हम तुम -एक सिक्के के पहलू
जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
जब से हुई हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू है तू
साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं स्वच्छंद जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की 'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं डोलूँ ,
तुम्हारी 'हाँ' ही मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं
संग संग रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन
रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
जब से हुई हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू है तू
साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं स्वच्छंद जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की 'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं डोलूँ ,
तुम्हारी 'हाँ' ही मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं
संग संग रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन
रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'