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रविवार, 4 मार्च 2012

पुत्र-पिता पति साथ

बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती

प्यार मिले परिवार का, पुत्र-पिता पति साथ ।
देवी मुझको मत बना, झुका नहीं नित माथ ।
झुका नहीं नित माथ, झूठ आडम्बर छाये ।
कन्या-देवी पूज, जुल्म उनपर ही ढाये ।
दुग्ध-रक्त तन प्राण, निछावर सब कुछ करती ।
बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती ।।

अबकी होली

अबकी होली
कई रंग से खेली  होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली होली
सुबह उठा बीबीजी बोली,सुनो दर्द है मेरे सर में
वैसे आज तुम्हे छुट्टी है,दिन भर रहना ही है घर में
देखो मुझको नींद आ रही,सुबह हो गयी तो होने दो
प्लीज बुरा तुम नहीं मानना,थोड़ी देर और सोने दो
सच डीयर कितने प्यारे हो,अच्छा सोने दो ना जाओ
सच्चा प्यार तभी जानू जब ब्रेकफास्ट तुम बना खिलाओ
कह उनने तो करवट बदली,नींद हमारी टूट चुकी थी
काफी दिन भी चढ़ आया था,बड़ी जोर की भूख लगी थी
फिर उनकी प्यारी बातों ने,जोश दिया था कुछ एसा भर
हम भी कुछ कर दिखला ही दें,सोच घुसे चौके के अन्दर
कौन जगह क्या चीज रखी है,इसकी हम को खबर नहीं थी
उचका पैर ढूंढते चीनी,आसपास कुछ नज़र नहीं थी
रखा एक डिब्बा गलती से,गिरी मसालेदानी हम पर
पहली होली उसने खेली,कई रंगों से दिया हमें भर
लाल रंग की पीसी मिर्च थी,और हरे रंग का था धनिया
पीला  रंग डाला हल्दी ने, बना अजीब हमारा हुलिया
काला काला गरम मसाला,राई,जीरा अजब रंग थे
हर रंग की अपनी खुशबू थी,मगर मिर्च से हुए तंग थे
छींक छींक हालत खराब थी ,आँखों में थी मिर्च घुल गयी
दुःख तो ये है,छींके सुन कर ,बीबीजी की नींद खुल गयी
उठ आई तो देखा हमको,शक्लो सूरत रंग भरी थी
मै गुस्से में था लेकिन  वो मारे हंसी हुई दोहरी  थी
देख हमारी हालत उनको,प्यार या दया ऐसी आयी
हमें दूसरी होली उनने,अपने रंगों से  खिलवायी
काली काली सी जुल्फें थी,रंग गुलाबी सा चेहरा था
हरा भरा था उनका आँचल ,लाल होंठ का रंग गहरा था
पहली होली भूल गए हम,रंग दूसरी का जब आया
लेकिन इसी समय दरवाजा,आकर यारों ने खटकाया
और तीसरी होली हमने खेली मित्रों की टोली से
बड़ी देर तक धूम मचाई,रंग गुलाल भरी झोली से
पहली थी कुछ तीखी होली
दूजी प्यारी पिय  की होली
और तीसरी  नीकी होली
सच अबके ही सीखी होली
तीन ढंग से खेली होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली  होली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आओ होली मनाएं

आओ होली मनाएं

आओ होली मनाएं
पहले दिन
पुरानी वेमनस्यतायें
दुर्भावनाएं ,कटुता,और
बैरभाव की होली जलाएं
और दूसरे दिन
सदभावनाओं की गुलाल
भाईचारे का अबीर
और प्रेम के रंगों से
मिलजुल कर होली मनाएं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब मुँह पर खिला बसन्त --

जब मुँह पर खिला बसन्त --

बुरा न मानो होली है --
मूँग दले होरा भुने, उरद उरसिला कूट ।
पापड बेले अनवरत, खाय दूसरा लूट ।।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLateYcQt2S3472cdcCSpVLylbEtNo_ku0iqrVjZ8662yhv7Xg6oBYmB7AR8uLM6Ez8ohqWrjmUqts8qF2FLeUr1ItnMRRFFpKyJcHXLZ5lb8Guxnk35tg00Mwt3wO8ysjWkCS3kWxiC0/s1600/100_4500.JPG
मालपुआ गुझिया मिली, मजेदार मधु स्वादु ।
स्वादु-धन्वा मन विकल, गुझरौटी कर जादु ।।
मन के लड्डू मन रहे,  लाल-पेर हो जाय ।
रंग बदलती आशिकी, झूठ सफ़ेद बनाय ।
भाँग खाय बौराय के,  खेलें सन्त-महन्त ।
नशा उतरते ही खिला, मुँह पर मियाँ बसन्त ।।
Rangoli design with diya in centre
होरा = चना का झाड़
उरसिला = चौड़ी छाती 
गुझिया = एक प्रकार की मिठाई 
गुझरौटी= नाभि के पास का भाग 
स्वादु-धन्वा = कामदेव
जब मुँह पर खिला बसन्त = डर जाना 

यह  भी  देखिये  

ताकें गोरी छोरियां--

 दोहे 
शिशिर जाय सिहराय के, आये कन्त बसन्त ।
अंग-अंग घूमे विकल, सेवक स्वामी सन्त ।

मै कवि हूँ

                           मै कवि हूँ
धूप के संग छाँव को भी,जन्म देता वो रवि हूँ
                             मै कवि हूँ
कल्पना के समंदर में सिर्फ ना गोते लगाता
बल्कि जा गहराइयों में,सीप मोती ढूंढ लाता
कलकलाती नदियों का,रूप ना केवल निहारा
बल्कि देखा बाढ़ में उनका विनाशक रूप सारा
फूल फल से  लदे देखे वृक्ष  जब अनुकूल मौसम
वहीँ  देखा हुआ पतझड़,जब हुआ प्रतिकूल मौसम
तान सीना,वृक्ष देखे,वनों में  ऊंचे  खड़े  थे   
वक़्त का आया बुलावा,कट गए वो गिर पड़े थे
और देखी उन वनों में, उठ रही अट्टालिकाएं
प्रकृति का संहार करके,प्रगति की सारी विधाये
प्रात का कोमल अरुण और दोपहर का सूर्य तपता
चाँद,जो ले क़र्ज़ रवि से,रात को जगमग  चमकता
नहीं केवल मिलन का सुख,जुदाई की पीर  देखी
वक़्त के संग जमाने की बदलती तस्वीर  देखी
जिन्होंने जीवन दिया  , वो प्रताड़े माँ बाप देखे
दृश्य कितने ही करुण,आंसू भरे, चुपचाप देखे
इन्ही दृश्यों और जीवन की सभी संवेदनाये
को पिरोया शब्द में जब ,बन गयी वो कवितायेँ
मोम जैसा कभी पिघला,बना भी पाषण हूँ मै
बहुत गहरी चुभन देता,शब्द का वो बाण हूँ मै
प्यार का मादक सपन हूँ,और मिलन का गीत हूँ मै
युद्ध रणभेरी बजाता,हार भी हूँ  जीत    हूँ      मै
समय के  खाकर थपेड़े  ,बन गया अब अनुभवी हूँ
                                      मै कवि हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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