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रविवार, 15 अप्रैल 2012

देश विदेश

          देश विदेश

गए थे तुम जिन दिनों  
नियागरा
                   उन दिनों हम घुमते थे आगरा
भ्रमण पर थे जिन दिनों तुम चीन में,
                   हमने भी कोचीन का था रुख करा
तुम गए जब टोकियो  जापान में,
                   उन दिनों हम टोंक  राजस्थान में          
 घूमते थे हम मसूरी पहाड़ पर,
                    जिन दिनों थे आप सूरीनाम  में                   
आप रियो  में थे तो रीवां में हम,
                   हम मनाली में थे तुम थे  मनीला
केन्या
में सफारी तुमने  किया,
                  कान्हा में टाइगर  हमको मिला
तुमने  आबूधाबी में शोपिंग करी,
                 हमने आबू जी में जा ,दर्शन किया
उन दिनों हम लोग थे इन्दोर में,
                 जिन दिनों तुम गये इंडोनेशिया
 आप थे दुबाई  हम मुम्बाई में,
                आप सिंगापूर, हम सिंगरूर  में
हम भ्रमण करते रहे निज देश में,
               और  तुम घूमे  विदेशी  टूर  में

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

तुम बदली पर प्यार न बदला

तुम बदली पर प्यार न बदला

घटाओं से बाल काले आज श्वेताम्बर हुए है

गाल चिकने गुलाबी पर झुर्रियां,सल पड़ गए है
हिरणी से नयन तुम्हारे, कभी बिजली गिराते
चमक धुंधली पड़ी ऐसी,छुप रहे ,चश्मा चढाते
और ये गर्दन तुम्हारी,जो कभी थी मोरनी सी
आक्रमण से उम्र के अब ,हुई द्विमांसल घनी सी
मोतियों सी दन्त लड़ी के,टूट कुछ मोती गये है
क्षीरसर में खिले थे जो वो कमल कुम्हला गये है
कमर जो कमनीय सी थी,बन गयी है आज कमरा
पेट भी अब फूल कर के,लटकता है बना दोहरा
पैर थे स्तम्भ कदली के हुए अब हस्ती पग है
अब मटकती चाल का,अंदाज भी थोडा अलग है
शरबती काया तुम्हारी,सलवती अब हो गयी है
प्यार का लेकिन खजाना,लबालब वो का वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

गुलाब गाथा

             गुलाब गाथा
कंटकों से भरी टहनी है ये दुनिया,
                 और जीवन फूल एक गुलाब का है
diरंग सुन्दर,बदन खुशबू से भरा है,
                 दिया तोहफा ,खुदा ने,नायाब सा है
डाल पर यदि रहोगे यूं ही अकड़ कर,
                पंखुडियां बन,बिखर जाओगे धरा पर
अगर जीवन को सफल है जो बनाना,
                 जियो जीवन तुम किसी के काम आकर
महक जायेगी तुम्हारी जिंदगानी,
                   किसी का महकाओ जीवन मुस्करा कर
कोई प्रेमी प्रेम से अभिभूत होगा ,
                    प्रेमिका के केश में  तुमको  सजा  कर
गए गुंथ जो यदि  किसी वरमाल में तुम,
                     बनोगे बंधन किसी के नेह का तुम    
 अगर बिखरोगे मिलन की सेज पर तुम,
                    पाओगे स्पर्श पागल देह का तुम
कभी अपने भाग्य पर इठलाओगे तुम,
                   बन सजावट किसी के गुलदान की तुम
या कि सज सकते हो गुलदस्ते में कोई,
                      दास्ताँ बन कर किसी पहचान कि तुम
नियति में यदि तुम्हारे जो ये लिखा है,
                      सुगंधी  कोई बदन रस चूंस   लेगा
कोई तुम को शर्करा मीठी खिला के,
                      धूप में रख कर बना    गुलकंद  देगा    
धन्य जीवन तुम्हारा हो जाएगा यदि,
                        देव चरणों  में हुआ  अर्पण तुम्हारा
है क्षणिक जीवन सभी का जिस तरह से,
                        जाएगा कुम्हला कभी भी तन तुम्हारा
कभी  केशव पर   चढोगे ,कभी शव पर,
                        कभी वैभव में  कभी श्रृगार  में तुम
जिंदगी के रंग सारे देख लोगे,
                           जीत जाओगे कभी गुंथ  हार में तुम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

   

      

तुमने जो सहला दिया है

तुमने जो सहला दिया है

तुमने जो सहला दिया है

मन मेरा बहला दिया है
जरा से ही इशारे में,
बहुत कुछ कहला  दिया है
तुम्हारी प्यारी  छुवन ने
लगा दी है आग तन में
एक नशा सा छागया है
और मन पगला गया है
जब तुम्हारी सांस महके
जब तुम्हारे  होंठ दहके
तुम्हारी  कातिल  अदायें
तरंगें मन में  जगायें
कामनाएं  बलवती है
सांस की दूनी गति है
घुमड़ कर घन छा गए है
ह्रदय को तडफा गए   है
तुम्हे अब क्या बताएं हम
बड़ा ही बेचैन है    मन
अगर बारिश आएगी ना
प्यास ये बुझ पायेगी  ना
तुम्हारी इन शोखियों ने,
ह्रदय  को दहला दिया है
तुमने जो सहला  दिया है
मन मेरा बहला दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अरे ओ औलाद वालों!

अरे ओ औलाद वालों!
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अरे ओ औलाद वालों,
बुजुर्गों को मत प्रताड़ो
आएगा तुम पर बुढ़ापा,
जरा इतना तो विचारो
जिन्होंने अपना सभी कुछ,तुम्हारे खातिर लुटाया
तुम्हारा जीवन संवारा,रहे भूखे,खुद न खाया
तुम्हारी हर एक पीड़ा पर हुआ था दर्द जिनको
आज कर उनकी उपेक्षा,दे रहे क्यों पीड़ उनको
बसे तुम जिनके ह्रदय में,
उन्हें मत घर से निकालो
अरे ओ औलाद वालों !
समय का ये चक्र ऐसा,घूम कर आता वहीँ है
जो करोगे बड़ो के संग,आप संग होना वही है
सूर्य के ही ताप से जल,वाष्प बन,बादल बना है
ढक रहा है सूर्य को ही,गर्व से इतना तना  है
बरस कर फिर जल बनोगे,
गर्व को अपने संहारो
अरे ओ औलाद वालों!
बाल मन कोमल न जाने,क्या गलत है,क्या सही है
देखता जो बड़े करते,बाद में करता वही  है
इस तरह संस्कार पोषित कर रहे तुम बालमन के
बीज खुद ही बो रहे,अपने बुढ़ापे  की घुटन के
क्या गलत है,क्या सही है,
जरा अपना मन खंगालो
अरे ओ औलाद वालों!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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