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सोमवार, 30 मार्च 2020

वो  इक्कीस दिन

एक दिन पत्नी बहुत खफा थी ,गुस्सा उनके सर पर था
बोली ,मेरे लिए ,तुम्हारे पास, वक़्त ना ,पल  भर  का
इतने  बिज़ी हो गए हो तुम ,ख्याल न खुद का रख पाते
न तो ढंग से  खाते  पीते ,न ही प्यार ही  दिखलाते
हमने भी महसूस किया ,सच बात कही है पत्नी ने
वादा किया कि दो  हफ्ते  हम लेंगे छुट्टी  ,गर्मी  में
जहाँ कहोगी तुम ,बस हम तुम ,अपना वक़्त गुजारेंगे
हनीमून को दोहराएंगे ,मिल कर मस्ती मारेंगे
प्लान कर रहे थे हम ये सब ,पर एलान  हुआ एक दिन
कोरोना के कारण सब कुछ बंद रहेगा ,इक्कीस दिन
सारे दफ्तर बंद ,सिनेमा,मॉल ,दुकानों पर ताला
हम खुश थे ,मन चाहा अवसर ,मोदीजी ने दे डाला
काम धाम कुछ नहीं ,अकेले ,हम और पत्नी ,बैठे घर
 लाभ उठाएंगे अवसर का ,मस्ती मारेंगे  जी  भर
हम दोनों खुश ,चहक रहे थे ,पहले दिन तो लगा मजा
काम वालियां जब ना आयी दूजे दिन ,तो लगी सजा
करो खुद ही सब झाड़ू पोंछा ,पका खाओ,मांजो बरतन
घर की डस्टिंग ,कपडे धोना ,काम करो सब नौकर बन
थोड़े काम किये पत्नी ने , थोड़े  हमने ,बाँट लिए
आपस सहयोग किया कुछ दिन मुश्किल से काट लिए
हो जाते थे पस्त  इस तरह ,सभी मस्तियाँ भूल गए
हनीमून दोहराने वाले ,सपने सभी फिजूल गए
ना कर सकते ,सैर सपाटा ,नहीं सिनेमा ,ना होटल
घर बैठे बस काम करो और टीवी तुम देखो दिन भर
फुर्र आशिक़ी हुई ,होगयी शुरू,रोज तू तू ,मै मै
कभी कल्पना ,ऐसे  हॉलीडे की ,ना थी सपने में
चेन तोड़ने कोरोना की ,चैन हमारा टूट गया
प्यार मोहब्बत के वादों का ,सारा भांडा  फूट  गया
होता झगड़ा रोज मगर हम ,रह जाते मन में घुट कर
ना पत्नी मइके जा सकती ,ना हम जा सकते  बाहर
इतने दिन ,पत्नी के संग रह  यही समझ में आता  है
रिश्तों में ज्यादा नजदीकी से खटास ,आ जाता है
दोष सभी था हालातों का ,अब हम किससे करे गिला
इक्कीस दिन के हनीमून में ,इक किस मुश्किल से न मिला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

शनिवार, 28 मार्च 2020

कैद

एक तो हम उनके दिल में पहले से ही  कैद थे ,
उसपे किस्मत ने है देखो  ,जुल्म ऐसा कर दिया
चार दीवारी में बंध कर ,रहने को मजबूर है ,
करोना के कहर ने है ,कैद घर में कर दिया

घोटू 
आदत बिगड़ न जाए

लड़ने को करोना से ,एकांत है जरूरी ,
बचना है महामारी ,ज्यादा नहीं बढ़ जाए
इतने दिनों घर बैठे ,काटा न वक़्त ऐसे ,
डर  है कहीं हमारी,आदत बिगड़ न जाए

घोटू  
करोना के कारण

न हो ऐसा ,करोना के कहर  से, देश ये दहले
हमें एकांत में रहना ,जरूरी सबसे है पहले
धड़ी है ये मुसीबत की ,चंद  दिन घर में ही रहलें
पढ़े हम कुछ,लिखे हम कुछ ,देख कर टीवी मन बहले
कभी बैठें,कभी लेटें ,कभी फिर घर में ही टहलें
भलाई जिसमे सबकी है ,परेशानी जरा सहलें

घोटू 
करोना का कहर - आठों प्रहर

कल कुर्सी का हथ्था बोला  ,कब तक बांह दबाओगे ,
थोड़ी देर छोड़ दो मुझको ,खुला चैन से रहने दो
टी वी का रिमोट मिमियाया ,बार बार क्यों बटन दबा,
 मेरी हालत पतली करदी ,मुझको टिक कर रहने दो
सिरहाने का तकिया भी गुस्सा हो मुझ पर गुर्राया ,
बोअर हो गया ,खर्राटे सुन ,हटो ,सांस लेनी मुझको
बीबी बोली बंद करो यह तरह तरह की फरमाइश ,
रोज पकाना ,झाड़ू ,बरतन ,सब करना पड़ता मुझको
हाथ जोड़ कर साबुन बोला  ,बार बार घिसते मुझको ,
धोकर हाथ पड़े हो पीछे ,चैन न तुमको आये है
अरे करोना ,सत्यानाशी ,तूने ये हालत करदी ,
तुझ कारण ,एकांतवास ने ,क्या क्या दिन दिखलाये है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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