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शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

हुस्न-चौके का

          हुस्न-चौके का

जुल्फों में काली ,उनका गोरा चेहरा लगे ,
          जैसे तवे पे सिक रही हो गर्म रोटियां
सुन्दर तिकोनी नाक लगती जैसे समोसा , 
      आँखें मटर सी ,जैसे करती ,मटरगश्तियां
सुन्दर से मुख पे खिलखिलाती उनकी ये हंसी ,
     अरहर की दाल में हो ज्यों छोंका लगा दिया
देखा जो उनका हुस्न ,हमें भूख लग गयी ,
         चौके में उनके रूप ने ,चौंका  हमें दिया

घोटू

शुभ मुहूर्त

                 शुभ मुहूर्त

पत्नीजी बड़े प्यार से तैयार कल हुई,
       देकर के पप्पी प्यार से,हमको दिया चौंका
बोली कि टी वी ,पेपरों में आ रही खबर ,
         संगम हुआ है आज बड़ा शुभ ही ग्रहों का
मुस्काके बड़े प्यार से फिर हमसे वो बोली ,
       ज्वेलर के यहाँ चलके मुझे गहने दिला दो ,
सोना खरीदा  आज  तो तक़दीर  खुलेगी,
        बरसों के बाद आया करता ऐसा है मौका

घोटू

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014

           मेरी अभिलाषा

खुदा  की बस इतनी रहमत चाहिए 
सबको आपस में मोहब्बत चाहिए
हमको केवल इतनी दौलत चाहिए
रहने को घर  और एक छत चाहिए 
तन को ढकने वस्त्र बस दो चाहिए
सोने को खटिया या बिस्तर चाहिए
जिंदगी के इस सफर को काटने ,
एक सच्चा हमसफ़र  पर चाहिए
पेट भरने चार रोटी है बहुत ,
नहीं हमको हलवा पूरी चाहिए
और कुछ सुविधा मिले या ना मिले,
घर में शौचालय  जरूरी  चाहिए
अगर घर में जो रहेगी स्वच्छता ,
अच्छी तंदुरुस्ती और सेहत आएगी
अच्छा तन मन जो रहेगा ,हमेशा,
जिंदगानी ख़ुशी से  भर   जाएगी

बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

प्यार की परिणीति

          प्यार की परिणीति

होता है बेचैन ये मन,और तन अंगार है
ऐसा ही होता है कुछ कुछ ,जिसे  प्यार है
औरजब होता मिलन तो होश कुछ रहता नहीं ,
क्या मोहब्बत इश्क़ का ,होता यूं ही इजहार है
इंतजारी ,बेकरारी से है जिसकी करते हम,
चंद लम्हों में ही मन कर ,रहता वो त्योंहार है
कुछ ही पल में जाती है बुझ ,तन की वो सारी अगन,
जो  सुलगाता  जिगर में  , आपका दीदार है
पस्त  होकर तुम पड़े हो,पस्त होकर हम पड़े,
और बिखर कर रह गया सब साजऔर श्रृंगार है

घोटू

अपने जब होते बेगाने

               अपने जब होते बेगाने

पहले तुम जितने अपने थे ,अबतुम उतने ही बेगाने हो
और जान कर भी ये सब कुछ,बनते बिलकुल अनजाने हो
बन कर नन्हे फूल खिले थे,महके थे तुम जब आँगन में
तुमको लेकर,जाने क्या क्या ,सपने देखे थे इस मन ने
पाल,पोसा और संवारा ,हरदम रख कर ख्याल तुम्हारा
 सोचा था जब जरुरत होगी ,तब तुम दोगे  ,हमें सहारा
पर बचपन में ही तो केवल,बात हमारी तुम माने हो
पहले तुम जितने अपने  थे,अब उतने ही बेगाने हो
साथ समय के,बड़े चाव से,घर तुम्हारा,गया बसाया
करी तुम्हारी शादी उस संग,मीत  तुम्हारे मन जो भाया
लेकिन दिन दिन ,दूर हुए तुम,होनी ने वो  चक्र चलाया
एक रिश्ते में ,ऐसे उलझे ,बाकी रिश्तों को बिसराया
प्यार सदा हम बरसाते है,तुम रहते ,भृकुटी  ताने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
कभी नहीं सोचा था हमने,कि तुम इतने बदल जाओगे
अगर सफलता पा जाओगे ,तो तुम  इतना इतराओगे
मत भूलो,जो तुम हो  उसमे,बहुत हमारा योगदान है
मात  पिता की आशीषों से ,ही बच्चे  बनते महान है
नहीं समझ में हमको आता ,जाने क्या मन में ठाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
तुम्हारी मति  हुई भ्रष्ट है,हम खुश रहते,तुम्हे कष्ट है
या तुम हुए गर्व से अंधे ,या विवेक हो गया नष्ट है
लेकिन तुम दिल के टुकड़े हो ,बदल गए  ,दुर्भाग्य हमारा
सदा सुखी,खुश रहो,फलो और फूलो,आशीर्वाद हमारा
समय तुम्हे सद् बुद्धि  देगा ,नियति को कब पहचाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

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