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बुधवार, 6 सितंबर 2017

गणपति बाप्पा से 

बरस भर में ,सिरफ दस दिन,
यहां आते हो तुम बाप्पा 
जमाने भर की सब खुशियां ,
लुटा जाते हो तुम बाप्पा 
तुम्हारे मात्र दर्शन से ,
कामना पूर्ण हो मन से 
भावना ,भक्ति की गंगा,
बहा जाते हो तुम बाप्पा 
लगा कर रोली और चंदन ,
करें तुम्हारा सब वंदन
सभी को रहना मिलजुल कर ,
सिखा जाते हो ,तुम बाप्पा 
भगत सब हो के श्रद्धानत,
चढ़ाते आपको मोदक ,
समृद्धि ,सुख की परसादी ,
खिला जाते हो तुम बाप्पा 
गजानन ,विघ्नहर्ता हो 
सदा आनन्दकर्ता हो 
विनायक हो,हमे लायक ,
बना जाते हो तुम बाप्पा 
साथ दस दिन, लगे प्यारा
विसर्जन होता तुम्हारा 
समाये दिल में पर रहते,
कहाँ जाते हो,तुम बाप्पा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

बिमारी गरदन की 

बड़ी कम्बख्त है, बिमारी यार गरदन की,
जो कि 'स्पेडलाइटिस 'पुकारी जाती है 
इसमें  ना तो गरदन उठाई  जा  सकती,
इसमें  ना  गरदन  झुकाई जाती   है 
पहले वो गैलरी में जब खड़ी हो मुस्काती,
उठा के गरदन  हम दीदार किया करते थे 
दिल में तस्वीरें यार छुपा, जब भी जी करता ,
झुका के गरदन उनको देख लिया करते थे 
अब तो ना इस तरफ ही देख पाते ना ही उधर ,
दर्द जब होता है तो तड़फ तड़फ जाते है 
हुई है जब से निगोड़ी ये बिमारी हमको,
उनके दीदार को हम तरस तरस  जाते है 

घोटू 

सोमवार, 4 सितंबर 2017

तृण से मख्खन 

एक सूखा हुआ सा तृण 
भी निखर कर बने मख्खन 
किन्तु यह सम्भव तभी है,
पूर्णता से हो समर्पण 
घास खाती ,गाय भैंसे ,
और फिर करती जुगाली 
बदलती सम्पूर्ण काया ,
इस तरह से है निराली 
भावना मातृत्व की ,
उसमे मिलाती स्निघ्ता है,
चमत्कारी इस प्रक्रिया  
में बड़ी विशिष्टता  है 
और उमड़कर के थनो से ,
बहा करती दुग्धधारा 
जो है पोषक और जमकर ,
ले दधि का रूप प्यारा 
बिलो कर के जिसे मख्खन ,
तैर कर आता निकल है 
किस तरह हर बार उसका ,
रूप ये जाता बदल है 
कौनसा विज्ञान है ये ,
कौनसी है प्रकृति लीला 
शुष्क तृण का एक टुकड़ा ,
इस तरह बनता रसीला 
दूध हो या दही ,मख्खन ,
सभी देते हमें पोषण 
एक सूखा हुआ सा तृण 
किस तरह से बने मख्खन 

घोटू 
बुढ़ापे की दवा 

वो पागलपन ,वो दीवानगी ,वो जूनून अब हुआ हवा है 
मैं बूढा हो गया ,पुरानी यादें ,दिल में  मगर जवां  है 
जब सूनी सूनी रातों में,तन्हाई  मुझको डसती  है ,
याद पुराने सुखद पलों की,दुखते दिल की एक दवा है
 
घोटू 
तूने तो बस पूत जना था 

तूने तो बीएस पूत जना था ,लायक मैंने उसे बनाया 
तूने लाड़प्यार से   पाला ,नायक  मैने  उसे  बनाया 
संस्कार की पूँजी उसको ,कुछ तूने दी,कुछ मैंने दी,
इसीलिए करआज तरक्की,उसने इतना नाम कमाया 
उसमे आये कुछ गुण  तेरे,उसमे आये कुछ गुण  मेरे,
तुझसा कोमलऔर मुझसा दृढ़,आज निखरकर है वोआया
पर जब से की उसकी शादी प्रीत रह गयी उसकी आधी ,
मात पिता प्रति ममता आदर ,धीरे धीरे हुआ सफाया 
कुछ ना कुछ तो,कहीं ना कही, भूलचूक या कमी रह गयी ,
बहुत गर्व था जिसपर ,उसने ,संस्कार वो सब बिसराया 
भूल गया बस दो दिन में ही ,त्याग तपस्या ,लालनपालन ,
उनका ही दिल तोडा उसने ,जिनने दिल में उसे बसाया 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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