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बुधवार, 13 जून 2012

सास का अहसास

 सास का अहसास

मर्दों  के लिए सास का अहसास

होता है बड़ा खास
सास की बोली का मिठास
और उमड़ता प्यार और विश्वास
अपने दामाद
को सास सदा देती है आशीर्वाद
मन में रख कर ये आस
वो जितना सुखी रहेगा
उसकी बेटी को भी उतना ही सुख देगा
और लड़कियों के लिए वो ही सास
बन जाती है गले की फांस
वो कहते है ना,
सास शक्कर की
तो भी टक्कर की
ये कैसा चलन  है
औरत को औरत से ही होती जलन है
और जाने अनजाने
वो बहू को सुनती रहती है ताने
बहू का जादू उसके बेटे पर चल गया है
और उसका बेटा,
उसके हाथ से निकल गया है
एक मुहावरा है,
सास नहीं ना ननदी
बहू फिरे  आनंदी
क्या ये एकल परिवार का चलन
का कारण है,सास बहू की आपसी जलन
माइके का और  ससुराल का ,
अपना अपना ,अलग अलग कल्चर होता है
आपस में एडजस्ट करने पर ,
परिवार सुखी रहता है,वरना रोता है
इसमें क्या शक है
अपने अपने ढंग से जीने का,
हर एक को हक है
सबको थोडा थोडा  एडजस्टमेंट जरूरी है
तभी मिटती दूरी है
माइके और ससुराल की संस्कृतियों में,
होना चाहिए मेल
तभी हंसी ख़ुशी चलती है,
गृहस्थी की  रेल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

हे परमपिता !

       हे परमपिता !
हे परमपिता! मै बीज था,
तूने मुझे माटी दी,
अंकुरित किया,बिकसाया
आँखें दी,कान दिये,
हाथ दिये,पैर दिये,
और चलना सिखलाया
मै जल था,
थोड़ी सी गर्मी पाकर,
वाष्प बनकर उड़ने लगा तो,
तूने ठंडक देकर फिर  से जल बना दिया
मुझ पर जब दुःख के बादल छाये ,
तूने मेरे दुखों को,
आंसू की बूँदें बना,बहा दिया
पीड़ाओं ने जब जब मुझे,
बरफ सा जड़ बनाया
तूने मुझे ,अपने प्यार की उष्मा से पिघलाया
अच्छे और बुरे का,
कडवे और मीठे का,
सच्चे और झूंठे का,
भेद करना सिखलाया
हे प्रभू!मै क्या क्या बतलाऊ ,
तूने मेरे लिए क्या क्या करा है
पर ये स्वार्थ,दंभ और अहम्,
ये सब भी तो तूने ही मुझमे भरा है
और जब मुझे सफलता और खुशियाँ मिलती है,
मै अपने आप पर इतराता हूँ
या तो तुझे भूल  जाता हूँ,
या फिर पांच रुपयों का प्रसाद चढ़ाता हूँ
मै भी कितना मूरख हूँ,
तुझे पांच रुपयों का लालीपाप देकर,
बच्चों की तरह बहलाने की कोशिश करता हूँ
कितना नाशुक्रा हूँ,नादान हूँ,
मेरी गलतियों के लिए,
मुझे माफ़ कर देना ,
मै तेरा बच्चा हूँ,
तुझे सच्चे दिल से प्यार करता हूँ
जीवन पथ पर ,जब भी मै भटका हूँ,
तूने ही तो आकर,
मेरी ऊंगली थामी है 
तू मेरा सर्जक है,
तू मेरा पोषक है,
मेरे अंतर में बसा हुआ,
तू अंतरयामी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

आज एसा क्या हुआ है

आज एसा  क्या हुआ है

आज  एसा  क्या हुआ है, मन मचलने लग गया है


आपने तिरछी नज़र से ,सिर्फ  देखा  भर हमें  है

उठ रहा क्यों ज्वार दिल में,बढ़ गयी क्यों धड़कने है
बिजलियाँ ऐसी गिरी है,   आग तन में लग गयी है
प्रीत के उस मधु मिलन की,आस मन में जग गयी है
बहुत ही बेचेन है मन ,  बदन जलने लग गया है
आज एसा क्या हुआ है ,मन मचलने लग गया  है
कर गयी है हाल एसा,जब मधुर चितवन तुम्हारी
गज़ब कितना ढायेगी फिर,रेशमी छूवन  तुम्हारी
रस भरे लब ,मधुर चुम्बन दे ,मचा उत्पात देंगे
थिरकता तन,सांस के स्वर,जुगल बंदी,साथ देंगे
नयन में ,मादक पलों का,सपन पलने लग गया है
आज एसा क्या हुआ है. मन मचलने लग गया  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढ़ापे में

बुढ़ापे में

बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में

बिगड़ जाते बहुत हालात है बुढ़ापे में
    नींद आती ही नहीं,आई,उचट   जाती है
    पुरानी बातें कई दिल में उभर  आती है
बड़ी रुक रुक के ,बड़ी देर तलक आती है,
पुरानी यादें और पेशाब है  बुढ़ापे में
    मिनिट मिनिट में सारी ताज़ी बात भूलें  है
    जरा भी चल लो तो जल्दी से सांस फूले  है
कभी घुटनों में दरद ,कभी कमर दुखती है,
होती हालत बड़ी खराब है     बुढ़ापे में
    खाने पीने के हम शौक़ीन तबियत वाले
    जी तो करता है बहुत,खा लें ये या वो खालें
बहुत पाबंदियां है डाक्टर की खाने पर,
पेट भी देता नहीं साथ है  बुढ़ापे में
    दिल तो ये दिल है यूं ही मचल मचल जाता है
    आशिकाना मिजाज़,छूट  कहाँ  पाता   है
मन तो करता है बहुत कूदने उछलने को,
हो नहीं पाते ये उत्पात  हैं बुढ़ापे   में
      देखिये टी वी या फिर चाटिये अखबार सभी
       भूले भटके से बच्चे पूछतें  है  हाल कभी
कभी देखे थे जवानी में ले के बच्चों को,
टूट जाते सभी वो ख्वाब है   बुढ़ापे में
बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में
बिगड़ जाते बहुत हालात है  बुढ़ापे में

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

      
 
   

शुक्रवार, 8 जून 2012

पहली बरसात



आज हुई पहली बरसात,
बरस गये मेघ आज घुमड़ के,
जगा गए दिल के जज्बात,
आज हुई पहली बरसात |

तप रहा था कोना-कोना,
गर्मी से आता था रोना,
आह्लादित हो उठी जमात,
आज हुई पहली बरसात |

इन्तजार थे मेघ के,
नयन ताकते नेह से,
ईंद्र देव ने मणि बात,
आज हुई पहली बरसात |

रोज दरश वे दे जाते थे,
सब्र परीक्षा ले जाते थे,
आज दिला के गए निज़ात,
आज हुई पहली बरसात |

मन प्यासा, धरती प्यासी थी,
मरुभूमि में बगिया-सी थी,
तृप्त कर गए वो दिन रात,
आज हुई पहली बरसात |

07.06.2012

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