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बुधवार, 6 जून 2012

आंसूं पश्चाताप के




आ गए गर आँखों में आंसूं पश्चाताप के,
धुल गए वो बेरंग से गलतियों के जो छाप थे;
भूल तो हर इंसानों से ही हो जाता है "दीप",
धो देते हैं आंसूं ये हर दाग को उस पाप के |


आत्म-ग्लानि स्वयं में ही एक बड़ा दण्ड है,
गलतियों से सीख लेना पश्चाताप का खण्ड है,
अंतर्मन स्वीकार ले गलती बात बने तब "दीप",
पश्चाताप पे क्षमा है मिलती गलती चाहे प्रचन्ड है |

मंगलवार, 5 जून 2012

ऊफ्फ ये गर्मी!!!


मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।

महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।

भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।

नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।

विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।

मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।

गुरुवार, 31 मई 2012

***मुर्दा ***

जिन्दा तो हैं यहाँ
पर प्राण का नाम नहीं,
फिरते हैं यात्र-तत्र
बने जीवित मुर्दा;

कुंठित है सोच
अपंग क्रियाकलाप,
कलुषित है हर अंग
क्या नैन-मुख-गुर्दा |

एक धुंधली ज्योति
है लिए अंतरात्मा,
है उसे लौ बनाके
स्वयं को प्राण देना;

मुर्दा बनके जीना
मृत्यु से भी बद्तर,
है जीवित अगर रहना
बस यही ज्ञान लेना |

ये नींद उचट जब जाती है

ये नींद उचट जब जाती है
सर्दी की हो गर्मी की,
ये रातें बहुत सताती है
ये नींद  उचट जब जाती है
मन के कोने में सिमटी सी
दुबकी,सुख दुःख से लिपटी सी
चुपके चुपके,हलके हलके
आ जाती खोल,द्वार दिल के
कुछ खट्टी कुछ मीठी  यादें
चुभने वाली कडवी यादें
कुछ अपनों की,बेगानों की
गुजरे दिन के अफ्सानो की
कुछ बीती हुई  जवानी की
परियों की मधुर कहानी सी
कुछ कई पुराने बरसों की
कुछ  ताज़ी कल या परसों की
कुछ हमें गुदगुदाती है आकर,
कुछ आंसू  कई रुलाती है
ये नींद उचट जब जाती है
मन करवट करवट लेता है
तन करवट करवट लेता है
सुन तेरे साँसों की सरगम
छूकर रेशम सा तेरा  तन
ये हाथ फिसलने लगते है
 अरमान मचलने लगते है
आ जाते याद पुराने दिन
कटती थी रात नहीं तुम बिन
हम जगते थे,सो जाने को
हम थकते थे ,सो  जाने को
मन अब भी करता है लेकिन
देता है टाल यूं ही ये  तन
मन को मसोस कर रह जाते,
और हिम्मत ना हो पाती है
ये नींद उचट जब जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

ख़ामोशी ....


"खामोश हो तुम ,
पर कुछ कहती हो "
ऐसा कहते हो तुम अकसर !
"दिन में तारे गिनती रहती हो , 
खुली आँख से सपने बुनती हो ,
अछर धुंधला सा है, लेकिन ,
एक खुली किताब सी लगती हो तुम "
ऐसा कहते हो तुम अकसर ! 
"कभी बोलती थकती नही,
जैसे सारे जग का ज्ञान तुम्हे है !
कभी चुप शांत भोली सी,
जैसे कोई नादाँ हो तुम "
ऐसा कहते हो तुम अकसर !
"ख़ामोशी में तेरी बातों को ,
सुन लिया हैचुप से मैंने भी ,
आँखों के तेरे सपनों को ,
बुन लिया है मैंने भी ,
तुम किताब हो तेरी कविता ,
को पढ़ लिया है मैंने भी ,
तेरा बोलना हो या चुप रहना,
मुझको सब अच्छा लगता है !
तेरी बातों में मुझको,
बचपन का सब सच लगता है! "
मुझको याद नहीं है लेकिन ,
ये सुब मुझसे कभी कहा हो !
खामोश हो तुम,
पर कुछ कहती हो, ऐसा कहते हो तुम अकसर .....



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