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बुधवार, 25 मई 2016

मै पानी हूँ

               मै पानी हूँ 

भरे सरोवर में ,मै मीठा ,और विशाल सागर में खारा
कभी छुपा गहरे कूवे में,कभी नदी सा बहता  प्यारा
कभी बादलों में भर उड़ता,कभी बरसता,रिमझिम,रिमझिम
गरमी में मै भाप जाऊं बन,सर्दी में बन बरफ जाऊं जम
मै धरती की प्यास बुझाता ,बीजों को मै करता विकसित
सत्तर प्रतिशत ,तन मानव का ,मुझसे ही होता है निर्मित
मैं  पानी  हूँ, बूँद  बूँद  में ,मेरी  जीवन  भरा  हुआ  है
मुझसे ही दुनिया का कानन ,फला ,फूलता हरा हुआ है
नहीं मिला यदि जो पीने को ,तुम प्यासे ही ,मर जाओगे
मैंने अन्न नहीं उपजाया ,कुछ न मिलेगा ,क्या खाओगे
शुद्ध रखो,मुझ को संरक्षित ,तो आबाद तुम्हे कर दूंगा
यदि मुझको बरबाद करोगे ,तो बरबाद तुम्हे कर दूंगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नदिया से

         नदिया से

दौड़ समंदर से मिलने ,मत जा री नदिया
वरना  तू भी ,हो  जाएगी ,खारी  नदिया
निकल पहाड़ों से जंगल को कूदी,फांदी ,
कल कल करते,चलते चलते, हारी नदिया
जिसमे नहा ,पवित्र हो रहे ,जिसे पूजते,
हम मूरख ,हमने गन्दी कर डाली नदिया
सबका गंदापन ,सीने में रखे दबाये ,
बहती जाती,क्या करती ,बेचारी नदिया
जब जन्मी थी ,दुबली पतली ,प्यारी सी थी,
साथ समय के ,फैल गई ,दुखियारी नदिया
इसकी बिजली,बाँध ,बाँध लोगो ने छीनी ,
पर न पड़ी कमजोर ,न हिम्मत हारी नदिया
पिया मिलन की आस लगाए भाग रही है ,
सागर उर में,समा जायेगी ,प्यारी नदिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंहगाई का त्रास

 मंहगाई का त्रास

बहुत मंहगा हो गया हर ग्रास अब  है
हो रहा  मंहगाई का अहसास  अब है
बिकता पानी बंद होकर  बोतलों में ,
बहुत मंहगी हो गई ये प्यास अब है
दाल मोतीचूर से भी अधिक  मंहगी,
सब्जियों ने भी मचाया  त्रास अब है
अरसे से हमने नहीं ली है डकारें ,
पेट ये पिचका बिचारा ,पास अब है
अंतड़ियां ये पूछती है ,क्या पचाएं ,
क्या चबाएं ,पूछते  सब  दांत अब है
भूखे रह कर ,सूखते ही जा रहे है ,
हो रहा ,अकाल का आभास अब है
बादलों ,बरसो ,धरा को तृप्त करदो,
एक तुम ही से बची कुछ आस अब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रेमपथ

         प्रेमपथ

 कितने ही बड़े से बड़े साहब की घरवाली 
कितनी ही आधुनिक हो,सजीधजी, निराली
हर सुबह और शाम,
हाथ में बेलन थाम
अपने  रसोई घर में ,
करती मिलेगी काम
क्योंकि 'किचन' का ,
सुखी वैवाहिक जीवन से बड़ा नाता है 
पति के दिल का रास्ता ,
पेट से,'व्हाया 'किचन 'जाता है

घोटू

रविवार, 22 मई 2016

थोथा चना -बाजे घना

           थोथा चना -बाजे घना

बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
बधें है ,दकियानूसी   पुराने  विचारों से ,
       अभी तक ,कैद से उनकी ,निकल  नहीं पाये
बिल्ली जो काटती रस्ता है तो ये रुक जाते ,
        राहुकालम में ,कोई  काम ,ये नहीं करते
छींक दे कोई तो इनके कदम सहम जाते ,
        कोई भी अपशकुन से आज भी बहुत डरते 
जिस  दिशा में हो दिशाशूल ,नहीं जाते है,
        मुताबिक़ वक़्त के बिलकुल भी नहीं ढल पाये 
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
             जरा  भी  खुद  को  मगर  ये  बदल  नहीं  पाये
सोम को दूध चढ़ाते है शिव की मूरत पर,
                         शनि को तैल चढ़ाते है शनि देवा पर
श्राद्ध में पंडितों को प्रेम से खिलाते है ,
                          बूढ़े माँ बाप की  करते नहीं  सेवा पर
  आदमी चलते चलते चाँद तलक पहुँच गया ,
                        ग्रहों के चक्र से पर ये नहीं निकल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                      जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
छू लिया ,बेटियों ने आसमां सफलता का ,
                          बेटे और बेटी में ये अब भी मानते अंतर
दिखाने के लिए बाहर है कुरता खादी  का,
                        पहन के रख्खा है बनियान विदेशी   अंदर
ऐसे उलझे हुए है ,रूढ़ियों ,रिवाजों में ,
                     दो कदम भी समय के संग नहीं चल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
                        जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                   

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