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शनिवार, 22 जून 2013

सवाल है ईश्वर से....



और एक बार फिर से
दिखा कुदरत का कहर
एक बार फिर से दिखी
हल्की सी एक झलक
प्रलय की - कयामत की....
एक बार फिर से
असहाय सा हुआ मनुष्य
धरी रह गयी सारी गणित
सारा विज्ञान - सारी तकनीक...
हजारों मरे - इतने ही लापता
लाखों को बेघर
न जाने कितने गावों
न जाने कितनी बस्तियों का
एक झटके में सफाया....
लेकिन बहुत कम लोगों पर असर
ज्यादातर मस्त और व्यस्त
(सभी की बात नहीं कर रहा)....
नेता व्यस्त ज्यादा से ज्यादा
मीडिया पर दिखने में
हवाई सर्वेक्षणों मे
अपनी पार्टी की प्रशंसा में
दूसरे की कमियां गिनाने में
राहत के लिये जारी धन में से
कुछ अपनी ओर खिसकाने में...
मीडिया व्यस्त खबर के पोस्टमार्टम में
उसको पूरी तरह से भुनाने में
अपने को सबसे आगे और
सबसे तेज बताने में....
बाबू लोग व्यस्त बला टालने में
काम कम लेकिन स्वयं को
परेशान ज्यादा दिखाने में...
व्यापारी इस बहाने जितना हो सके
तमाम चीजों के दाम बढाने में,
बुद्धिजीवी लोग टीवी देखने और
हर खबर पर अपना गाल बजाने में...
बोलबाला है हर तरफ सिर्फ
दिखावे का - मक्कारी का
बेइमानी का - चालाकी का
दिल तो है सिर्फ कहने के लिये
चलता है सिर्फ दिमाग हमेशा
ताकि निकल जायें सब से आगे
जमा सकें दूसरे पर अधिकार
ताकि बने रहें हमेशा शासकों में
शासितों में नहीं.....
काश....इन सब लोगों पर गिरती गाज
काश...ये लोग आते चपेट में
सुलझ जाती बहुत सी समस्यायें
बदल जाता दुनिया का नक्शा
और महौल हो जाता स्वर्ग जैसा...
लेकिन ऐसा होता नहीं है
महंगाई में पिसता है आम आदमी
हर आपदा में मरता है आम आदमी
यहां तक कि पैदा होने के बाद से ही
रोज किसी न किसी वजह से
तिल - तिल करके मरता है आम आदमी
क्यों........आखिर क्यों ???
ये सवाल है ईश्वर से
ये सवाल है प्रकृति से
ये सवाल है कुदरत से
ये सवाल है कायनात से
क्यों........आखिर क्यों ???

गुरुवार, 20 जून 2013

भेदभाव

        
         भेदभाव 
किसी भी वृक्ष में ,
जब फल लगते है ,
सभी का लगभग एक सा आकार ,
और एक सा स्वाद होता है
कोई पौधा ,
जब पुष्पित होता है,
तो सभी पुष्पों का समान रूप ,
और एक  सी महक होती है
ये सभी वृक्ष और पौधे तूने ही बनाए है
और इंसान को भी तूने ही बनाया है 
तो फिर क्यों ,
तेरे ही बनाये मानव की संताने ,
अलग अलग लिंग,
अलग अलग रूप रंग ,
और अलग अलग स्वभाव लिए होती है ?
भाई भाई या बहन भाई के स्वभाव में ,
इतनी भिन्नता क्यों होती है ?
भगवान ने  इंसान के साथ ,
यह भेदभाव क्यों किया है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उत्तराखंड की त्रासदी पर

    
     उत्तराखंड  की त्रासदी पर

हे महादेव!
ये तो हम सब जानते हैं ,
कि आप संहार के देवता है
लेकिन हे केदार !
आप तो हैं बड़े उदार ,
आप तो भोलेनाथ भी कहाते है
अपने भक्तों को ,
दुःख और पीड़ा से बचाते है
तो फिर क्यों,
श्रद्धा से आपको सर नमाने ,
आये हुए भक्तों की भीड़ पर ,
मौत का तांडव दिखा दिया
आप इतने स्वार्थी कब से हो गये ,
कि कितनो का ही घर उजाड़ दिया ,
और अपना घर बचा लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सबके कैसे कैसे वाहन

    
         सबके कैसे कैसे  वाहन
श्री गणेश बैठे चूहे पर,कार्तिकेय मोर पर उड़ते 
शंकर जी बैठें नंदी पर,और विष्णु जी उड़े गरुड पे 
सूर्य देवता सात अश्व के,रथ पर चढ़ है घूमा करते 
और यमराज चढ़े भैसे पर,आता देख सभी है डरते 
गदहा शीतल माँ का वाहन ,शनि देव का वाहन हाथी 
इंद्र देवता एरावत पर,ख़ुद उड़ते है हनुमान जी
दुर्गा करती सिंह सवारी ,उल्लू है लक्ष्मी का वाहन 
सरस्वती जी  हंसवाहिनी ,सबके कैसे कैसे वाहन 
घोटू 

 
 

बुधवार, 19 जून 2013

सूरज -दो कविताएँ

         
         सूरज-दो  कविताएँ 
                   1
         सूरज और हम 
होता सूरज लाल,प्रात जब निकला करता 
धीरे धीरे तेज प्रखर हो ऊपर   चढ़ता 
और साँझ,बुझते दीये सा पीला पड़ता 
देखो दिन भर मे वो कितने रंग बदलता 
सुबहो शाम ,उसे ढकने को आते बादल 
पर बादल को चीर ,सदा जाता आगे बढ़ 
उसकी ऊष्मा और ऊर्जा ,कायम रहती है 
सर्दी,गर्मी,बारिश,हर मौसम  रहती  है 
एसा ही होता अक्सर मानव जीवन मे 
बचपन मे है लाली और प्रखर यौवन मे 
और बुढ़ापे मे शीतल ,ढलने लगता  जब 
बादल परेशनियों के ,ढकते है जब ,तब 
सूरज जैसे चीर मुश्किलों को जो बढ़ते 
वो ही अपना नाम जगत मे रोशन करते 
                      2
            सूरज और बादल 
नीर से तुम भरे बादल,और सूरज चमकते हम 
हमारे ही तेज से ,उदधि गर्भ से पैदा  हुये  तुम 
क्षार सारा समंदर का ,छोड़ कर ,निर्मल बदन से 
तुम हवा के साथ ऊपर,उड़े थे स्वच्छंद  मन से 
देख निज मे नीर का ,इतना विपुल धन जब समाया 
तुम्हारे मन मे कलुषता का घना  अँधियार  छाया 
घुमुड़ नभ मे छा गए तुम,लगे गर्वित हो गरजने 
नीर धन ,मद चूर होकर,लगे बिजली से कड़कने 
और सारे गगन मे,स्वच्छंद   होकर तुम विचरने
अहम इतना बढ़ गया कि पिता को ही लगे ढकने 
पर समय और हवा रुख पर,ज़ोर कोई का न चलता 
आज या कल ,समय के संग,है हरेक बादल बरसता
नीर की बौछार बन कर ,समाओगे ,उदधि मे कल 
मै पिता ,फिर प्यार देकर ,उठाऊँगा ,बना बादल 
सृष्टि के आरंभ से ही,प्रकृती का चलता यही क्रम 
नीर से तुम भरे बादल ,और सूरज चमकते  हम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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