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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

दो दो बातें

   दो दो बातें
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औरतों के दो ही हथियारों से डरता आदमी,
        एक आंसूं आँख में और एक बेलन हाथ में
औरतों की दो ही चीजों पर फिसलता आदमी,
         एक उनकी मुस्कराहट,एक रसीली बात  में
औरतों की बात दो ही मौकों पर ना टालता,
         एक उसके मायके में, एक मिलन की रात में
दो ही मौको पर खरच करने में घबराता नहीं,
          एक सासू सामने हो,एक साली    साथ में
  प्यार करने  दो ही मौकों पर हिचकता आदमी,
          एक बच्चे साथ में हो,एक हो जब तन थका
औरतों की दो ही चीजे लख मचलता  आदमी,
           एक  चेहरा खूबसूरत,एक चलने की अदा
औरतों की दो ही चीजे आदमी को है पसंद,
            एक सजना सजाना और एक अच्छा पकाना
औरतों  की दो अदाओं पर फ़िदा है आदमी,
           एक उसकी ना नुकुर और एक नज़रें झुकाना
औरतों के रूप का रस इनसे पीता आदमी,
          नशीले दो नयन चंचल और दो लब  रसीले
दो दिनों की जिंदगी को हंस के जीता आदमी,
         गौरी की दो गोरी बाहों का अगर बंधन मिले

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

   

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

अहो रूप-महा ध्वनि

अहो रूप-महा ध्वनि
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इक दूजे की करे प्रशंसा,हम तुम ,आओ
मै तुम्हे सराहूं,  तुम मुझे  सराहो
ऊंटों की शादी में जैसे,आये गर्दभ,गायक बन कर
ऊँट सराहे गर्दभ गायन,गर्दभ कहे  ऊँट को सुन्दर
सुनकर तारीफ,दोनों पमुदित,इक दूजे का मन बहलाओ
मै तुम्हे सराहूं,तुम मुझे सराहो
काग चोंच में जैसे रोटी, नीचे खड़ी लोमड़ी, तरसे
कहे  काग से गीत सुनाओ,अपने प्यारे मीठे स्वर से
तारीफ़ के चक्कर में अपने ,मुंह की रोटी नहीं गिराओ
मै तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो
इन झूंठी तारीफों से हम,कब तक खुद को खुश कर लेंगे
ना तो तुम ही सुधर पाओगे,और हम भी कैसे सुधरेंगे
इक दूजे की  कमी बता कर ,कोशिश कर ,सुधारो,सुधराओ
मै  तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

घमंडी की मंडी
जाओ जाना है जहाँ, लाओ फंदा नाप ।
मातु विराजे दाहिने, बैठा ऊपर बाप ।

बैठा ऊपर बाप, चित्त का अपने राजा ।
मर्जी मेरी टॉप, बजाऊं स्वामी बाजा ।

उच्च-उच्चतम दौड़, दौड़ कर टाँग बझाओ ।
खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

विरासतों

करें पुनर्निर्माण आओ ,

विरासतों के खँडहर का ,

भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,

हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,

नए सिरे से सवांरें,

नव ऊर्जा का संचार भरें ,

प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,

प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,

अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,

घातक स्वरुप धारण करें ,

उससे पूर्व जागृत हों ,

जागृत करें समाज को ,

स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,

मानवीयता के प्रकाश से ,

करें आलोकित धरा को ,

राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,

मिलाकर करें पुनर्निर्माण

आओ विरासतों के खँडहर का |

रचनाकार-विनोद भगत

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

विडम्बना


एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को,
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं,
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसको,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

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