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गुरुवार, 1 मई 2014

पत्नी तारा बाहेती के जन्मदिवस पर

    मेरी प्रिय

               शुभकामनाओं सहित

सड़सठ की हो गयी ,मगर अब भी मतवाली
वही  कशिश  है,वही  अदायें ,सत्रह  वाली
पांच दशक के बाद अभी भी उतनी  दिलकश
पास तुम्हारे आने को मन करता  बरबस 
वही ठुमकती  चाल ,निगाहें वो ही कातिल
मधुर मधुर  मुस्कान ,मोह  लेती मेरा दिल
तिरछी नज़रों वाला वो अंदाज ,वही है
वो ही साँसों की सरगम है ,साज वही है
 तो क्या हुआ ,बढ़ गया कंचन है जो तन पर 
तो क्या हुआ चढ़ गया चश्मा,अगर नयन पर
वो ही सुन्दर तन है,वैसी ही सुषमा है
और प्यार में ,अब भी वैसी ही ऊष्मा है
वही महकता बदन लिये खुशबू चन्दन की
वो ही प्यारी छटा और आभा यौवन की
अब भी तुम में वही चाशनी ,मीठी  रस की
बहुत बधाई तुमको अपने जनम दिवस की
सदा रहे मुख पर छाई  ,मुस्कान निराली
वही कशिश है ,वही अदायें , सत्रह  वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

चोली -दामन

           चोली -दामन

 बच्चों को बतलाई ,पुरानी पीढ़ी की बात
पति और पत्नी जब ले लेते थे फेरे सात
उनमे होजाता था ,चोली और दामन का साथ
नयी  पीढ़ी की कन्या को,समझ न आयी ये बात
बोली कि चोली के साथ,टॉप हो स्लीवलेस
मॉडर्न फेशन की ,बन जाती सुन्दर ड्रेस
चोली के रिश्ते की ,बात तो समझते है हम
पर ये तो बतलाओ,क्या होता है दामन ?

घोटू  

झुकना सीखो

            झुकना सीखो

जब फल लगते है तो डाल झुका करती है
कुवे में जा,झुकी  बाल्टी,जल   भरती   है
बिखरे हुए धरा पर हीरे ,माणिक ,नाना
पाना है तो झुक कर पड़ता उन्हें उठाना 
झुको,बड़ों के चरण छुओ ,परशाद मिलेगा
सच्चे दिल से तुमको  आशीर्वाद   मिलेगा
मुस्लिम जाते मस्जिद,हिन्दू जाते मंदिर
ईश वंदना हरदम की जाती है झुक कर
जब सिग्नल झुकता है,रेल तभी चलती है
झुक कर करो सलाम,बात तब ही बनती है
हरदम रहते तने,बात   करने  ना  रुकते 
वोट मांगने ,अच्छे अच्छे ,नेता    झुकते
तूफानों में,जो तरु झुकते,रहते  कायम
रहते तने,जड़ों से  उखड़ा करते  हरदम 
अगर झुक गयी नज़र,प्यार में  उनकी 'हाँ'है
बिना झुके क्या कभी किसी से प्यार हुआ है
झुकने झुकने में भी पर  होता है  अंतर
झुके सेंध में, घुसे चोर तब घर के अंदर
चीता जब झुकता है,तेज वार है  करता 
जितनी झुके कमान ,तीर तेजी से चलता
चलते है झुक, जब हो जाती अधिक उमर है
झुक कर पढ़ते,जब होती कमजोर नज़र है
 इसीलिये आवश्यक है ये बात  जानना
झुकने वाले की मंशा,  हालात  जानना
अम्बर झुकता दूर क्षितिज में,धरा मिलन को
झुकना सदा सफलता देता है जीवन को

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

बढ़ते विकल्प.....भ्रमित जीवन...!!!


बढ़ते विकल्प
    सबकुछ की लालसा
           और भ्रमित जीवन...
                विषयों की भीड़
                       प्रसाद सी शिक्षा
                            ढेर सारा अपूर्ण ज्ञान...
उत्सवों की भरमार
    बढती चमक दमक
          घटता आनंद...
                 व्यंजनों की कतारें
                       खाया बहुत कुछ
                              फिर भी असंतुष्टि...
सैकड़ों चैनल
    दिन-रात कार्यक्रम
          पर मनोरंजन शून्य...
                 रिश्ते ही रिश्ते
                      बढ़ती औपचारिकता
                             और घटता अपनापन...
अनगिनत नियम कानून
    बढ़ते दाँव - पेच
          और बढ़ता भ्रष्टाचार...
                फलती-फूलती बौद्धिकता
                      सूखते-सिकुड़ते हृदय
                              और दूभर होती श्वास...
अनेकों सूचना माध्यम
     सुगम होती पहुँच
            फिर भी घटता संपर्क...
                   फैलती तकनीक
                         बढ़्ती सुविधायें
                               घटती सुख-शान्ति...
हजारों से जुड़ाव
     सैकड़ों से बातचीत
           फिर भी अकेले हम...

                    - विशाल चर्चित

अंधा प्यार

                   अंधा प्यार

हम इस घर की दरोदीवार से  ,इतना है वाकिफ ,
                            हमें मालूम है खूंटी कहाँ है और कहाँ आला
सिर्फ अंदाज से ही काम अपना ,लेते सब निपटा,
                              हमें क्या फर्क पड़ता ,अँधेरा है या कि उजियारा

घोटू

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