने दे डाला
काम धाम कुछ नहीं ,अकेले ,हम और पत्नी ,बैठे घर
लाभ उठाएंगे अवसर का ,मस्ती मारेंगे जी भर
हम दोनों खुश ,चहक रहे थे ,पहले दिन तो लगा मजा
काम वालियां जब ना आयी दूजे दिन ,तो लगी सजा
करो खुद ही सब झाड़ू पोंछा ,पका खाओ,मांजो बरतन
घर की डस्टिंग ,कपडे धोना ,काम करो सब नौकर बन
थोड़े काम किये पत्नी ने , थोड़े हमने ,बाँट लिए
आपस सहयोग किया कुछ दिन मुश्किल से काट लिए
हो जाते थे पस्त इस तरह ,सभी मस्तियाँ भूल गए
हनीमून दोहराने वाले ,सपने सभी फिजूल गए
ना कर सकते ,सैर सपाटा ,नहीं सिनेमा ,ना होटल
घर बैठे बस काम करो और टीवी तुम देखो दिन भर
फुर्र आशिक़ी हुई ,होगयी शुरू,रोज तू तू ,मै मै
कभी कल्पना ,ऐसे हॉलीडे की ,ना थी सपने में
चेन तोड़ने कोरोना की ,चैन हमारा टूट गया
प्यार मोहब्बत के वादों का ,सारा भांडा फूट गया
होता झगड़ा रोज मगर हम ,रह जाते मन में घुट कर
ना पत्नी मइके जा सकती ,ना हम जा सकते बाहर
इतने दिन ,पत्नी के संग रह यही समझ में आता है
रिश्तों में ज्यादा नजदीकी से खटास ,आ जाता है
दोष सभी था हालातों का ,अब हम किससे करे गिला
इक्कीस दिन के हनीमून में ,इक किस मुश्किल से न मिला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '