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रविवार, 20 अप्रैल 2014

जैसा ढर्रा है चलने दो

              जैसा ढर्रा है चलने दो

तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

सबकी अपनी अपनी आदत,अपने ढंग से जीते जीवन
लाख करो कोशिश आप पर,मुश्किल होता है परिवर्तन
कोई कितना ही समझाए,उनको मैनर्स और   सलीके
पडी हुई जो आदत होती ,छूटा करती है मुश्किल से
चावल,दाल और सब सब्जी,मिला और अचार डाल कर
बना बना लड्डू हाथों से ,जो खाया करते खुश होकर
उन्हें कहो ,चम्मच से खालो,तो वो स्वाद नहीं पायेंगे
मुश्किल से आधा ही खाना खा कर, भूखे  रह  जायेंगें
जो जैसे खुश होकर खाता  ,वैसे ही भोजन करने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा ढर्रा है चलने दो 
कोई उसको क्या समझाए ,जो कुछ समझ नहीं पाता है
परिवर्तन करने वाला ही खुद परिवर्तित हो जाता है
'ओबामा 'लालू यादव को ,इंग्लिश नहीं सिखा पायेगा
कुछ दिन साथ रहेगा उनके ,भोजपुरी में बतियायेगा
कोशिश कितनी भी करलो तुम,लेकिन व्यर्थ सभी जाती है
टेढ़ी पूंछ मगर कुत्ते की  ,कभी न सीधी  हो पाती है
हर साहब ,बाबू,चपरासी,सभी महकमो मे सरकारी
भ्रस्टाचार लिप्त रहते  है  ,ऊपर  इनकम  है प्यारी
अपना काम अगर करवाना ,तो उनकी मुट्ठी भरने दो
तुम कुछ बदल नहीं पाओगे ,जैसा  ढर्रा है चलने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऐसा भी होता है

           ऐसा भी होता है
                   १
करी रक्षा हमारे देश की सरहद की जीवन   भर,
बुढ़ापे में उस सैनिक का ,बिगड़ यूं हाल है जाता
भूख लगती,रसोई से ,दो बिस्किट भी उठा लेता ,
तो अपनी बहू  चोर तक भी ,है उसको कहा जाता
                         २
आता है जब बच्चा पति पत्नी जीवन में
व्यस्त बहुत हो जाते है लालन पालन में
और जाती इस कदर ,बदल उनकी दिनचर्या
जिससे बच्चा आया ,भूल वो जाते किर्या

घोटू
  
        

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

मूर्तियां


               मूर्तियां

नरम मिट्टी,सही पानी और सही चिकनाई हो,
                    उँगलियों की कुशलता से,मिट्टी बनती मूर्तियां
सही हो साँचा अगर और गरम धातु पिघलती,
                     साँचे के ही मुताबिक़ है,सदा ढलती    मूर्तियां  
सही हो चट्टान,हाथों में हुनर ,छैनी सही,
                     हथोड़े की मार से भी   है उकरती  ,  मूर्तियां
अगर दिल में महोब्बत है और मिलन में ऊष्मा
                     प्यार के सच्चे मिलन  से ,है जन्मती ,मूर्तियां

घोटू         ,
                                 
               ,

बुढापा -खटारा कार


     बुढापा -खटारा कार

इस तरह है जिंदगी ,अपनी खटारा हो गयी ,
                             कार भी है पुरानी और बैटरी में नहीं दम
पूरी बॉडी खड़खड़ाती ,चलती जब स्पीड से,
                              थोड़ी भी चढ़ती चढ़ाई,होता है इंजिन गरम
गीयर ढीले,घिसा इंजिन ,स्टीयरिंग भी लूज है,
                               ट्यूब  पंक्चर से भरी  है,घिस गए टायर  सभी
जब तलक है चल रही ,चलती रहे ,किसको पता ,
                             किस जगह ,किस मोड़ पर,रुक जाए ये गाडी कभी

घोटू

पर्यटन और मोक्ष

          पर्यटन और मोक्ष

होता जोश जवानी का जब ,
                     रहते व्यस्त कमाइ  मे हम
जब थोड़ी फुर्सत मिलती है,
                    तब बूढ़ा होने लगता  तन
मन करता है,दुनिया देखें,
                    बाहर जाएँ,मन बहलायें
लेकिन साथ नहीं  देता तन  ,
                     बढ़ती  जाती  है पीडायें  
कभी दर्द घुटनों में होता ,
                      कभी सांस फूला करती है
कुछ दिन घर से दूर रहो तो,
                      हो जाती हालत  पतली है
पर मन कहता ,ईश्वर ने जो,
                      यह विशाल संसार रचा है
कई अजूबे,कई करिश्मे ,   
                    अभी देखना  बहुत बचा है
जब ऊपर जाएंगे ,ईश्वर,
                     देखेगा ,कर्मो का लेखा
पूछेगा मेरी दुनिया में,
                     बतला ,तूने क्या क्या देखा
देखी  क्या मेरी रचनाएं,
                      झरने,नदियां,पहाड़ ,समंदर
यदि हम ना में उत्तर देंगें ,
                      वापस भेजेगा धरती  पर
यदि हम बोले ,भगवन हमने ,
                        देखी  तेरी सारी  कृतियाँ
कलाकार तू  अद्वितीय है,
                         कितनी सुन्दर ,तेरी दुनिया
हो प्रसन्न वह निज अनुपम कृती ,
                         स्वर्ग दिखाने को भेजेगा 
 मोक्ष मिलेगी,पुनर्जन्म के,
                         चक्कर से पीछा छूटेगा                   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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