मै कवि हूँ
धूप के संग छाँव को भी,जन्म देता वो रवि हूँ
मै कवि हूँ
कल्पना के समंदर में सिर्फ ना गोते लगाता
बल्कि जा गहराइयों में,सीप मोती ढूंढ लाता
कलकलाती नदियों का,रूप ना केवल निहारा
बल्कि देखा बाढ़ में उनका विनाशक रूप सारा
फूल फल से लदे देखे वृक्ष जब अनुकूल मौसम
वहीँ देखा हुआ पतझड़,जब हुआ प्रतिकूल मौसम
तान सीना,वृक्ष देखे,वनों में ऊंचे खड़े थे
वक़्त का आया बुलावा,कट गए वो गिर पड़े थे
और देखी उन वनों में, उठ रही अट्टालिकाएं
प्रकृति का संहार करके,प्रगति की सारी विधाये
प्रात का कोमल अरुण और दोपहर का सूर्य तपता
चाँद,जो ले क़र्ज़ रवि से,रात को जगमग चमकता
नहीं केवल मिलन का सुख,जुदाई की पीर देखी
वक़्त के संग जमाने की बदलती तस्वीर देखी
जिन्होंने जीवन दिया , वो प्रताड़े माँ बाप देखे
दृश्य कितने ही करुण,आंसू भरे, चुपचाप देखे
इन्ही दृश्यों और जीवन की सभी संवेदनाये
को पिरोया शब्द में जब ,बन गयी वो कवितायेँ
मोम जैसा कभी पिघला,बना भी पाषण हूँ मै
बहुत गहरी चुभन देता,शब्द का वो बाण हूँ मै
प्यार का मादक सपन हूँ,और मिलन का गीत हूँ मै
युद्ध रणभेरी बजाता,हार भी हूँ जीत हूँ मै
समय के खाकर थपेड़े ,बन गया अब अनुभवी हूँ
मै कवि हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'