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गुरुवार, 19 नवंबर 2015

बेटे और बेटियां

                बेटे  और बेटियां             

बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
               विजय पताका पत्नीत्व  की  ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
                 जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने  बचपन से पालपोसा था,
                   धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
                   उसके हाथों में आ जाती घर की  सत्ता है        
 जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
                  अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
 जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया  का होता  है,   
                    एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
 आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
                  फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
                    किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है 
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
                       साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है 
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
                           बेटी सदा  रही अपनी, ना हुइ पराई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

                                        ,
                  



                

सोमवार, 16 नवंबर 2015

अरे जिन्दगी जाग जा - जाग जा...


ब्रह्म वाक्य

           ब्रह्म वाक्य

अपनी संतानो से उपेक्षित,
 वरिष्ठजनो ने करवाया  यज्ञ बड़ा
जिसके  प्रभाव से ब्रह्माजी को,
प्रकट हो  स्वयं धरती पर आना पड़ा
उन्होंने आकर प्रश्न किया ,
भक्तों मुझे किसलिए किया याद 
यजमानो  ने कहा ,
प्रभु,आपने ये कैसी बनाई है औलाद
अपने जन्मदाताओं को ,
धता दिखा देती है,शादी के बाद
बिलकुल ख्याल नहीं करती ,
तिरस्कृत  कर दिल तोड़ देती है
उन्हें बुढ़ापे में तड़फ़ने के लिए ,
अकेला छोड़ देती है
आपने ही तो उन्हें बनाया है
पर उनके दिमाग में ,
पितृभक्ती वाला प्रोग्राम नहीं लगाया है
ब्रह्माजी बोले मैं  खुद हैरान हूँ
दुखी और परेशान हूँ
मेरे इस उत्पाद में जरूर कुछ कमी है भारी
पर अब तक ठीक ही नहीं हो पा रही ,
ये निर्माता को भूलने की बिमारी
इसे सुधारने का मेरा हर प्रयास व्यर्थ जाता है
क्योंकि शादी के बाद ,
उसमे  'पत्नी' नाम का'वायरस' लग जाता है
वैसे मैंने आप लोगों का भी निर्माण किया है
पर क्या आपने कभी ,मेरी ओर ध्यान दिया है
पालनकर्ता विष्णु के अवतारों की भी पूजा करते है
राम राम और कृष्ण कृष्ण जपते  है
हर्ता शिवजी से डर कर उन्हें ध्याते है
पूरे सावन भर जल चढ़ाते है
और तो और उनकी पत्नी दुर्गा को ,
वर्ष में दो बार नवरात्री में पूजा जाता है
विष्णु पत्नी लक्ष्मी की पूजा के  लिए भी,
दीपावली का त्योंहार आता है
सब ही देवी देवताओं  के पूजन और व्रत के लिए ,
वर्ष में कोई ना कोई दिन नियत है 
पर मेरे लिए ,न कोई दिन है ,
न पूजन होता है ,न कोई व्रत है
सभी  के देवताओं के पूरे देश में मंदिर अनेक है
पर पूरे विश्व में,मेरा मंदिर ,बस पुष्कर में एक है
तुम मेरी संतान हो पर तुमने ,
मेरी जो अवहेलना की है ,ये उसी का परिणाम है
कि तुम्हारी अवहेलना करती ,तुम्हारी संतान है
ये दुनिया का नियम है ,इस हाथ दो,उस हाथ लो
मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

बिहार की हार

           बिहार की हार   
                  १
                
लोग लाख कहते थे ,कि दम  है बन्दे में ,
           हार कर बिहार लेकिन बन्दे की साख गई
चींखें भी,चिघाड़े भी शेर से दहाड़े भी ,
           शोर हुआ इतना कि जनता थी जाग गई
लोग तो ये कहते है ,छुरी मारी अपनों ने ,
            बड़ी बड़ी बातें थी ,लेकिन कट नाक गई 
 घूमता परदेश रहे ,इज्जत कमाने को ,
               पर घर की बेटी ही ,गैरों संग भाग गई     
                       २
 मोदीजी की रैलियों में ,रेला तो उमडा  था बहुत ,
                 वोट कम क्यों,पता ये कारण लगाना चाहिए
कोई कहता मिडिया है,कुछ कहे अंतर्कलह ,
               कुछ कहे मंहगाई बढ़ती ,अब घटाना  चाहिए
मोदीजी तो जा रहे लंदन है मिलने क़्वीन से,
          हमको भी थोड़े दिनों ,अब मुंह  छुपाना चाहिए
हमको भी इस हार के ,सब कारणों को जानने ,
            आत्मचिंतन के लिए,   'बैंकॉक' जाना  चाहिए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मीजी की पीड़ा

       लक्ष्मीजी की पीड़ा 

दिवाली की रात लक्ष्मी माई
मेरे सपनो में आई
मैं हतप्रभ चकराया
मैंने ना पूजा की ना प्रसाद चढ़ाया
बस एक आस्था का,
 छोटा सा दीपक जलाया
फिर भी इस वैभव की देवी को ,
इस अकिंचन का ख्याल कैसे आया
मुझे विस्मित देख कर ,
लक्ष्मी माता मुस्कराई
बोली इस तरह क्यों चकरा रहे हो भाई
तुमने सच्चे मन से याद किया ,
मैं  इसलिए तुम्हारे यहाँ आई
लोग इतनी रौशनी करते है ,
आतिशबाजी चलाते है
मनो तेल के लाखों दीपक जलाते है
लेकिन उनको  ये समझ नहीं आता है
 मेरी पूजा अमावस को इसलिए होती है,
क्योंकि मेरे  वाहन उल्लू को,
अंधियारे में ही ठीक से नज़र आता है
 वो उजाले से घबराता है
तुम्हारे यहां अँधियारा दिखलाया
इसीलिये वो मुझे  यहाँ पर ले आया
 मुझे एक बात और चुभती है
दिवाली पर जितना तेल ,
लोग दियों  में जलाते है ,
उतने में कई गरीबों को ,
चुपड़ी हुई रोटी मिल सकती है
मेरी पूजा और आगमन की चाह में ,
मुझी को पानी की तरह बहाना ,
मेरे साथ नाइंसाफी है
मुझे प्रसन्न करने के लिए तो,
श्रद्धा से जलाया ,एक दीपक ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


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