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बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

















दोस्तों,
आज दशहरा है....रावण भाई साहब का आज अगले एक साल के लिए राम नाम सत्य होने वाला है......हर जगह भगवान राम की जय-जयकार हो रही है....आइये हम कलियुग में रामायण के उन पात्रों से भी सबक लें जो बहुत महत्वपूर्ण रहे पर उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया....

सूर्पणखा : भगवान ऐसी बहन किसी को न दे....इसके पंचवटी के जंगल में दिल बहलाने और नाक कटाने की वजह से ही भाई रावण का सत्यानाश हो गया....

मामा मारीच : भई साला हो तो ऐसा जिसने जीजा रावण के गैर कानूनी प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए जान दे दी....

कुम्भकरण : सिर्फ खाने - पीने और सोने में मस्त रहने वाले निकम्मे इंसान ने भाई के लिए जान देकर ये सन्देश दिया कि किसी को भी निकम्मा और निरर्थक मान लेने से पहले सौ बार सोचना चाहिए.....

मंदोदरी : रावण जैसे आतंकवादी पति का भी आख़िरी समय तक साथ दिया.....न तलाक लिया.....न फरार हुई.....न आत्महत्या की.....लंका में ही डटी रही......

मंथरा : इसके इधर का उधर करने की वजह से ही कैकेयी आंटी का दिमाग खराब हुआ था और राम - सीता - लक्ष्मण को जंगल जाना पडा....राजा दशरथ को जान गंवानी पड़ी.....ऐसे कान भरने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिए...चाहे घर हो या दफ्तर....

बाली : इन भाई साहब से यह सबक मिलता है कि अपनी ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए वर्ना शेर को सवा शेर मिलता ही है....आखिर किसी न किसी तरह निपटा ही दिए गए न.......

मेघनाथ : एक बहुत लायक बेटा जिसने अपने दुर्बुद्धि बाप की हर आज्ञा का पालन किया.....आज के जमाने में तो तमाम बेटे (सब नहीं) तो ऐसे बाप को घर में ही निपटा दें......

भरत : भाई हो तो ऐसा.....राम के वन गमन के बाद सारा राजपाट मिल जाने के बाद भी स्वीकार नहीं किया.....जबकि आज के जमाने में तो जीवित भाई को मृत घोषित करा कर पूरी जायदाद हड़प जाने के किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं.....

कौशल्या : अपने बेटे को जंगल भिजवाने के बाद भी देवरानी कैकेयी को कुछ नहीं कहा.....वर्ना आज की जेठानी होती तो मारामारी पर उतर जाती....

.....और अब आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामना.....आशा करता हूँ कि रामायण की अच्छी चीज़ों से सीख लेंगे.....न कि ' हैप्पी दशहरा '........बोल के छुट्टी मनाएंगे......क्योंकि आजकल हर तीज - त्यौहार में ' लेट अस एंज्वाय ' का वायरल फीवर गुस गया है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

दीवाना किया करते हो

चाँद को मामा कहते थे तुम उसे सनम अब कहते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

तारे जो अनगिनत हैं होते उसे भी गिना करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

आसमान के शून्य में भी तुम छवि को देखा करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

बंद नैनों से भी तुम अक्सर दरश प्रिये की करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

स्वप्न लोक में स्वप्न सूत में सदा बंधे तुम रहते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

हृदय से हृदय को भी तुम तार से जोड़ा करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

बातें जो मुख में ना आए, समझ क्यों लिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

हिचकी पे हिचकी आती, यूं नाम क्यों लिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

नैनों से नैनों के कैसे जाम को पिया करते हो,
तुम पगले हो और दीवाना मुझे भी किया करते हो |

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

बदल भी जाइये।

बातों को हलके से लेना
अब तो सीख भी जाइये
इतना गौर जो फरमाया
करते थे भूल भी जाइये
छोटे छोटे थाने अब तो
ना ही खुलवाइये
जो खुल चुके हैं पहले से
हो सके तो बंद करवाइये
छोटे चोर उठाईगीरों को
बुला बुला के समझाइये
समय बदल चुका है
स्कोप बढ़ते जा रहा है
कोर्स करके आइये
और तुरंत प्लेसमेंट
भी पाईये
ऎसे मौके बार बार
नहीं आते एक
मौका आये तो
हजारों करोड़ो पर
खेल जाइये।
चोरी डाके की कोचिंग
हुवा करती है कहीं दिल्ली में
एक बार जरूर कर ही आइये
अब ऎसे भी ना शर्माइये
काम वाकई में आपका
गजब का हुवा करता है
लोगों को मत बताइये
खुले आम मैदान में
खुशी से आ जाईये
जेल नहीं जाईये
मैडल पे मैडल पाइये।

मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

   मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

मोतीचूर,

बून्दियों का है वो संगठित रूप,
जो सहकारिता का प्रतीक है,जिसमे,
सैकड़ों बूंदिया,हाथ में दे हाथ
बिना अपना व्यक्तित्व खोये,
जुडी रहती है आपस में,
अन्य बून्दियों के साथ
मोती स्वरुप,
बून्दियों का ये संयुक्त रूप,
जिसे बनाने में,
इन मोती सी बून्दियों को चूरा नहीं है जाता
मोतीचूर है क्यों कहलाता?
दुग्ध को जब हम करते है गरम,
तो वो उबलता है,उफनता है
मानव स्वभाव से,दूध का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
पर यदि धीरज के खोंचे से,
दूध को हिलाते रहो,
तो उफान रुक जाता है
और दुग्ध,धीरज वान होकर,
धीरे धीरे बंध जाता है
दूध,जब इस तरह,अपने स्वभाव से,
करता है उफान या गुस्सा खोया
दूध का यह बंधा रूप,कहलाता है खोया
पर जब इस खोये की,
छोटी छोटी गोलियों को,घी में तल कर,
किया जाता है रस में लीन
तो उन्हें कहते है 'गुलाब  जामुन'
विचारणीय बात ये है,
कि ये रसासिक्त गोलियां,
न तो रखती है गुलाब कि खुशबू,
न जामुन कि रंगत,या स्वाद आता है
तो यह गुलाब जामुन क्यों कहलाता है?
मैदे का घोल,
गर्मी से एक दो दिवस बाद,
लगता है उफनने,और खमीर बना ये पदार्थ,
जिसे जब,एक छिद्र के माध्यम से,
अग्नि तपित घी में डाल कर,
विभिन्न स्वरुप में तल कर,
जब प्यार कि चासनी में डुबोया जाता है
तो उसका यह रसमय व्यक्तित्व,सभी को भाता है
पर जब टेड़े मेडे आकारों की ये  रसासिक्त कृतियाँ,
नहीं होती है जली कहीं भी
क्यों कहलाती है जलेबी?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

सर्दियों का आगाज़

      सर्दियों का आगाज़

आ गया कुछ  ऋतू में बदलाव सा है

सूर्य भी अब देर से उगने लगा  है
है बड़ा कमजोर सा और पस्त भी है
इसलिए ये शीध्र होता   अस्त भी है
फ़ैल जाता है सुबह से ही धुंधलका
हो रहा है धूप का सब तेज  हल्का
रात लम्बी,रह गया है दिन सिकुड़ कर
बोझ वस्त्रों का गया है बढ़ बदन पर
नींद इतनी आँख में घुलने लगी है
आँख थोड़ी देर से खुलने लगी  है
सपन इतने आँख में जुटने लगे है
आजकल हम देर से उठने  लगे है
हो गया कुछ इस तरह का सिलसिला है
रजाई में दुबकना लगता भला  है
चाय,कोफ़ी,या जलेबी गर्म खाना
आजकल लगता सभी को ये सुहाना
भूख भी लगने लगी,ज्यादा,उदर में
जी करे,बिस्तर में घुस कर,रहो घर में
पिय मिलन का चाव मन में जग रहा है
सर्दियां आ गयी,एसा   लग रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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