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सोमवार, 1 जनवरी 2018

धूप भरी सन्डे दोपहरी -वर्किंग कपल की 

आओ ,जिंदगी के कुछ लम्हे ,संग बितालें ,हम तुम मिल कर 
गरम धूप में ,तन को सेकें ,खाएं मूंगफली  छील  छील  कर
आओ मतलब हीन करें कुछ बातें यूं ही बचपने  वाली 
या फिर सूरज की गर्मी में  चुप  चुप बैठें,खाली खाली 
आओ बिताये ,कुछ ऐसे पल ,जिनमे कोई फ़िक्र नहीं हो 
घर की चिंताएं ,दफ्तर की बातों का कुछ  जिक्र नहीं हो 
इस सर्दी के मौसम की ये प्यारी धूप भरी ,दोपहरी 
उसपर रविवार की छुट्टी,लगे जिंदगी ,ठहरी ठहरी 
पियें गरम चाय ,चुस्की ले ,संग में गरम पकोड़े खायें 
हफ्ते भर में ,एक दिवस तो,हंस कर खुद के लिए बितायें 
लेपटॉप ,मोबाईल छोड़े,यूं ही बैठें, हाथ पकड़ कर 
वरना कल से वही जिंदगी ,तुम अपने ,मैं अपने दफ्तर 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

धन्यवाद कपिल जी 
हमारे उजले केश और बढ़ती उम्र को देख आपने हमें ६०-७०-के दशक के गांव के लिए सही चुना 
पर एक बात बतादे की हम तब भी जवान थे अब भी जवान है बस सर्दी का मौसम आ गया है 
समय बदल रहा है -हर चीज का अंदाज बदल रहा है -दासछिद्रो वाला काला टेलीफोन पहले
 पुश बटन हुआ और अब मोबाईल पर उंगलिया फिसलने लगी है ,
हमें याद है जब हम बच्चे थे ,पिता से इतना डरते थे. 
कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था 
और बच्चे आजकल के हो गए मॉडर्न इतने है,
पिता से पूछते है मम्मी को कैसे पटाया था 
तो समय से साथ हमारी सोच.हमारा नज़रिया भी बदल रहा है और यही दास्ताँ हमारी फिल्मो की 
भी है -गीतों की आत्मा वही है पर कहने का अंदाज बदल गया है ,गीतों की भाषा में बोलों तो तब का गाना जो
'हवा में उड़ता जाये,मेरा लाल दुपट्टा मलमल  का' से 'ओ  लाल डुपट्टेवाली अपना नाम तो बता 'होते हुए
 आज 'काली तेरी जुल्फे पंरांदा  तेरा लाल नी 'पर आ गया है 
इन्तजार इन्तजार इन्तजार ,जिदगी में ये ही लगा रहता है यार 
हम तेरा इन्तजार करेंगे कयामत तक खुदा करे की कयामत हो और तू आये 
या फि आ जा रे परदेशी या हमरे गाँव कोई आएगा 
कितने ही ऐसे फ़िल्मी नग्मे है जो किसी के इन्तजार में गाये गए है 
याद करिये ६०-७० के दशक की वो फिल्म जिसमे परमसुन्दरी मधुबाला किसी के इंतजार में एक मधुर
 गीत गुनगुनाती थी जो आज भी उतना ही मधुर है -सुनिए श्रीमती उषा सुशिल के शब्दों में -उषाजी हमारे
 ऑरेंजकाउन्टी की संगीत मर्मज्ञ है और बच्चों को संगीत सिखाती भी है 
तो गीत सुनिए 
आएगा आएगा आएगा आने वाला 
२ सुनी आपने इस गीत की अंतिम पंक्तियाँ ,नायिका कहती है 
कर बैठा भूल वो ,ले आया फूल वो, उससे कहो जाए चाँद लेकर आये '
कितनी डिमांडिंग हो गयी है आज की नायिकाएं 
हमारे जमाने में ये ही फूल खत में दाल कर प्रेम प्रदर्शन होता था 
फूल तुम्हे भेः है खत में। फूल नहीं मेरा दिल है   
या रह में फूल बिछा कर नायिका से निवेदन करता था पाँव छूलेनेडो फूलो को इनायत होगी 
खैर ,आजकल के व्यस्त जीवन में लोगो को मुस्कराने भर का समय ही नहीं मिलता बस 
कभी कभी कुछ पल आते है जब आदमी किसे की मुस्कराहटों पर कुर्बान हो जाता है 
इन्ही भावनाओ को व्यक्त करते हुए हमारे प्रिय श्री जुल्का जी गीत सुना रहे है 

किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार 
३ चाँद  जे हाँ चाँद ये एक ऐसा कैरेक्टर एक्टर है जो कई फिल्मो में अलग अलग रोल निभाता रहा है 
कभी लोरी में वो बच्चों का मामा बन जाता है ,कभी मेहबूब बन कर  आता है जब नायिका गाती  है 'तू मेरा चाँद मै  तेरी 
चांदनी 'कभी जासूस बन जाता है 'ो चाँद जहाँ वो जाए तू इनके साथ जाना ,हर रात खबर लाना'
कभी ईद का चाँद,कभी करवा चौथ का चांद हमारे प्रिय सतीश शर्मा जी अपनी मेहबूबा में चाँद ढूँढा है और गए रहे है 

चाँद सी हो मेहबूबा मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था 
४ अभी पिछले पुराने गाने में शर्मा जी ने अपनी मेहबूबा को चाँद सी बतलाया था वैसे बीते दसको में 
एक प्रसिद्द गीत आया था चौदंवी का चाँद हो या महताब हो 
जो भी भी हो तुम खुदा की कसम ,लाजबाब हो 
ऐसे ही प्रेम अपनी चाँद से मुखड़े वाली प्रियतमा के साथ जब चांदनी में अभिसार करते है
 तो चाँद से ही सवाल कर बैठते है क्या  कैसे बतलायेंगे  तरह छानेवाले छाबड़ा जी 
 
मैंने   पूछा चाँद से 
५ चाँद ने क्या जबाब दिया ये तो पता नहीं पर नायिका ने आ एक प्रश्न जरूर पूछ लिया की 
हम दोनों एक दुसरे को अच्छी तरह से जानते भी नहीं और एक दुसरे पर इस तरह फ़िदा है की 
जैसे एक दुसरे के लिए ही बने हो और इसी भावना को वह गीत के माध्यम से पूछ रही है श्रीमती रीता जोशी 

न हम तुम्हे जाने 

६ प्यार में पागल नायिका अपने सब बंधनो को छोड़ उड़ना चाहती है ,उसके पंख लग जाते है और 
पिया के साथ जीवन जीने की तमन्ना इस तरह जागृत हो जाती है की वो नाचती हुई गाती है -श्रीमती सुनीत शर्मा जी के स्वरों में 

आज फिर जीने की तमन्ना है 


७ प्यार के इस खेल में वेड होते है ,कसमे खाई जाती है पर ये जमाना बड़ा जालिम होता है 
 दो प्रेमियों के बीच में गलतफहमियां पैदा कर देता है -कभी अमीरी गरीबी की दीवार खड़ी हो जाती है 
कभी जाती धरम की ,कभी माँ बाप का इमोशनल ब्लेकमैल -ये सारे खेल प्यार के दुश्मन बन जाते है  
सारे वादे भुला दिए जाते है और नायक जाता है हमारे प्रिय दिग्विजय जी के स्वरों में 

क्या हुआ तेरा वादा
 
८ सपने कब सबके पूरे हुए है -याद है वो गीत 'सपने सपने,कब हुए अपने ,
आँख खुली और टूट गए '
या फिर वो गाना -टूटे हुए ख्वाबों ने ,हमको ये सिखाया है 
दिल ने जिसे पाया था ,आँखों ने गमाया है
जब सपने टूटते है तो प्रेमी कपिल शर्मा की तरह विरक्त होकर गाता है 

ये दुनिया ये महफ़िल तेरे काम की नहीं 
९  याद है वो पुराना गाना 'जब दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेंगे '
या फिर वो गीत 'मिली खाक में मोहब्बत,जला दिल का आशियाना 
जो थी कल तलक हक़ीक़त ,वो ही बन गयी फ़साना 
बस ऐसे ही गम के दौर में हमारे प्यारे गजल गायक श्री ढल साहेब सुना रहे है 
एक प्यारी सी ग़ज़ल 
यूँ हसरतों के दाग निगाहो ने बोलिये 
१० शीत  ऋतू का अंत होता है -कोयल की कुहुक सुनाई देती है ,मौसम अंगड़ाई लेता है 
गलतफहमियां दूर होती है -नायक नायिका एक दुसरे की तलाश में निकल पड़ते है और
 हमारे मनीष यादव और उनकी जीवनसंगिनी  नुपूर त्रिपाठी जी एक दूजे को ढूंढते हुए गाते है 
 
जाने जा,ढूंढता फिर रहा 

८० से ९० के दशक के  गीत 

१ कोई कंवरी कन्या जब सपने बुनती है तो अपने लिए एक राजकुमार चुनती है 
जो सफ़ेद घोड़े पर होकर सवार ,मन में भरे प्यार -आएगा उसके द्वार और ले जाएगा 
अपने साथ --इन्तजार तो पिछले दशक की नायिका भी करती थी पर उसमे 
संजीदगी होती थी पर इस दशक की नाइका के इन्तजार में थोड़ा चुलबुलापन आ 
गया है और किसी के ख्वाबों  में डूबी वो जाती है एक गीत जो शमत निधि हांडा 
के स्वर में सुनिए 
मेरे ख्वाबों में जो आये 

२ पिछले दशक का नायक किसी की मुस्कराहटों पर निसार होकरऔर किसी के प्यार में डूबा 
रहने को ही असली जीने का नाम देता है तो दो दशक बाद का नायक भी आशिकी को 
अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर आशिकी के लिए एक सनम की तलाश करता है 
एक नए अंदाज में  -हमारे प्रिय अनिल जाजू के स्वर में सुनिए 
बस एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए 

३ धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ता है -बातें होती है -मुलाकातें होती है -दोनों एक रंग में रंग जाते है 
प्यार के रंग में और नायिका कभी उसे परी लगती है ,कभी सपनो की रानी और वो अपनी
 प्रेमिका से पूछ बैठता है  -सुनिए श्री अनुपम खरबंदा के स्वरों में -
मेरे रंग में रँगनेवाली 

४ प्यार की आग दोनों तरफ लगी हुई है -उधर नायक बेचैन इधर नायिका बेकरार  पल भर की 
जुदाई भी सहन नहीं होती -कहते है ना -
जुदाई में जर्द चेहरा हो गया है ,हिज्र की हर सांस भरी हो गयी है 
याद में तेरी वो हालत बन गयी ,लोग कहते है बिमारी हो गयी है 
और इसी बिमारी की- बिगड़ी बिगड़ी सी हालत में  नायिका  के कंठ से गीत निकल पड़ता है 
जो आप सुनिए श्रीमती मोना जी के स्वरों में 
दिल दीवाना बिन सजना के माने ना ----


५ समय बीतता है -मुलाकातें बढ़ती है -प्रेमी प्रेमिका का दिल एक दूजे बिन नहीं लगता 
उन्हें लगता है की उन दोनों ने मिल कर एक नया संसार पा लिया है -उनके सारे सपने 
पूरे हो गए है और वो मिल कर गाते है एक गीत जो आप सुनेगे श्री अनुपम खरबंदा और 
विनीता कुमार जी के स्वरों में 
मिल के -ऐसा लगा तुम से मिल के 


६ सामजिक बंधनो को काट कर जब प्रेमी एक दुसरे में खो जाते है -दीवाने हो जाते है 
तो मस्ती के वो पल खत्म होने का नाम ही नहीं लेते  -प्यार का नाश जो चढ़ता है ,उतदुनिया रता ही नहीं 
मन बस उसी मस्ती में जाता और झूमता है और गाता  है सुनिए
 श्रीमती नूपुर त्रिपाठी जीऔर मनीष यादव  के स्वरों में 

थोड़ा सा झूम लू मै 

७ कहते है की मिलन की राह आसान नहीं है -  ये दुनिया दो प्रेमियों को आसानी से मिलने नहीं देती 
कारण कुछ घरेलू-कुछ गलतफहमियां या और भी कुछ ऐसे हालत पैदा हो जाते है की न चाहते हुए भी 
दोनों के मिलन के बीच में एक दीवार कड़ी हो जाती है और दिल के टुकड़े टुकड़े होने लगते है 
ऐसे वक़्त में अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करती हुई नायिका श्रीमती विनीता कुमार के स्वरों में जाती है 

शीशा हो या दिल हो ,एक दिन टूट जाता है 

८ उधर प्रेमी का दिल टूटा हुआ होता है इधर प्रेमिका का -उनके दिलों ने अरमानो की जो बस्ती बसाई थी 
वह ढहने लगती है -दुखी नायिका अपनी पीड़ा को ग़ज़ल के रूप में जाती है श्वेता बहती तेल के स्वरों में 

दिल के अरमान आंसुओ  में बह गए 

९ आपको याद होगा फिल्म मदर इण्डिया का वो गीत जो नरगिस ने गाय था बीते दशक में 
दुनिया में जो आये तो जीना ही पड़ेगा 
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा 
उसी परिस्तिथि में उलझा आज का नायक अपने आप को कैसे समझाता है 
सुनिए श्री अनिल जाजू के शब्दों में 

अब तेरे बिन। जी लेंगे हम 

१० और अब गलत फहमिया दूर हो गयी -बीच की दीवार  ढह गयी 
तो ,किस्मत ने साथ  दिया और बिगड़ी बात बन गयी  तो नायक अपनी नायिका 
को सांत्वना देते हुए समझाता है -सुनिए अनिल जाजो के स्वर में 

जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पद जाए 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

उत्तेजना 

उत्तेजना ,
शरीर की वो अवस्था है 
जिसमे शरीर के ज्वालामुखी का ठंडा पड़ा खून ,
लावे सा पिघलता है 
तन मन में होने लगता है कम्पन 
कितनी ही बार और कितने तरीकों से ,
जीवन में आते है ऐसे क्षण 
जैसे जब गरीब की सहनशीलता ,
जब अपनी सीमाएं पार कर जाती है 
तो उसके मन में ,
विद्रोह की उत्तेजना भर जाती है 
इसका कारण होता है उसकी मजबूरी और बेबसी 
समाज की उपेक्षा,व्यंग और हँसी 
आदमी खुद को और अपनी किस्मत को कोसता है 
फिर कैसे भी बदला लेने की सोचता है 
ऐसेलोगों की उत्तेजित भीड़ के स्वर 
देते है सत्ताएं बदल  
या फिर कोई ऊंचा पद पाकर 
और अपनी प्रतिष्ठा पर इतराकर 
जब आदमी में भर जाता है अहंकार 
तो थोड़ी सी अवहेलना होने पर ,
उत्तेजना पूर्ण हो जाता है उसका व्यवहार 
अपने अहम की संतुष्टी न होने पर ,
वह क्रोध से भर जाता है 
उसका विवेक मर जाता है 
वह अपमानित महसूस कर अंटशंट बकता है 
और उसमे भर जाता है आक्रोश 
और इसका बदला लेकर ही उसे मिलता है संतोष 
इतिहास गवाह है 
ऐसी उत्तेजना करते अफसर,नेता और शहंशाह है 
तीसरा छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब 
कोई बिगड़ जाता है जब तब 
गुस्से में नाराज हो वार्तालाप करने लगता है 
अनर्गल प्रलाप करने लगता है 
लड़ने को आतुर हो जाता है 
अपनी औकात  से बाहर निकल जाता है 
ऐसी तुनकमिजाजी भी होती है एक बीमारी 
कम कूवत ,गुस्सा भारी 
और उत्तेजना का चौथा रूप 
होता है बड़ा प्यारा और अनूप 
जब यौवन की चपलता और रूप की सुगढ़ता,
देती है प्यार का आव्हान 
तो आदमी की शिराओं में ,
उमड़ता है भावनाओं का तूफ़ान 
जो तोड़ देता है सारे बंधन 
और उत्तेजित कर देता है तन मन 
उत्तेजना के ये क्षण 
होते है विलक्षण 
आदमी भाव विभोर हो जाता है 
एक दूसरे में खो जाता है 
ये उत्तेजना बड़ी मतवाली होती है 
बड़ी सुखकर और प्यारी होती है 

मदन मोहन बहती]घोटू]

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

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