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गुरुवार, 11 अगस्त 2016

बढ़ती उमर हुए हम टकले



बढ़ती उमर हुए हम टकले

ज्यों ज्यों बढ़ती उमर हमारी ,अजब मुसीबत हो जाती है
या तो फसल सिरों की पकती ,या फिर गायब हो जाती है
पक कर होते बाल श्वेत जो , तो उनको रंग भी सकते है
लेकिन हम बेबस होते जब ,सर से वो उड़ने  लगते है
बढ़ती हुई उमर जब हम पर ,अपना कसने लगे शिकंजा
कोई हमको टकला कहता ,कोई हमको कहता गंजा
बाल किसी के कम उड़ते है ,और किसी के उड़े अधिक है
कुछ कर्मो की,कुछ पुश्तैनी ,पर ये क्रिया स्वाभाविक है
बहुत पुरानी उक्ति है ,खल्वाट क्वचित ही निर्धन होते
घोटमोट और मुंड़ेमुँडाये ,अक्सर विद्वतजन है होते
जो कि भाल से ले कपाल तक ,एक तरह दिखते सपाट है
ओज और अनुभव से उनका,आलोकित होता ललाट  है
पत्नी आगे ,नाक रगड़ते ,वो गंजे  होते आगे  से
पत्नी जिनका सर सहलाती ,चाँद निकलती ,बडभागे से
कुछ लोगों के बाल उड़ा करते है ,मंहगाई के मारे
परिवार का बोझ उठाते ,गंजे होते ,कुछ बेचारे
कुछ के बाल उडा  करते है,अनुभवों वाली गर्मी से
कुछ गुस्से में पागल होकर,बाल नोचते ,हठधर्मी से
कुछ के पीछे छुपती चंदिया ,आगे  होते बाल घनेरे
 अभी जवानी  कायम,रहती गलतफहमियां उनको घेरे
पर सच ये है ,साथ पर तो  ,अक्सर सब होजाते टकले
उम्र उजागर हो जाती है ,इस गम में हो जाते पगले
और लोग इस पागलपन को ,ही अक्सर कहते सठियाना  
 कन्याएं जब अंकल कहती ,तब होता मन का पछतांना
रह रह कर वो काली जुल्फें ,सबको  बहुत याद आती है
ज्यों ज्यों बढ़ती उमर हमारी,अजब मुसीबत हो जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अगर मै भगवान होता

अगर मै भगवान होता

अगर मै भगवान होता
लालची और फरेबी फिर ,ना कोई इंसान होता
अगर मै भगवान होता
किसी को जरूरत न होती,करे  मेरा रोज पूजन
मंजीरे और ढोल के संग ,शोर करके ,करे कीर्तन
क्योंकि हल्लागुल्ला मुझको,नहीं बिकुल भी सुहाता
शांति मुझको बड़ी प्रिय है ,शोर मेरा सर  दुखाता
मै  बड़ा नाराज होता ,चीख यदि  गुणगान होता
अगर मैं भगवान होता
लोग मेरी मूर्तियों पर ,चढाते  रहते  मिठाई
नाम ले परशाद का सब ,फिर उन्होंने ही उड़ाई
एक भी दाना, हक़ीक़त में ,न चख पाया कभी मै
किन्तु जो चढ़ती मिठाई ,अगर चट करता सभी मैं
 झिझकते सब ,चढ़ावे का ,अगर ये अंजाम होता
अगर मै भगवान होता
सुनते है भगवान रहते ,शेषशैया ,समंदर में
सर्प और पानी से लेकिन ,बहुत ही रहता हूँ डर मैं
इसलिए मैं जागता रहता,जरा भी नहीं सोता
पड़ती कोई को जरूरत,प्रकट मैं तत्काल होता
लक्ष्मीजी ने भले ही,मचाया तूफ़ान होता
अगर मै भगवान होता
सच है ये मेरी कृपा से ,लोगों के भण्डार भरते
लोग कुछ रूपये चढ़ा कर,मेरा है अपमान करते
कुछ चढाने का दे लालच,कामना दिन रात करते
मुर्ख है वो सभी ,रिश्वतखोर  जो मुझको समझते
ऐसे लोगो का कभी भी ,नहीं कोई काम होता
अगर मैं भगवान होता
लोग चोरी किया करते और नेता लूटते है
सभी शोशागिरी दिखला ,रोज मुझको पूजते है
नाम मेरा लेके कितनो की दुकाने चल रही है
टिकिट मेरे दर्शनों पर,बात मुझको खल रही है
देखता हूँ जब ये सब कुछ,मैं बहुत हैरान होता
अगर मैं भगवान होता
अगर मैं भगवान होता,आप माने या न माने
नाम पर मेरे खुली जो,बन्द करवाता  दुकाने
नाम लेकर धर्म  का जो ,रोज करवा रहे दंगे 
चक्र ऐसा चलाता कि नज़र आते ,सभी नंगे
बदल जाती मान्यताएं,खड़ा एक तूफ़ान होता
अगर मैं  भगवान होता
लोग जिम्मेदारियां अपनी मुझे क्यों सौंपते है
कभी होता कुछ बुरा तो दोष मुझ पर थोंपते है
अच्छा हो,करनी हमारी,बुरा हो तो हरी इच्छा
लोग हर दिन और हर पल ,लिया करते है परिच्छा
सभी जिम्मेदारियां लेना नहीं आसान होता
अगर मैं भगवान होता
दीनदुखियों के सभी दुःख,जो अगर मैं हर न पाता
ठेकेदारों को धरम  के ,गर उजागर  कर न पाता
लूट मेरे नाम पर जो हो रही ,ना  रोक पाता
तो भला क्या लाभ होता, मेरा बनने में विधाता
छोड़ कुर्सी,स्तिफा  दे ,तुरन्त अन्तरध्यान होता
अगर मैं भगवान होता

मदन मोहन बाहेती' घोटू '



 

यार ,तुम्हे कब अकल आयेगी

यार ,तुम्हे कब अकल आयेगी

यार,तुम्हे कब अकल  आएगी
यूं ही भावना के चक्कर में,टूटे रिश्ते निभा रहे हो
वो गलती पर गलती करते,तुम माफ़ी दे भुला रहे हो
तुम इसको कर्तव्य समझते,वो कमजोरी माना करते
तुम भावुक,वो प्रेक्टिकल है,अपना मतलब साधा करते
ख़ुशी ख़ुशी यूं लुटते लुटते ,उमर तुम्हारी निकल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
पड़ी सभी को अपनी अपनी ,बड़ी स्वार्थी है ये दुनिया
इतनी सीमित सोच बची है,बस मैं हूँ और मेरी मुनिया
तुम उस युग में पले बड़े हो,जब परिवार एक रहता था
एक दूजे के प्रति समर्पण ,श्रद्धा और विवेक  रहता  था
एकल परिवार का ये युग,परम्परायें  बदल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
तुमको  पाला  ताईजी  ने ,चाची ने  है कपड़े  बदले
दादीजी ने तुम्हे मनाया ,जब भी तुम जिद पर आ मचले
तुमने अपने बड़े भाई के ,छोटे हुए  वस्त्र है  पहने  
भर जाती पूरी कलाई थी , राखी जब बांधे थी बहने
आत्मीयता पहले जैसी ,अब तुमको ना मिल पायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
अब छोटा परिवार,सोच भी ,उतनी ही संकीर्ण हो गया
रिश्तेदारी ,अपनेपन का ,तानाबाना  जीर्ण  हो गया
लेकिन छूट नहीं सकते है ,तुमसे संस्कार तुम्हारे
कोई को कुछ भी पीड़ा हो,तुम हो आगे ,हाथ पसारे
शायद तुम न कभी बदलोगे,सारी दुनिया बदल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

ज्ञान की बात

ज्ञान की बात

अगर आटा आज जो गीला सना
दुखी हो क्यों कर रहे मन अनमना
आड़ी तिरछी आज बनती रोटियां,
गोल  रोटी भी  कल  लोगे  बना

मुश्किलें तो आएगी और जायेगी
जिंदगी की जंग चलती   जायेगी
खुश न हो,बीबी अगर मइके गयी,
चार दिन में लौट कर फिर आएगी

कभी दुःख है तो कभी फिर हर्ष है
यूं ही  जीवन में सदा    संघर्ष   है
एक तारीख को भरा ,इतरा रहा,
तीस तक हो जाता खाली पर्स है

सेक लो रोटी,तवा जब गर्म है
अवसरों का लाभ,अच्छा कर्म है
मज़ा देते सिर्फ पापड़ कुरकुरे,
देर हो जाती तो पड़ते  नर्म   है

घोटू

पति पत्नी-संगत का असर

पति पत्नी-संगत का असर

एक दूजे का एक दूजे पर  ,ऐसा मुलम्मा चढ़ता है
हो जाती सोच एक जैसी और प्यार चौगुना बढ़ता हो 
एक दूजे की बातें और इशारे वो ही  समझते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से लगते है
अलग अलग दो कल्चर के,प्राणी मिल रहते बरसों संग
नो निश्चित एक दूसरे पर,चढ़ जाता एक दूजे का रंग
उनके चेहरे के हाव भाव ,उनकी बोली और चाल ढाल
एक जैसी ही हो जाती है ,जैसे एक सुर और एक ताल
वो एकाकार हुआ करते, इस तरह आदतें मिल जाती
उनको ही मालूम होता है ,किसको है क्या चीजें भाती 
यूं तो कहते ,ऊपरवाला ,खुद जोड़ी बना भेजता है
पर ये जोड़ी ,जब जुड़ जाती,आ जाती बहुत एकता है
एक दूसरे की छवि मन में ,ऐसी बसती ,कहीं कहीं
धीरे धीरे होने  लगता ,चेहरा, मोहरा, आकार वही
इतने सालों का मेलजोल,इतना तो असर दिखाता है
बूढ़े बुढ़िया का प्यार हमेशा ,कई गुना बढ़ जाता है
बच्चे अपने में मस्त रहे, ये आश्रित एक दूसरे पर
इसलिए बुढापे में तू तू ,मैं मैं भी कम होती अक्सर
आदत पड़ती संग रहने की,मन ना लगता एक दूजे बिन
 करते है याद ,जवानी की ,बातें,किस्से और बीते दिन
साथ साथ दुःख और पीड़ा में ,साथ साथ ही थकते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से   लगते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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