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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

शिकवा

      शिकवा

गए बारिश में उनके घर ,ये सोचा भीगेगे संग संग ,
मगर जाते ही पकड़ा दी ,उन्होंने  छतरियां  हमको
सुनाने हाले दिल अपना ,लिखी थी प्यार से चिट्ठी ,
बता दी ढेर सारी ,व्याकरण की  गलतियां   हमको
हमारे तो मुकद्दर में ,लिखा है एसा उलटा कुछ ,
अकेले  मिलने पहुंचे ,उनकी  दादी  सामने आई ,
कहा बेटा ,किया अच्छा ,जो आये ,दर्द है सर में ,
बिठा सर अपना दबवाने ,लगा उनने  दिया   हमको

घोटू

कदम ताल से धरती कांपी- चले हिन्द के वीर


कदम ताल से धरती कांपी
चले हिन्द के वीर
लिए तिरंगा चोटी  चढ़ के
   गरजे ले शमशीर .............
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भारत माँ ले रहीं सलामी
खुशियों का सागर उमड़ा
गले मिले सन्तति सब उनकी
ह्रदय कमल खिल-खिला पड़ा
कदम ताल से धरती कांपी ................
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भारत माँ   हैं जान से प्यारी
संस्कृति अपनी बड़ी दुलारी
प्रेम शान्ति का पाठ पढ़े हम
अनगिन भाषा खिले हैं क्यारी
कदम ताल से धरती कांपी ................
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नई नई नित खोज किये हम
विश्व गुरु बन दुनिया पाठ पढाये
वसुधा सागर गगन भेद के
सूक्ष्म ,तपस्या योग सिखाये
कदम ताल से धरती कांपी ................
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हम  स्वतंत्र हैं प्रजातंत्र है
अपना सब का प्यारा राज
यहाँ अहिंसा भाईचारा नीति नियम है
 सभी मनाएं भाँति -भांति हिल-मिल त्यौहार
कदम ताल से धरती कांपी ................
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शेर हैं हम नरसिंह है हम वीर बड़े हैं
अर्जुन एकलव्य से हैं तो भीष्म अटल हैं
कायर दुश्मन वार कभी पीछे करते हैं
लिए तिरंगा छाती चढ़ते वीर हमारे अजर अमर हैं 
कदम ताल से धरती कांपी ................
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प्रेम शान्ति का पाठ पढो हे दुनिया वालों
ना कर तांडव नाश सृष्टि का इसे बचा लो
ज्ञान दंभ पाखण्ड लूट बेचैनी से तुम घिरे पड़े हो
अन्तः झांको ,ज्वालामुखी धधकता 'स्वको अभी बचा लो
दूध की नदिया सोने चिड़िया से गुर सीखो
कल्पवृक्ष भारत अगाध है प्रेम लुटाना लेना सीखो
कदम ताल से धरती कांपी ................
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ भारत

कुल्लू -हिमाचल

बुधवार, 14 अगस्त 2013

खबर



















सब जानने लगे हैं कि 
आदमी कुत्ते को काट ले 
तो खबर है 

खबरों के कारोबार में 
जो बिकता है, वो छपता है 
इसीलिए अखबार 
तय नहीं कर पाते 
कि विछिप्त बलात्कारी है 
या वह छप्पन वर्षीय स्त्री 
जो बेघर है 

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सुशील कुमार 
दिल्ली, 6 अगस्त 2013

बुधवार, 7 अगस्त 2013

तुम्हारा प्यार सबकुछ है

             तुम्हारा प्यार सबकुछ है
             
सताने में मेरे दिल को,
अगर मिलता मज़ा तुमको
तुम्हारी इस खुशी खातिर ,
               हमें मंजूर  सब कुछ  है
तुम्हारी चाह का मारा
हमारा दिल है बेचारा
संभालो या इसे कुचलो ,           
               हमें  मंजूर सबकुछ  है
जो जी चाहे तो अपनाओ
जो जी चाहे तो ठुकराओ
तुम्हारे मन को जो भाये ,
                 हमें  मंजूर  सबकुछ है 
जो तुम नज़दीक आती हो
अदा   से मुस्कराती हो ,
हमारे  दिल की धड़कन में,
                  हमेशा  होता कुछ कुछ है
न यूं तडफा के मारो तुम
इसे अपना बना लो  तुम
हमारा दिल तो पागल है ,
                   हमें मंजूर सबकुछ   है
बड़ा नायाब दुर्लभ सा
खजाना तेरी उल्फत का ,
हमारी जिंदगानी में,
                    तुम्हारा  प्यार सबकुछ है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


मुझको दिया बिगाड़ आपने

           मुझको दिया बिगाड़ आपने
          
    मुझ पर इतनी प्रीत लुटा कर,सचमुच किया निहाल आपने
         मै पहले से कुछ बिगड़ा था,थोडा दिया बिगाड़     आपने
पहले कम से कम अपने सब ,काम किया करता था मै खुद
अस्त व्यस्त से जीवन में भी,रखनी पड़ती थी खुद की सुध
अब तो मेरे बिन बोले ही ,काम सभी हो कर देती तुम
टूटे बटन टांक देती  हो ,चाय     नाश्ता  धर देती तुम 
मेरी हर सुख और सुविधा का ,पूरा ध्यान तुम्हे रहता है
मुझ को कब किसकी जरुरत है,पूरा भान तुम्हे रहता है
     मुझे आलसी बना दिया है ,रख कर इतना ख्याल आपने 
      मै पहले से कुछ बिगड़ा था,   थोडा दिया बिगाड़  आपने 
भँवरे सा भटका करता था ,कलियों पीछे ,हर रस्ते में
लेकिन जब से तुम आई हो , मेरे दिल के गुलदस्ते में
तुम्हारे ही पीछे अब तो ,  मै बस  हूँ  मंडराया करता
लव यूं  लव यूं, का गुंजन ही ,अब मै दिन भर गाया करता
पागल अली ,कली  के चक्कर ,में इतना पाबन्द हो गया
इधर उधर ,होटल में खाना ,अब तो मेरा बंद हो गया
     ऐसी स्वाद ,प्यार से पुरसी ,घर की रोटी दाल आपने 
     मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोड़ा  दिया बिगाड़  आपने
मुझ पर ज्यादा बोझ ना पड़े ,रखती हो ये ख्याल  हमेशा
इसीलिये ,मेरे बटुवे से ,    खाली कर        देती सब पैसा 
मेरे लिए ,शर्ट  या कपडे ,लेने जब जाती बाज़ार हो
खुद के लिये , सूट या साडी ,ले आती तुम तीन चार हो
पैसा ,मेल हाथ का ,कह तुम,हाथ हमेशा धोती रहती
धीरे धीरे , लगी सूखने, मेरे धन की  ,गंगा बहती
        मुझको ए टी एम ,समझ कर,किया है इस्तेमाल आपने 
         मे पहले से कुछ बिगड़ा था  ,थोड़ा  दिया बिगाड़ आपने
मै पहले ,अच्छा खासा था ,तुमने क्या से क्या कर डाला
ये न करो और वो न करो कह,पूरा मुझे बदल ही  डाला
और अब ढल तुम्हारे सांचे में जब बिलकुल बदल गया मै
तुम्ही शिकायत ,ये करती हो,     पहले जैसा  नहीं रहा मै 
चोरी ,उस पर सीनाजोरी , ये तो  वो ही मिसाल हो गयी
ऐसा रंगा ,रंग में अपने , कि मेरी पहचान    खो गयी
          सांप मरे ,लाठी ना टूटे ,ऐसा  किया  जुगाड़  आपने
          मै पहले से कुछ बिगड़ा था ,थोडा दिया बिगाड़ आपने
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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