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शनिवार, 12 मार्च 2016

मारे गए गुलफाम

       मारे गए गुलफाम

मुझको उनने घास तक डाली नहीं ,
         खेत कोई और ही आ चर  गया
चवन्नी को मुझको तरसाते रहे ,
         और तिजोरी ,दूसरा ले भर गया
मुझको मीठी मीठी बातों से लुभा ,
मिठाई के लिए ,ललचाते  रहे ,
मिठाई का डिब्बा मेरे सामने ,
        दूसरा ही कोई आ ,चट  कर गया
या तो तुम चालू थी या वो तेज था ,
या मैं ही बुद्धू था,गफलत में रहा ,
नग जो जड़ना था अंगूठी में मेरी ,
           दूसरे की अंगूठी में जड़ गया
शराफत में अपनी फजीयत कराली,
मुफ्त में मारे  गए ,गुलफाम हम,
प्रेमपाती हमने थी तुमको  लिखी,
         दूसरा ही कोई आकर पढ़ गया
क्या बताएं आशिकी में आपकी,
किस कदर का ,जुलम है हम पर हुआ ,
हमको ऊँगली तलक भी छूने न दी,
         दूसरा ,पंहुची पकड़ कर,बढ़ गया
हमने सोचा था,हंसी तो फस गई ,
उल्टा मुश्किल में फंसा हम को दिया ,
चौबे जी ,दुबे जी  बन कर रह गए ,
         छब्बे जी बनने का चक्कर मर गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बेटियां

                        बेटियां

बेटी को तो 'बेटा' कह कर ,अक्सर लोग बुलाते है
पर भूले से, भी बेटे को  ,'बेटी'  कह  ना   पाते  है
बेटी होती भले परायी , अपनापन  ना  जाता  है 
बेटा ,अपना होकर ,अक्सर, बेगाना  हो जाता है
बेटी ,शादी होने पर भी ,गुण  पीहर के  गाती  है
बेटे के सुर बदला करते ,जब  शादी हो जाती है
बेटे ,उदगम भूल ,नदी का ,चौड़ा पाट  देखते  है
अपना पुश्तैनी सब ,वैभव  ,ठाठ और बाट देखते है 
आज ,बदौलत जिनकी उनने ,ये धन दौलत पायी है
तिरस्कार ,उनका करते है, जिनकी सभी कमाई है
हक़ रखते ,उनकी दौलत पर,उन्हें  समझते नाहक़ है
लायक उन्हें बनाया जिनने ,वो लगते नालायक  है
वृद्ध हुए माँ बाप , दुखी हो,घुटते  रहते  है मन में
बेटे ,उनको बोझ समझ कर ,छोड़ आते ,वृद्धाश्रम में
या फिर उनको  छोड़ अकेला,खुद विदेश बस जाते है
केवल उनका ,अस्थिविसर्जन ,करने भर को आते है
माता पिता , वृद्ध जब होते,रखती ख्याल बेटियां है
उनके ,सब सुख दुःख में करती ,साझसँभाल  बेटियां है
क्योंकि बेटियां ,नारी होती, उनमे ममता  होती है
दो परिवार ,निभाया करती,उनमे क्षमता  होती है
बेटी तो  अनमोल निधि है,और प्यार का सागर  है
खुशनसीब वो होते जिनको,  बेटी देता  ईश्वर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 6 मार्च 2016

गंगा तट -अक्षयवट

              गंगा तट -अक्षयवट

कल कल बहती प्रीतधार है,लम्बा चौड़ा  वृहद  पाट है
कहीं वृक्ष है,कहीं खेत है ,  और कहीं पर बने घाट है
जो भी मेरे पास बस गए,सच्चे मन से सबको सींचा
मैंने उनकी प्यास बुझाई ,उनका फूला फला  बगीचा
 टेडी मेडी बहती सरिता ,किन्तु शांत मैं ,ना नटखट हूँ
                                            मैं तो गंगाजी का तट हूँ
हरा भरा हूँ ,लम्बा चौड़ा ,मैं विस्तृत हूँ  और  घना हूँ
शीतल ,मंद ,हवाएँ देता ,सुख देने  के  लिए बना हूँ
पंछी रहते ,बना घोसला,और पथिक को मिलती छाया
जो भी आया,थकन मिटाई, सबने यहां  आसरा पाया
जिसकी जड़ें ,तना बन जाती ,अपने में ही रहा सिमट हूँ
                                            मैं वो पावन अक्षयवट हूँ
कुछ ने अपनी जीवन नैया ,रखी बाँध कर मेरे तट पर
उनका जीवन सफल हो गया,डुबकी लगा,पुण्य अर्जित कर
हतभागी वो जिनके मन में ,श्रद्धा भाव नहीं था  किंचित
मुझे छोड़ कर ,चले गए वो, रहे   छाँव  से मेरी  वंचित
उनको प्यार नहीं दे पाया , इसी पीर से  मै  आहत  हूँ
                                              मैं तो गंगाजी का तट हूँ ,
                                              मै वो पावन अक्षयवट हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                                          
 

सच्चा समर्पण

            सच्चा समर्पण        

मैं तो एक कंटीली झाडी का गुलाब हूँ
सुंदर हूँ,मैं महक रहा हूँ, लाजबाब  हूँ
मैंने खुद को सच्चे मन से किया समर्पित
जीवन भर के लिए हो रहा तुम पर अर्पित
चाहे अपनी जुल्फों में तुम इसे सजाओ
या फिर मिश्री डाल ,इसे गुलकंद  बनाओ

मैं तो आम्र तरु की हूँ एक कच्ची  अमिया
खट्टी,मीठी और चटपटी ,लगती बढ़िया
मुझे काम में लो,जैसे भी   लगता  अच्छा
चटखारे ले ,चाहे इसे  ,खाओ तुम कच्चा
चाहे पका ,आम रस पियो ,और मज़ा लो
या फिर काट पीट ,इसका ,आचार बनालो

तुम्हे समर्पित हूँ मैं   पिसा हुआ सा बेसन
अपने अंग लगालो  इसे बना कर उबटन
या फिर घोलो और  मसाले  सारे  डालो
गर्म तेल में तलो, पकोड़े आप बना  लो
जैसे भी सुख मिले ,काम मे इसको लाओ
सेवा करू तुम्हारी ,तुम मुझको  अपनाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कनक छड़ी से खिचड़ी तक

      कनक छड़ी से खिचड़ी तक

जब हम घोड़ी पर चढ़ते है,उसे 'घुड़ चढ़ी 'हम कहते है
मिलती सुंदर ,प्यारी पत्नी ,उसको 'कनकछड़ी 'कहते है
जब वो बढ़ मोटी  हो जाती,तो बन जाती 'मांस चढ़ी 'है
बात बात में नाक सिकोड़े ,तो सब कहते 'नाक चढ़ी' है
जब ज्यादा सर पर चढ़ जाती,बहुत 'सरचढ़ी'कहलाती है
खुश ना रहती,चिड़चिड़ करती,बहुत 'चिड़चिड़ी'बन जाती है
कैसी भी हो ,पर मनभाती ,'सोनचिड़ी'सी वो लगती है
खिला पुलाव जवानी में थी ,आज 'खिचड़ी 'वो लगती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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