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रविवार, 30 जून 2019

आज गरीबी फैशन में है

तेल विहीन केश है सूखे ,  दाढ़ी बढ़ी ,नहीं कटवाते
फटी हुई और तार तार सी ,जीन्स पहन कर है इतराते
कंगालों सा बना हुलिया ,जाने क्या इनके मन में है
                                  आज गरीबी फैशन में है  
खाली जेब ,पास ना पैसा ,बात बात में करें उधारी
 क्रेडिट कार्ड ,बैंक का कर्जा ,लोन चुकाओ ,मारामारी
घर और कार ,फ्रिज ,फर्नीचर ,सभी बैंक के बंधन में है
                                       आज गरीबी फैशन में है
पूरा दिन भर ,पति और पत्नी ,ड्यूटी पर जाते रोजाना
जंक  फ़ूड से पेट भर  रहे, ना नसीब में ताज़ा  खाना
,अस्त व्यस्त और पस्त जिंदगी नहीं कोई सुख जीवन में है
                                         आज गरीबी फैशन में है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 27 जून 2019

गर्मी की छुट्टियां -तब और अब

एक जमाना था जब
जैसे ही बच्चों की परीक्षायें निपटती थी
और गर्मी की छुट्टी लगती थी
हमारी पत्नीजी ,बच्चों के साथ ,
सीधे अपने मायके भगती थी
वैसा ही प्रोग्राम उनकी बहनो का भी होता था
जो देर सबेर अपने बच्चों के साथ ,
मायके आ धमकती थी
और जब सब बहने इकट्ठी हो जाती थी
तो ससुराल की व्यस्त जिंदगी से दूर ,
बच्चों की छुट्टियों के साथ साथ ,
खुद भी छुट्टियां मनाती थी
बस दिन भर खाना पीना और  गप्पे मारना
इनका शगल होता था
बच्चे मिलजुल कर ,धमाल चौकड़ी मचाते थे ,
घर में खूब कोलाहल होता था
जब पूरा कुनबा जुड़ता था
तो उनकी माँ का भी पूरा प्यार उमड़ता था
रोज बनाये जाते थे तरह तरह के पकवान
और मंगाये जाते थे टोकरे भर आम
जिन्हे सब रात को छत पर बैठ कर खाया करते थे
देर तक गप्पे मारते और
रात को वहीँ सो जाया करते थे
मायके में बीबियां मनाती थी टोटल छुट्टी
भाई बहन से मेलमिलाप और पतिदेव से कुट्टी
बेचारे पतिदेव ,अकेले ,रूखी सूखी
या जैसी भी बन पड़ती ,खाया करते थे
और छुट्टियों के दिन गिनते हुए ,
कैसे भी तन्हाई में अपना काम चलाया करते थे
तब की छुट्टियां और आजकल की छुट्टिया ,
इनमे होता था बड़ा फर्क
तब आजकल की तरह नहीं होता था
छुटियों के लिए कोई होमवर्क या प्रोजेक्ट वर्क
वर्ना आजकल की छुट्टियों में तो बच्चों का
हो जाता है बेड़ा गर्क
बस कहीं कहीं ,आठ दस दिन के लिए ,
'समरकेम्प 'लगाए जाते है
जहाँ थोड़े खेलकूद और कुछ हुनर सिखाये जाते है
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ,
अनुशासन में रहने को कहा जाता है
और इसमें भी बड़ा खर्चा आता है
पर उन दिनों  छुटियों में बेफिक्र ,
दादा दादी या नाना नानी के घर जाना
परिवार के अन्य बच्चों के साथ मिल कर
मस्तियाँ  करना और मजे उठाना
दरअसल ये भी एक तरह के 'समरकेम्प 'होते थे
जहाँ चचेरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहन ,
साथ साथ रह कर ,भाईचारे के बीज बोते थे
एक दुसरे से अच्छी पहचान और प्यार बढ़ाया जाता  था
ये वो समरकेम्प होते थे जहाँ ,
संयुक्त परिवार के सुख और
रिश्तेदारी निभाने का पाठ पढ़ाया जाता था
इनमे बच्चे ,खेल खेल में  या स्पर्धा में
या नानी  दादी से शाबाशी पाने
बहुत कुछ सीख जाया करते थे
रिश्तों की अहमियत पहचान जाया करते थे
मौसियों,भुआओ  और मामियो से प्यार बढ़ता था
इस मेलजोल से उनका व्यक्तित्व निखरता था
बचपन में हर वर्ष ,कुछ दिन ,
साथ साथ रहने से ,रिश्ते इतने पनपते थे
कि वो ताउम्र अच्छी तरह निभते थे
वरना आज के कई बच्चे अपने ,
चचरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहनो को ,
जिन्हे आजकल 'कजिन ' कहते है ,
अच्छी तरह जानते तक नहीं है  
पहचानते तक नहीं है
इसका कारण हम आजकल पहले जैसी ,
गर्मी की छुट्टियां नहीं मना रहे है
इसलिए भाईचारे के पौधे सूखते जारहे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 26 जून 2019

मन तो करता है
 
कहीं कोई सुन्दर सी लड़की ,जो दिख जाती है ,
कैसे भी हम उसे पटायें ,मन तो करता  है
वस्त्र चीर कर ,रूप रश्मि जब ,झलक दिखाती है ,
बार बार हम दर्शन पायें ,मन तो करता है
नीला अम्बर ,मस्त पवन और दूप सुनहरी है ,
बन विहंग ,हम भी उड़ जायें ,मन तो  करता है
सिकते हो भुट्टे और सौंधी खुशबू आती हो  ,
चबा न पायें ,लेकिन खाएं ,मन तो करता है
शुगर बढ़ी ,मिष्ठान मना पर गरम जलेबी है ,
जी ललचाये ,खा ना पाएं ,मन तो करता है
उम्र बढ़ गयी ,शिथिल हुआ तन ,हिम्मत नहीं रही ,
पर यौवन सुख ,फिर से पाएं ,मन तो करता है
चार कदम चल लेने पर भी ,सांस फूलती है ,
कभी कभी हम दौड़ लगाएं ,मन तो करता है
दीवाना ,मतवाला लोभी मचला करता है ,
कैसे, कौन इसे समझाए मन तो करता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
आईने के पीछेवाला शख्स

मन  विदीर्ण
तन जीर्ण शीर्ण
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
उम्र में लगता ,मुझसे बहुत बड़ा है
 रह रह कर
पीड़ाये सह सह कर
उसकी  आँखें  पथरा  गयी है
चेहरे पर उदासी छा गयी है
मायूसियों ने उसे  घेर लिया है
खुशियों ने मुंह फेर लिया है
देखो चेहरा कैसा मुरझाया पड़ा है
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
क्या वो मैं हूँ या मेरा अक्स है
नहीं नहीं ,वो मैं नहीं हो सकता ,
वो तो कोई दूसरा ही शख्स है
मैं तो हँसता हूँ ,गाता हूँ
हरदम मुस्काता हूँ
चौकन्ना और चुस्त हूँ
एकदम दुरुस्त हूँ
मेरे मन में सबके लिए प्यार बसा है
मुझमे जीने की लालसा है
उदासियाँ मुझसे कोसों दूर है
मेरी जिंदादिली मशहूर है
उम्र कितनी भी हो जाय ,
मैं खुशियां खो नहीं सकता
इसके जैसा मेरा हाल  हो नहीं सकता
इस पर  तो मनहूसियत का रंग चढ़ा है
आईने के पीछे ,वो कौन शख्स खड़ा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,

सोमवार, 24 जून 2019

सास बहू संवाद

सास बोली बहू से कि ,तू  नई है
बुरे अच्छे का पता तुझको नहीं है
जो भी करती आई मैं ,वो ही सहीहै  
मुझसे अच्छा ,घर में  कोई भी नहीं है
मुझको मालुम ,घर को कैसे सजाते है
 मुझको मालुम,पैसा कैसे बचाते  है
तू नयी ,नौसिखिया ,तूने न जाना
कितना मुश्किल ,सफलता से घर चलाना
जवानी के गर्व में इठला न किंचित
मोहल्ले के सभी है  मेरे परिचित
बात मेरी ,गाँव सारा मानता है
तुझको मुश्किल से ही कोई जानता है
मैं बड़ी हूँ ,तुझे यदि ना भान होगा
सासपन मेरा यूं ही कुरबान होगा
चुप न रह पाती भले आराम में हूँ
ढूंढती कमियां तेरे हर काम में हूँ
कहीं ऐसा न हो तू गर्वान्वित हो
लोगों का दिल जीत ले,लाभान्वित हो
भूल मत ,मैंने बहू तुझको बनाया
भूल मत ,सर पर तुझे मैंने चढ़ाया
क्या पता था ,बजा तू यूं बीन देगी
मुझसे ही तू मेरा बेटा छीन लेगी
इसलिए सुन ,बढ़ न तू मुझसे अगाडी
तू अनाडी ,और पुरानी  मैं खिलाड़ी
अनुभव और ज्ञान का अहसास हूँ मैं
बात मेरी मान ,तेरी सास हूँ मैं
बहू बोली ,सास बलिहारी तुम्हारी
तुम्हारे पद चिन्ह पर चल रही सारी
सिर्फ मेरी सोच में है कुछ समर्पण
पाएं घरवाले ख़ुशी ,कर रही अर्पण
तन और मन से ,जो भी मुझसे बन सका है
फिर भी माथा आपका क्यों ठनकता है
भूल सकता कौन है तुम्हारी हस्ती
बहुत दिन तक चलाई तुमने गृहस्थी
थक  गयी  होगी ,जरा आराम देखो  
शांति से मैं कर रही वो काम देखो
लालसा सत्ता की है जो भी हटा दो
मन में लालच है अगर ,उसको घटा दो
आपने की सेवा ,पाया खूब मेवा
छोड़ गृहसेवा ,करो अब प्रभु सेवा

घोटू

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