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शनिवार, 19 अप्रैल 2014

घर की याद

         घर  की याद

जब काफी दिन एक जगह पर ,
                      रह कर मन है उचटा करता
परिवर्तन या कहो पर्यटन ,
                      करने को मन भटका करता
रोज रोज की दिनचर्या से,
                        थोड़े  दिन की छुट्टी लेकर
ख़ुशी ख़ुशी और बड़े चाव से ,
                         कहीं घूमने जाते  बाहर
पहले तो दो तीन दिवस तक,
                          अच्छा लगता है परिवर्तन
नयी जगह और नए लोग सब ,
                           नयी सभ्यता ,भाषा नूतन
कमरा  नया ,नित नया बिस्तर ,
                          नया नया नित खान पान है
रोज घूमना ,चलना फिरना,
                          चढ़ जाती तन पर थकान है
दिन भर  ये देखो ,वो देखो,
                           बड़ी दूरियां ,चलना दिन भर
कहीं खंडहर,कहीं महल है ,
                            झरने कहीं,कहीं पर सागर
मन प्रसन्न पर तन थक जाता ,
                            सैर करो जब दुनिया भर की
अच्छा तो लगता है लेकिन, 
                             याद  सताने लगती घर की
और ऊबने लगता मन है ,
                             रोज रोज होटल मे खाते
याद हमें आने लगते है ,
                            घरकी रोटी ,दाल ,परांठे
परिवर्तन अच्छा होता पर ,
                            जिस जीवन के हम है आदी
हमें वही अच्छा लगता है ,
                            और घर की है याद सताती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

                       
    

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

शंका और समाधान

          शंका और समाधान

कई  बार  मैं  पूछा  करता  हूँ  अपने से
क्यों ये खुशियों के दिन लगते है सपने से
और क्यों लम्बी होती है ये  दुःख की रातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते ?
कैसा है ये प्रकृति ने   संसार  बनाया
कहीं बनाये सागर,कहीं पहाड़ बनाया
और कहीं पर मरुस्थल, बस रेत  रेत  है
हरियाली है ,कहीं लहलहा रहे खेत  है
कहीं झर रहे झरने,गहरी खाई कहीं पर
कल कल करती  नदिया है लहराई कहीं पर
प्रभु क्यों ना ये पूरी धरा सपाट  बनाते ?
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हँसते गाते
 ऐसा क्यों है,कभी खुशी है और कभी गम
बार बार क्यों बदला करते है ये मौसम
कहीं शीत है,   बरफ बरसती ,गिरते ओले
और कहीं पर ,गरम धूप है,लू के शोले
अलग अलग जगहों पर अलग अलग ऋतुएं है
कोई नहीं समझ पाता  ,होता क्यू ये  है
कहीं बसन्ती मौसम और कहीं बरसातें
क्यों न जिंदगी हरदम कटती हंसते गाते
 फिर मेरे मन ने समझाया,क्यों रोता है
सुख भी तब ही सुख लगता,जब दुःख होता है
सूरज तपता ,तब ही शीतल लगे चांदनी
उंच नीच के कारण ही सुन्दर है अवनी 
प्रभु की अनुपम कृति जिसे हम कहते नारी
कैसी लगती ,यदि सपाट जो होती  सारी
बिन नमकीन, सिर्फ मीठा क्या हम खा पाते ?
सुख दुःख से ही कटे जिंदगी ,हंसते गाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है

         मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है

इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है
रोज है होली,दिवाली,दशहरा ,
                हर एक दिन ही ,अब मेरा त्योंहार है
सभी मौसम अब बसन्ती हो गए,
                 बहारें ही बहारें हर  ओर है
कूकती है कोकिला हर डाल पर,
                पंछियों का,मधुर कलरव ,शोर है
हो गया हर दिन मेरा रंगीन है,
                हो गयी मदभरी ,अब हर रात है
शाम हर एक,सुरमई है सुहानी ,
                 और सुनहरी हो गयी हर प्रातः  है
चांदनी बिखरी हुई है हर तरफ,
                  हुआ इतना सुहाना संसार है
इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                   मिला जबसे मुझे तेरा प्यार है
कभी चंचल नदी सा कलकल करूं ,
                   कभी रिमझिम बरसता, बरसात सा
कभी झरने की तरह झरझर झरूँ ,
                     कभी सागर  सा उछालें   मारता
महकता हूँ हर तरफ मैं पुष्प सा ,
                      तितलियाँ है,कर रहे गुंजन भ्रमर
पाँव टिकते नहीं मेरे ज़मीं पर,
                      ऐसा लगता  उड़ रहा हूँ ,लगा, पर
समझ ना आता मुझे  है क्या हुआ ,
                      इस तरह बदला मेरा व्यवहार है
इस तरह बदली है मेरी जिंदगी ,
                    मिला मुझको ,जबसे तेरा प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'        

मोदी आया-मुसीबत लाया

           मोदी आया-मुसीबत लाया

जनता को बरगलाया ,कर मीठी मीठी बातें
सपने उन्हें दिखाए, कर लम्बे  चौड़े  वादे
जाती है बहल झट से ,जनता है बड़ी भोली
अब तक बहुत खिलाई ,हमने है मीठी गोली
मौसेरे भाई  हम सब,चांदी  भी कट रही थी
और लूट सारी अपनी ,आपस में बंट रही थी
पर जग गयी है जनता,मौसम बदल गया है
आया  है जबसे मोदी ,सब कुछ बिगड़ गया है
नेता थे दादा ,नाना,पुश्तैनी हम  है नेता
अब नेता बन रहा है,ये चाय का विक्रेता
हालत हमारी इसने,आकर के कर दी ऐसी
होने लगी है देखो,हम सब की ऐसी तैसी
ऊपर से धूमकेतु, अरविन्द  आगया  है
हाथों में लेके झाड़ू, सबकी  बजा गया है
अस्तित्व पे है खतरा ,खतरे में विरासत है
मुश्किल में सब फंसे है,हर ओर मुसीबत है
कुत्ता नया गली में ,आता तो चौंकते है
कुत्ते सभी गली के,मिल कर के भोंकते है
कुत्तों से कम से कम हम,इतना सबक तो ले लें
बाहर के दुश्मनों को ,मिल कर के सब खदेड़े
इसलिए आओ,मिल कर ,हम सब उसे दें गाली
कर देगा खड़ी खटिया ,कुर्सी जो उसने पा ली
हम साथ रहें मिल कर ,उससे नहीं डरें हम
वो जो भी बोलता है, आलोचना करें हम
इज्जत जो हमें अपनी ,थोड़ी भी है बचानी
पड़ जाए उसके पीछे ,लेकर के दाना  पानी
अस्तित्व बचाने की,हम सबको अब पडी है
हो जाएँ एक हम सब, संकट  की ये घड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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