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शनिवार, 28 जनवरी 2012

बूढों का हो कैसा बसंत?

बूढों का हो कैसा बसंत?
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पीला रंग सरसों फूल गयी
मधु देना अब ऋतू भूल गयी
सब इच्छाएं प्रतिकूल गयी
        यौवन का जैसे हुआ अंत
        बूढों का हो कैसा बसंत
गलबाहें क्या हो,झुकी कमर
चल चितवन, धुंधली हुई नज़र
क्या रस विलास अब गयी उमर
         लग गया सभी पर प्रतिबन्ध
          बूढों का हो कैसा बसंत
था चहक रहा जो भरा नीड़
संग छोड़ गए सब,बसी पीड़
धुंधली यादें,मन है अधीर
          है सभी समस्यायें दुरंत
          बूढों का हो कैसा बसंत
मन यौवन सा मदहोश नहीं
बिजली भर दे वो जोश नहीं
संयम है पर संतोष नहीं
        मन है मलंग,तन हुआ संत
         बूढों का हो कैसा बसंत

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



सरस्वती वंदना

बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा दिवस पर
सभी साहित्य प्रेमियों को घोटू की शुभकामनायें
माँ सरस्वती आपके सृजन को पुष्पित और पल्लवित करे
इसी शुभकामना के साथ सरस्वती वंदना के दो छंद

सरस्वती वंदना
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वीनापाणी, तुम्हारी वीणा ,मुझको स्वर दे
नव जीवन ,उत्साह नया माँ मुझ में भर दे
पथ सुनसान ,भटकता सा राही हूँ मै,
ज्योति तुम्हारी निर्गम पथ ,ज्योतिर्मय करदे
                        २
मात,मेरी प्रेरणा बन,प्रेम दो ,नव ज्योति दो ,
मै तुम्हारा स्वर बनू,हँसता रहूँ ,गाता रहूँ
प्यार दो ,झंकार दो ,ओ देवी स्वर की सुरसरी
तान दो ,हर बार मै ,हर लय नयी ,लाता रहूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हे ज्ञान की देवा शारदे

(मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर ये सौवीं पोस्ट माता शारदे को समर्पित है । मुझे इस बात से अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज के ही शुभ दिन यह सुअवसर आया है जिस दिन सारा देश माँ की पूजा-अर्चना में लीन होगा ।)
हे ज्ञान की देवी शारदे,
इस अज्ञ जीवन को तार दे,
तम अज्ञान का दूर कर दे माँ,
तू प्रत्यय का उपहार दे ।

तू सर्वज्ञाता माँ वीणापाणि,
मैं जड़ मूरख ओ हंसवाहिनी,
चेतन कर दे,जड़ता हर ले,
मैं भृत्य तेरा हे विद्यादायिनी ।

जग को भी सीखलाना माँ,
सत्य का पाठ पढ़ाना माँ,
जो अकिञ्चन ज्ञान से भटके,
मति का दीप जलाना माँ ।

मैं दर पे तेरे आया माँ,
श्रद्धा सुमन भी लाया माँ,
सुध मेरी बस लेती रहना,
तेरे स्मरण से मन हर्षाया माँ ।

माँ कलम मेरी न थमने देना,
भावों को न जमने देना,
न लेखन में अकुलाऊँ माँ,
काव्य का धार बस बहने देना ।

माँ विनती मेरी स्वीकार कर,
मुझ मूरख का उद्धार कर,
कृपा-दृष्टि रखना सदैव,
निज शरण में अंगीकार कर ।

जय माँ शारदे ।

ए बसंत तेरे आने से

ए बसंत तेरे आने से
नाच रहा है उपवन
गा रहा है तन मन
ए बसंत तेरे आने से ।

खेतों में लहराती सरसों
झूम रही है अब तो
मानो प्रभात में जग रही है
ए बसंत तेरे आने से ।

चिड़िया भी चहकती है
भोर में गीत गाती है
घर में खुशियाँ आती हैं
ए बसंत तेरे आने से ।

खिल गयी सरसों
बिखर गयी खूशबू
मनमोहक हो गया नज़ारा
ए बसंत तेरे आने से ।
,,,"दीप्ति शर्मा "

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

जैसी निगाहें वैसा शमाँ

जैसी निगाहें वैसा शमाँ,
निगाहों के अनुरुप बदलता जहाँ,
गमगीन होके देखो तो दुनिया उदासीन,
प्यार से देखो तो सबकुछ खुशनुमा ।

कोई कहता आधा है खाली,
कोई कहता है आधा भरा,
नजरिये का फेर है ये सब,
नजरिये पे निर्भर है अपनी धरा ।

सोच अच्छी हो तो होगे सफल,
गलत सोच डुबो देगा नाव,
सकारात्मता जीवन को देती है राह,
हो तपते हुए मौसम में जैसे छाँव ।

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