कबूतर कथा
एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
बाज को निज मांस देकर ,धर्म था अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
पंछी मध्यम वर्ग के ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे कौन लाते
बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
बाज को निज मांस देकर ,धर्म था अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
पंछी मध्यम वर्ग के ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे कौन लाते
बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'