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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

ये झुकी हुई पलकें

ये झुकी हुई पलकें,
न जाने क्या कहती है;
लबों की तरह खामोश है,
शायद उनमे कुछ राज है ।

कहती है शायद
रहने दो राज को राज,
आवरण इतनी जल्द न हटाओ,
शायद कुछ खोने का डर भी है इनमे,
कभी लगता कहती है पास आओ ।

ये झुकी हुई पलकें,
हैं सागर को समेटे,
रंजोगम बयाँ करती,
पर फिर भी झुकी रहती ।

हया की चादर में लिपटी,
स्याह की धार में बँधी,
न जाने कितने भेद छुपाये,
तेरी ये झुकी हुई पलकें ।

सोमवार, 23 जनवरी 2012

शुभकामना

आज नेताजी जयंती के साथ-साथ मेरे अनुज रघु का भी जन्मदिन है । नेताजी को शत-शत नमन और अनुज को शुभकामना स्वरूप ये छोटी-सी रचना ।

'ज'ग के उजियारे बनो,
'न'मन जिसे खुद सफलता करे;
'म'न में सबके मूर्ति हो जिसकी,
'दि'ल से सब जिसकी पूजा करे;
'न'त कर दे जो हर दुश्मन को,
'मु'श्किल में भी साहसी बन;
'बा'त से सबको जीत ले हरदम,
'र'घु तू बिल्कुल वैसा बन;
'क'ल्पना नहीं ये दुआ है मेरी,
'हो' न हो तू वैसा बन ।

(सभी पंक्तियों का पहला अक्षर मिलाने पर-"जनम दिन मुबारक हो" ।)

जलेबी-अतुकांत कविता

    जलेबी-अतुकांत कविता
    -----------------------------
छंद, स्वच्छंद नहीं होते,
मात्राओं  के बंधन में बंधे हुए ,
तुक की तहजीब से मर्यादित
जैसे रस भरी बून्दियों की तरह,
शब्दों को बाँध कर,
मोतीचूर के लड्डू बनाये गये हो,
और लड्डुओं का गोल गोल होना ,
स्वाभाविक और पारंपरिक  है
पर जब शब्द,
अपने स्वाभाविक वेग से,
उन्मुक्त होकर,
ह्रदय से निकलते है,
तो जलेबी की तरह,
भावनाओं की कढ़ाई में तल कर,
प्रेम की चासनी में डूबे,
रससिक्त और स्वादिष्ट हो जाते है,
और उन पर ,
छंदों की तरह,
आकृति का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता,
और एक सा स्वाद होने के बावजूद भी,
हर जलेबी का,
अपना एक स्वतंत्र  मुखड़ा होता है,
आधुनिक,अतुकांत कविताओं की तरह

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 22 जनवरी 2012

हमें माफ़ करना नेताजी

हमें माफ़ करना नेताजी

हम भारत माता के बेटे,देश हमारा अपना है
भ्रष्टाचार मुक्तं हो भारत,यही हमारा सपना है
पिछली बार आप जब हमसे,बोट मांगने आये थे
कई किये थे हमसे वादे,क्या क्या सपन दिखाए थे
दूर गरीबी कर देंगे हम,कम कर देंगे मंहगाई
लेकिन सत्ता में आने पर,तुमने शकल न दिखलाई
मंहगाई दो गुना बढ़ गयी,सब चीजों के दाम बढे
भ्रष्टाचार और घोटाले,हुए देश में बड़े बड़े
मंहगाई पर रोक लगाने,जब जब जनता चिल्लाई
'नहीं कोई जादू की छड़ी है,दूर करे जो मंहगाई'
 एसा कह कर ,तुमने तो बस,अपना पल्ला झाड़ दिया
 आन्दोलन जब किया ,रात को,तुमने छुप कर वार किया
जनता की जायज मागों के,तुम विरोध में अड़े हुए
अरे  तुम्हारे कई मंत्री ,हैं जेलों में  पड़े  हुए
सत्याग्रह  और आन्दोलन में,बाधा सदा लगाये हो
धिक् है तुमको,अब किस मुंह से,बोट माँगने आये हो
हमें माफ़ करना नेताजी,तुमको बोट नहीं देंगे
किसी साफ़ सुथरी छवि वाले ,को हम संसद भेजेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 21 जनवरी 2012

दिल से कवि हूँ

संसार के पटल में, मैं एक छवि हूँ, पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ | भावना के उदगार को, व्यक्त ही तो करता हूँ, हृदय के जज्बात को, प्रकट ही तो करता हूँ; बस एक "दीप" हूँ, कब कहा रवि हूँ ; पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ | उन्मुक्त साहित्याकाश में, बस घुमा करता हूँ, काव्य पढता-रचता हूँ और झुमा करता हूँ; कोशिश होती लिखने की, शब्दों का बढई हूँ, पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ |

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