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रविवार, 6 मई 2012

मेरी कलम कहती है ,,,,,,,

भूख लिखूँ
गरीबी लिखूँ
और ये बेकारी लिखूँ
मेरी कलम कहती है ,,,,,,,,,,,,,,,
जनता की हर लाचारी लिखूँ |
घपले लिखूँ
घोटाले लिखूँ
चल सारी मक्कारी लिखूँ
मेरी कलम कहती है ,,,,,,,,,,,,,,,
नेताओ की हर गद्दारी लिखूँ |
दुआ लिखूँ
दवा लिखूँ
या इसे नाइलाज बीमारी लिखूँ
मेरी कलम कहती है ,,,,,,,,,,,,,,,
देश के लिए अपनी ज़िम्मेदारी लिखूँ |
शांति लिखूँ
क्रांति लिखूँ
'विधु'कलम संग कटारी लिखूँ
मेरी कलम कहती है ,,,,,,,,,,,,,,
हर मन की दहकती चिंगारी लिखूँ |

रचनाकार-विशाखा 'विधु'
मेरठ, ऊ.प्र.

शुक्रवार, 4 मई 2012

भगवान जी,आपका एक अवतार तो बनता है

भगवान जी,आपका   एक अवतार तो बनता है

जब धरा पर पाप का भार बढ़ता है

बेईमानी और भ्रष्टाचार   बढ़ता है
राजा,सत्ता के मद में मस्त होता है
आम आदमी परेशान और त्रस्त होता है
ऋषियों के तप भंग किये जाते है
दुखी हो सब त्राहि त्राहि चिल्लाते है
भागवत और पुराण एसा कहते है
ऐसे में भगवान अवतार  लेते है
चुभ रहे  सबको मंहगाई के शूल है
सारी परिस्तिथियाँ,आपके अवतार के अनुकूल है
जनता दुखी है,मुसीबत ही मुसीबत है
भगवान जी,अब तो बस आपके अवतार की जरूरत है
कई बार आपके आने की आस जगी
लेकिन हर बार ,निराशा ही हाथ लगी
कंस की बहन देवकी ,कारावास गयी,
 मगर कृष्ण रूप धर तुम ना आये
कई रानियाँ रोज सत्ता की खीर खा रही है,
पर राम रूप धर  तुम ना आये
कितने ही  पुलों के खम्बे है टूट गये
फिर भी आप नरसिंह की तरह ना प्रकट भये
प्रभु जी आपसे निवेदन है कि
 जब आप अवतार ले कर आना,
मच्छ अवतार की तरह ,दिन दिन दूनी बढती,
मंहगाई की तरह  मत आना
ढीठ नेताओं की तरह ,कछुवे की पीठ कर,
कच्छ अवतार की तरह मत आना
राम की तरह आओ तो आपको,
 एक बात बतलाना जरूरी है
  रावणों ने अपनी सोने की लंका,
स्विस बेंको में शिफ्ट करली है
व्यवस्थाएं हो रही है बेलगाम
इसलिए चाहे कृष्ण बनो,वामन या परशुराम ,
बहुत बेसब्री से इन्तजार कर रही जनता है
भगवान जी,ऐसे में आप का एक अवतार तो बनता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

   

अभी तो मै जवान हूँ

अभी तो मै जवान हूँ

सिर्फ बाल रंगाने से आदमी जवान नहीं होता
ताक़त की दवा खाने से आदमी जवान नहीं होता
फेशियल कराने से ,आदमी जवान नहीं होता
झुर्रियां नाशक क्रीम लगाने से,आदमी जवान नहीं होता
जींस,शर्ट पहनने से ,आदमी जवान नहीं होता
लड़कियों से फ्लर्ट करने से ,आदमी जवान नहीं होता
जवानी एक जज्बा है ,जो दिल से निकलता है
जवानी एक अहसास है ,जो मन में मचलता है
जवानी तन की तरंग नहीं,मन की उमंग है
जवानी स्वच्छंद कामनाओं की लहराती पतंग है
कई जवान ,चढ़ती जवानी में भी बूढ़े दिखलाते है
कई बूढ़े  ,बुढ़ापे में भी ,जवान नज़र  आते है
मेरी कृष काया नहीं,मेरे जज्बात देखो
अभी मै जवान हूँ,मुझमे है कुछ बात देखो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तिलहन,दलहन और दुल्हन

तिलहन,दलहन और दुल्हन

लोग क्लोरोस्ट्राल  से घबराते है

इसलिए तेल कम खाते   है
फिर भी तेल के दाम बढे जाते है
    उपज कम है,इसलिए ,मंहगी है तिलहन भी
सब तरफ  दाल में काला  ही काला है
मंहगाई ने सबका दम ही निकाला  है
दाल बिना रोटी का सूखा निवाला  है
         कम होती है पैदा,मंहगी है,   दलहन भी
नारी तो है देवी,नारी है मातायें
लेकिन नारी को ही,अब बेटी ना भाये
नहीं रुकी कन्या  के भ्रूण  की हत्याएं
           हो जाएगी दुर्लभ,तब मिलना  दुल्हन भी

मदन मोहन बहेती'घोटू'

गुरुवार, 3 मई 2012

जिंदगी जिंदगी कहाँ

जिंदगी का काम ही है अनवरत चलते जाना,
ये जो रुक ही जाये तो जिंदगी जिंदगी कहाँ ;
लगा रहता है जिंदगी में लोगो का आना-जाना,
ना आये जाये कोई तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

माना कि सफ़र में कभी आंसू हैं निकलते,
और कभी होठों पे मुस्कान भी है आती;
खुशियाँ और गम है जिंदगी के ही पहलू,
दो पहलू ना हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ | 

माना कि हैं मिलते कांटे ही कांटे पथ में,
धुप्प-सा अँधेरा कभी दिखाई भी है पड़ता,
जाल फेंक कष्टों का परखती है जिंदगी,
जो संघर्ष न हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

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