कहर के बाद
मै तुम्हें मंद मंद मंथर गति से ,
बहने वाली मंदाकिनी कहता था
तुम्हारे शिखरों की तारीफ करता रहता था
तुम्हारी जुल्फों को कहता था काली घटायें
और लगती थी बिजली गिराती हुई ,
मुझे तुम्हारी सारी अदायें
पर जब से ,
मन्दाकिनी ने उमड़ कर ,
बादलों ने फट कर ,
पहाड़ों के शिखरों ने ढह कर,
बिजलियों ने कडक कर ,
उत्तराखंड मे ढाया है कहर
खंड खंड हो गयी है मेरी उपमायें
और मैंने बंद कर दिया है,
तुम्हारी तारीफ मे ये सब कहना
मुझको तो तुम,
जैसी हो ,वैसी ही अच्छी लगती हो,
और हरदम ,एसी ही रहना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू' ,