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सोमवार, 29 सितंबर 2014

घोटू ,जब हम प्यार जतावत

              घोटू के पद

घोटू ,जब हम प्यार जतावत
आई लव यू ,आई लव यू कह कर ,उनको अपने पास बुलावत
पहले वो ना करत,पास फिर आवत ,  पर   थोड़ी  शरमावत
कोऊ कहीं   देख ना लेहै  ,कह कर फिर  पीछे   हट  जावत
देखत बंद द्वार की कुण्डी ,हमरी  बाहन  में भर  जावत
नव आभूषण और साड़ी का,पिछला वादा ,याद दिलावत
प्यार दिखा उन मधुर क्षणन में ,अपनी सब मांगें मनवावत
पूर्ण रूप तब होइ समर्पित ,एक दूसरे में खो जावत
'घोटू' इन्ही मधुर क्रीड़ाओं को  जगवाले  प्रेम  बतावत

घोटू

समय बड़ा बलवान

             घोटू के पद

समय बड़ा बलवान
नहीं समय के आगे कुछ भी,कर सकता इन्सान
कल तक वीसा देने में भी,था  जिसको  इन्कार
अगवानी कर रहा अमरीका उसकी बांह पसार
मोदी मय न्यूयॉर्क होगया इतना बरसा प्यार
अब वाशिंगटन में ओबामा ,करता है इन्तजार
कल तक चाय बेचने वाला ,बना देश की शान
समय बड़ा बलवान
कल तक पूरे तमिलनाडु पर था जिसका राज
चार साल की सजा पा गयी सत्ता को मोहताज
गलत ढंग से बहुत कमाया ,कुछ ना आया काम
उस पर लगा बड़ा जुर्माना और नाम हुआ बदनाम
राजमहल की रानी थी जो,हुई  जेल मेहमान  
समय बड़ा बलवान
'घोटू '

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

महाराष्ट्र के महत्वकांक्षी

       महाराष्ट्र के महत्वकांक्षी

महत्वकांक्षाओं को ,
अगर दबाया  नहीं जाए  थोड़ा 
तो बन  जाती है,
 जीवन की राह का रोड़ा
रेस में दौड़ना चाह रहा था,
तांगे वाले का घोडा
और इसी चक्कर में ,
उसने ,उससे  गठबंधन तोडा
अक्सर  इस तरह के ,
कई  वाकये नज़र आते है
लोग न इधर के रहते है,
न उधर के हो पाते है
पूरी  पाने की चाह  में,
अपनी आधी  भी  गमाते है
चौबेजी ,छब्बे बनने के चक्कर में ,
दुबे बन कर रह जाते है
घोटू '

महाराष्ट्र का महाभारत

         महाराष्ट्र का महाभारत

                      १
एक तरफ तो पहुँच गया है,यान हमारा मंगल में
एक तरफ हम उलझ रहे हैं,महाराष्ट्र के दंगल में
पदलिप्सा ,अच्छे अच्छों की,मति भ्रस्ट कर देती है ,
और बिचारे फंस जाते है,विपदाओं के  जंगल में
                          २    
एक तरफ बेटा कहता है,पापाजी सी एम  बनो,
          और दूसरी तरफ  भाई ही बढ़ कर राह रोकता है
साथ पुराने साथी का है जिस दिन से हमने छोड़ा,
         अब तो जिसको मिलता मौका ,आकर हमें टोकता है
 जब भी महत्वकांक्षाएं ,होती है हावी हक़ीक़त पर,
         लेते लोग इस तरह निर्णय ,सुन कर हरेक चौंकता है
एकलव्य के तीर हमेशा ,उसका मुंह  बंद कर देते,
          जरुरत से ज्यादा बेमौके,जब भी कोई भोंकता है 
 'घोटू '

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

आशिक़ की आरजू

          आशिक़ की आरजू

रात को आते हो अक्सर,ख्वाबगाह में मेरी ,
        एक झलक अपनी दिखाते ,और जाते हो चले
हमने बोला,छोड़ दो यूं ,आना जाना ख्वाब में ,
        बहुत है हमको सताते ,इस तरह के सिलसिले
ये भी कोई बात है ,जब बंद आँखें हमारी ,
       तब ही मिल पाता हमें है,आपका दीदार  है
खोलते है  आँख जब हम  ,नज़र तुम आते नहीं,
             बीच में मेरे तुम्हारे ,पलक की दीवार है
ना तो तुमको छू सकें ना भर सकें आगोश में,
        दूर मुझसे इतने रहते, नज़र आते पास हो      
भला ये भी इश्क़ करने का तरीका है कोई,
              उड़ा देते नींद मेरी,बढ़ा देते प्यास हो
इसतरह से आओ अब वापस कभी ना जा सको,
            रूबरू अहसास तुम्हारा करूं  मैं  रात दिन
अब तो शिद्दत हो गयी है,तुम्हारे इन्तजार की,
           आओ ना आजाओ बस  अब ,मन लगे ना आप बिन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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